अंधेर नगरी चैपट राजा की कहावत चरितार्थ कर रहे सीएमएस डा. ए.के. राय
अयोध्या। अंधेर नगरी चैपट राजा की कहावत चरितार्थ कर रहे हैं जिला चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डा. ए.के. राय। कायदे कानून को धत्ता बताते हुए भोजन बनाने के लिए जिला चिकित्सालय के नियमित कर्मचारियों को लगाया गया है। कुल मिलाकर इन कर्मचारियों का वेतन 1 लाख 35 हजार रूपये प्रति माह है।
यही हाल श्रीराम राजकीय चिकित्सालय अध्योध्या का भी है। वहां भी भोजन बनाने के लिए चिकित्सालय के कर्मचारियों को लगाया गया है। भोजन बनाने की ड्यूटी करने के कारण इन कर्मचारियों को जिसलिए नियुक्त किया गया है वह भी काम प्रभावित हो रहा है। नियमानुसार परम्परा रही है कि जिस फर्म से खाद्यान्न की आपूर्ति ली जाती है उसी को मरीजों और तीमारदारों के लिए भोजन बनाने और उसे परोसने की भी जिम्मेदारी दी जाती है। परन्तु इसबार परम्परा को धत्ता बताते हुए जिस फर्म को खाद्यान्न आपूर्ति का ठेका दिया गया। उसमें कहीं भी भोजन बनाने और उसे मरीज और तीमारदारों तक पहुंचाने की शर्त नहीं शामिल की गयी। दोनों राजकीय चिकित्सालयों को खाद्यान्न आपूर्ति का ठेका विद्याकान्त को बिना टेंडर के दे दिया गया। ठेकेदार ने कांटेक्ट मिलते ही मांग के अनुरूप वर्षभर का कच्चा माल सरकारी अस्पतालों को आपूर्ति भी कर दिया। परम्परानुसार खाद्यान्न व भोजन बनाने का ठेका मार्च माह में दिया जाना चाहिए था परन्तु नियमों को दरकिनार करते हुए जिला चिकित्सालय के सीएमएस डा. ए.के. राय व श्रीराम राजकीय चिकित्सालय के सीएमएस डा. अनिल कुमार ने फरवरी माह में ही खाद्यान्न का ठेका दे दिया। बताते चलें कि वहीं दूसरी ओर जिला महिला चिकित्सालय में भोजन बनवाने की जिम्मेदारी मनरेगा के तहत की गयी है।
जिला पुरूष चिकित्सालय में जिन कर्मचारियों को लगाया गया है उनमें वार्ड ब्वाय घनश्याम गुप्ता का वेतन 33 हजार रूपये प्रतिमाह, कहांर सियाराम का वेतन 33 हजार रूपये प्रतिमाह, कहांर अनुरूपा कनौजिया का वेतन 35 हजार रूपये प्रतिमाह, माली सुनील सिंह का वेतन 18 हजार रूपये प्रतिमाह व टीएनएम महिला कर्मचारी गीता का वेतन 12 हजार रूपये प्रतिमाह है। इस तरह कुल 1 लाख 35 हजार रूपया हर महीने केवल खाना बनाने पर ही खर्च हो रहा है।
शासनादेश की माने तो जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को दोनों वक्त का भोजन और सुबह का नाश्ता दिया जाना चाहिए। नये आदेश के अनुसार प्रत्येक मरीज के एक तीमारदार को भी भोजन मुहैया कराने की जिम्मेदारी चिकित्सालय प्रशासन की है। आलम यह है कि रोज 280 भर्ती मरीजों को दोनों वक्त का भोजन मिल पा रहा है कुछ ही दबंग तीमारदार इस योजना का लाभ उठा पा रहे हैं। तीमारदारों को भोजन न मुहैया कराया जाना शासनादेश की अवज्ञा है जिसकी पूरी जिम्मेदारी चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक की है।