आयोजन की तैयारियों ने पकड़ी गति, फिल्मों के प्रदर्शन के लिए चयन शुरू
अयोध्या। डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्व विद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने बुधवार की दोपहर 13वां अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के आधिकारिक पोस्टर का विमोचन किया। कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने इस दौरान कहा कि विश्वविद्यालय में अयोध्या की पहचान को और सशक्त करने वाला आयोजन निश्चित तौर पर विवि के लिए उपलब्धि वाला साबित होगा। इस आयोजन के जरिए देश विदेश में न सिर्फ अयोध्या बल्कि अवध विवि की भी पहचान और मजबूत होगी। विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाले तीन दिवसीय अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के पोस्टर के विमोचन के दौरान विभिन्न विभागों के शिक्षक और कर्मचारियों के अलावा अवाम का सिनेमा के सदस्य भी मौजूद रहे।
फेस्टिवल के प्रवक्ता जनार्दन पांडेय ‘बबलू पंडित’ ने बताया कि पोस्टर रिलीज होने के साथ ही समारोह की तैयारियां अब शुरू हो गई हैं। आयोजन में देश विदेश से आने वाले सिनेमा और साहित्य जगत की हस्तियों के साथ ही फिल्मों का मेला भी अब सजने लगा है। इसके लिए फिल्मों को चयनित करने का काम शुरू हो गया है।
कुछ इस तरह शुरू हुआ सिलसिला
आयोजक शाह आलम बताते हैं कि अवाम का सिनेमा के 13 साल कुछ कम नहीं होते, इसके सफरनामे की शुरुआत 28 जनवरी 2006 को अयोध्या से हुई थी। तब डॉ. आरबी राम ने तीन सौ रुपये का आर्थिक सहयोग देकर क्रांतिवीरों की यादों को सहेजने की इस पहल का स्वागत किया था। आजादी आंदोलन के योद्धा और कानपुर बम एक्शन के नायक अनंत श्रीवास्तव के सुझाव पर बना इसका संविधान तो प्रसिद्ध और सरोकारी डिजाइनर अरमान अमरोही ने इसका लोगो बनाया। तेरह वर्षों में देश-दुनिया की बहुत सारी शख्सियतें इसकी गवाह बनीं, फिर भी वह दौर आसान नहीं था। बावजूद इसके अयोध्या से लेकर चाहे चंबल का बीहड़ हो, राजस्थान का थार मरुस्थल या फिर सुदूर कारगिल, अवाम का सिनेमा पुरजोर तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए राजनीति, समाज सबकी सच्चाइयों को सरोकारी सिनेमा के जरिये समाने लाने की कोशिश में लगातार लगा हुआ है।
आयोजन इस तरह हुआ सफल
13 वर्षों के सफर में देश भर में हुए सफल आयोजनों में देश सहित दुनियां के कई हिस्सों से सरोकारी हस्तियां अपने खर्चे से शामिल होकर हौसला बढ़ाती रही हैं। इसके इलावा क्रांतिकारियों से संबंधित दस्तावेज, फिल्म, डायरी, पत्र, तस्वीरें, तार, मुकदमे की फाइल आदि तमाम सामग्री लोगों से तोहफे में मिली है। गांव, कस्बों से लेकर, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों सहित अन्य शैक्षणिक संस्थानों ने जहां निशुल्क कार्यक्रम स्थल दिया है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जमीनी स्तर पर जनसहभागिता बढ़ाकर हौसला बढ़ाया है, तो वहीं जन माध्यमो ने इसे नई पहचान दी है। आयोजन से जुड़े साथियों ने फेसबुक, ट्विटर, पत्र, ईमेल, नुक्कड़ मीटिंग, चर्चा करके आयोजन की सूचना समाज से साझा करते रहे हैं तो वहीं कई ने क्रांतिकारियों पर लगातार लिखकर जागरूकता बढ़ाई है। साथ ही वीडियो, फोटो, दस्तावेजीकरण और प्रकाशन में आर्थिक और श्रम सहयोग देकर इस विरासत को आगे बढ़ाया है। यही आयोजन की सबसे बड़ी सफलता है।
आयोजन के प्रतीक का इतिहास
अयोध्या फिल्म फेस्टिवल में इस बार प्रतीक के तौर पर यहां के प्राचीन सिक्के का प्रयोग किया गया है जो पुरातन अवध के ही हिस्से में प्राप्त हुआ था। माना जाता है कि प्राचीन काल में जनपद गणतंत्र और राज्य भी होते थे, जो वैदिक काल के दौरान कांस्य और लौह अयस्क से काफी समृद्ध भी थे। भारत और विश्व के इतिहास में पहली बार सिक्कों का चलन यहीं शुरू किया। ये जनपद 1200 ईसा पूर्व और 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में रहे और भारतीय उपमहाद्वीप में फैले। इनमें कुल 56 राज्य और 16 महानजपदों में शामिल माने जाते हैं।
शायद भारत के सबसे पुराने ज्ञात सिक्कों में से कुछ यह सिक्के पहली बार आधुनिक उत्तर प्रदेश के नरहन शहर में पाए गए थे। शाक्य जनपद (जिसे वज्जि या लिच्छवी जनपद भी पूर्व में कहा जाता था) आधुनिक शहर गोरखपुर के उत्तर में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित था। इसकी राजधानी कपिलवस्तु मानी जाती है। जहां से भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी, कपिलवस्तु से दस मील पूर्व में स्थित मानी गई है। राजगोर के अनुसार, बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्यों के निर्वाचित अध्यक्ष थे। माना जाता है कि इनमें से कुछ सिक्के बुद्ध के जीवन काल के दौरान अच्छे से ढाले गए होंगे। भगवान बुद्ध को ‘शाक्यमुनि’ अर्थात शाक्यों का ऋषि भी कहा जाता था। राजगोर के अनुसार, शाक्य कालीन मुद्रा 100 रत्ती के बराबर तक होता था, जिसे शतमान कहा जाता था। शतमान आठ षण में विभाजित था, जबकि अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के लोगो में दर्शाए गए सिक्के में पांच षण शामिल हैं।