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विनोबा के शिक्षा में अप्रतिम योगदान को भुलाया नही जा सकता : प्रो. पी.पी. सिंह

-विनोबा भावे के शिक्षा दर्शन और उसकी प्रासंगिकता विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संत कबीर सभागार में प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त संयोजन में आचार्य विनोबा भावे के शिक्षा दर्शन और उसकी प्रासंगिकता विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन बुधवार को किया गया। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अवध विश्वविद्यालय के प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग के पूर्व निदेशक प्रो0 पी0 पी0 सिंह ने कहा कि विनोबा भावे एक महान संत थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए जीवन धारण किया और जीवन पर्यंत मानव की सेवा के लिए तत्पर रहें।

प्रो. सिंह ने बताया कि देश के महान विभूतियों में विनोवा के त्याग एवं समर्पण को भुलाया नहीं जा सकता। भूदान व सर्वोदय आंदोलन के साथ गरीबों एवं असहायों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि विश्वभर में शिक्षा के अप्रतिम योगदान के लिए विनोबा को जाना जाता है। उन्होंने शिक्षकों को शिक्षार्थी के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए कर्तव्यनिष्ठा के साथ कर्तव्य परायणता होनी चाहिए। यदि विद्यार्थी अच्छा होगा तो स्वतः ही शिक्षक की पहचान होगी। इसलिए शिक्षक को अपने विद्यार्थी के प्रति सकारात्मक रवैया रखना चाहिए।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो0 नीलम पाठक ने कहा कि विनोवा का शिक्षा के प्रति एक संकल्प था। उन्होंने शिक्षकों व छात्रों के बीच एक आत्मीयता होने की बात कही थी। यह तभी संभव है जब दोनों के बीच सामंजस्य हो। प्रो0 नीलम ने भावे की शिक्षा पर बोलते हुए कहा कि शिक्षा दो तरह से प्राप्त की जा सकती है। बाहरी शिक्षा में परंपरागत शिक्षा व आंतरिक शिक्षा में अध्यात्मिक। इन दोनों के सामंजस्य से शिक्षक और शिक्षार्थी एक नया आयाम दे सकता है। प्रो0 नीलम ने कहा कि भावे मानते थे कि शिक्षक को छात्रों के बीच प्रेरक की भूमिका में होना चाहिए जिससे छात्रों में एक नई ऊर्जा का संचार कर सकें।

कार्यक्रम में प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभगाध्यक्ष व संगोष्ठी के संयोजक प्रो0 अनूप कुमार ने कहा कि विनोबा भावे ने शिक्षा को एक नई दिशा दी है। इसका लाभ उठाकर देश आगे बढ़ सकता है। उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में शिक्षा के क्षेत्र में विनोवा के अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया है। कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथि द्वारा मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर मार्ल्यापण करके किया गया। अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 प्रत्याशा मिश्रा ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन सह-संयोजक डॉ0 सुरेंद्र मिश्र द्वारा किया गया। संगोष्ठी को सफल बनाने में आयोजन समिति के डॉ0 विनोदिनी वर्मा, डॉ0 विनोद चौधरी, डॉ अभिषेक सिंह, डॉ0 तरूण सिंह गंगवार, डॉ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डॉ0 मुकेश कुमार वर्मा, इजीनियर अनुराग सिंह, डॉ0 सुधीर सिंह, डॉ0 चन्द्रकांत कैथवास, डॉ0 अंकित मिश्र, श्रिया श्रीवास्तव, शालिनी पाण्डेय, विनीता पटेल, डॉ0 प्रतिभा त्रिपाठी, डॉ0 सरिता पाठक, डॉ0 प्रतिभा, डॉ0 चन्द्रशेखर, डॉ0 अरूण चौबे, डॉ0 आनन्द बिहारी, रत्नेश यादव की विशेष भूमिका रही। संगोष्ठी के समापन पर प्रो0 जीआर मिश्र, प्रो0 के0के0 वर्मा, प्रो0 आरके सिंह, अनिल कुमार, डॉ0 प्रदीप केशरवानी, डॉ0 एमजी गुप्ता, डॉ0 रमेश चन्द्र, डॉ0 सोभनाथ यादव, डॉ0 अवध नारायण सिंह, सहित अन्य शिक्षकों एवं प्रतिभागियों की उपस्थित रही।

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