अयोध्या। रामनगरी के विभीषण कुंड स्थित प्राचीन नेपाली मन्दिर में विराजमान कूर्मनारायण भगवान का १२०वां धूमधाम से मनाया गया। महोत्सव के अंतिम दिन प्रातःकाल गर्भगृह में विराजमान कच्छप आकार के कूर्मनारायण भगवान का पंचामृत और सुगन्धित औषधियों से महाभिषेक हुआ। तदुपरांत भगवान का श्रृंगार कर भव्य आरती उतारी गई। समारोह को सानिध्यता प्रदान करते हुए महन्त स्वामी हरिप्रपन्नाचार्य महाराज ने कहाकि मन्दिर में विराजमान कूर्मनारायण भगवान मुक्ति नाथ क्षेत्र में स्वयं व्यक्त विशाल शालिग्राम हैं। इनमें नेत्र, ललाट, मस्तक नासिका, मुखारविन्द आदि कूर्माकृति के चिन्ह स्पष्ट रूप से अंकित हैं। कूर्माकृति के शालिग्राम भगवान साक्षात नारायण स्वरूप हैं। १२६ वर्ष पूर्व की बात है नेपाल के मुक्ति क्षेत्र में काली गण्डकी नदी के किनारे रहने वाले कुछ व्यक्तियों ने एक रात वहां ज्योति पुंज देखा। दूसरे दिन सवेरा होने पर उस स्थान पर गए। तो वहां कच्छप रूप के १५ इंच डायमीटर का एक विशाल शालिग्राम देखकर आश्चर्य चकित हो गये। ऐसा अपूर्व शालिग्राम अवश्य ही बहुमूल्य होगा। ऐसी आशा व धारणा के साथ वे लोग काठमाण्डू पहुंचे। जब बबरजंग राणा की धर्मपत्नी भक्तिमती राजकुमारी देवी को इस बारे में पता चला। तो उन लोगों को आदर पूर्वक अपने घर बुलवाया और शालिग्राम भगवान को देखकर प्रेममग्न हो गयीं। शालिग्राम को पण्डितों और ज्योतिषीयों को दिखाया गया। राजपुरोहित व पण्डितों से विशाल मूर्ति का घर पर पूजा करने का विधान नही है ऐसा ज्ञात होने पर राजकुमारी देवी का मन बहुत दुखी हुआ। उन्होंने दुखी मन से शालिग्राम को वापस ले जाने की आज्ञा दी। व्यक्ति ने जब उसे वापस ले जाने की कोशिश किया। तब वह शालिग्राम को उठा न सका। स्वामी ने बताया कि उसी रात राजकुमारी को सपने में भगवान ने इस शालिग्राम को भारत की पुण्य भूमि अयोध्या नगरी के एक मन्दिर में निर्माण करवाकर। उसमें स्थापना करके पूजा करने की आज्ञा दी। उक्त स्वप्न से प्रेरित होकर कुछ समय पश्चात राजकुमारी देवी अयोध्या पहुंची और विभीषण कुण्ड नामक स्थान पर पण्डित मोदनाथ शर्मा के प्रबन्धकत्व में एक विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया।
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