-जिला चिकित्सालय में आयोजित हुई “मतगणना पूर्व संध्या; युवा मनोदशा विश्लेषण“ मीडिया कार्यशाला
अयोध्या। राज्यों के चुनावी रुझान के घटनाक्रम को ले कर युवाओं की मानसिक स्थिति का युवा मनोविश्लेषक डा आलोक मनदर्शन ने अपनी टीम के साथ सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के निष्कर्ष की जानकारी देते हुए डा मनदर्शन ने बताया कि नतीजों के रुझान घटनाक्रम के बारे में अपने मत को दूसरों को सुनाने हेतु युवा वर्ग आतुर दिख रहे है। चाहे मोबाइल पर होने वाली बातचीत हो अथवा सोशल मीडिया, इन सभी पर राजनैतिक स्वसमीक्षाओं का दौर चल रहा है। उन्होने बताया कि पल पल के घटनाक्रम को लोग बड़ी तत्परता से स्वविश्लेषण सहित आदान प्रदान करते हुये देखे जा रहे हैं।
सार्वजनिक स्थलों व चाय पान की दुकानों में भी चर्चाओं व बहसों का दौर देखा जा रहा है। कुल मिलाकर लोगों में एक कातूहल और जिज्ञासा भरी आवेशित मनोदशा का मिश्रण देखने को मिल रहा है। गौरतलब पहलू यह है कि अपनी बात को एक दूसरे से साझा करके मन को हल्का करने की मनोदशा लोगों पर हावी दिख रही है। इस मनोदशा को हाईपर-लोक्वेन्सी तथा इस मनोदशा से ग्रसित लोगों को हाईपर-लोक्वेन्ट कहा जाता है। इसके साथ ही अति आवेशित बहस में मनोथकान हो जाने पर उनमें बर्न-आउट सिन्ड्रोम पैदा हो रहा है। जिससे उनमें चिडचिडापन, हड़बड़ाहट, सरदर्द, जैसे लक्षण भी दिखाई पड़ रहे हैं।
जिला चिकित्सालय के युवा मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन के अनुसार आवेशित मनोदशा में कार्टिसाल एवं एड्रिनलिन मनोरसायनों का श्राव बढ़ जाता है, जिससे ज्यादा बोलने, अपनी बात को पूरा कर डालने का एक मादक खिचाव इस प्रकार हो जाता है कि मन बार-बार एक ही बात को भिन्न भिन्न लोगों से परिचर्चा करने को बाध्य हो जाता है। भले ही हमारा मन व शरीर कितना ही थक चुका हो। परिचर्चा और वार्तालाप एक सीमा तक तो हमारे मन और शरीर के लिए फायदेमन्द साबित होता है, परन्तु इसकी अधिकता हमारे मनो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि बात-चीत व वार्तालाप के मनोखिचांव को सीमित दायरे में ही रखा जाये तथा हाईपर-लोक्वेन्सी के आगोश में न आकर मन व शरीर को विश्राम देने पर अधिक ध्यान दिया जाये।