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अवध विवि के पुस्तकालय भवन में उच्चीकृत रीडिंग रूम का लोकार्पण

समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने बाल्मीकि मंच व प्रचेता भवन का भी किया लोकार्पण

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के महामना मदन मोहन मालवीय केन्द्रीय पुस्तकालय में बुधवार को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने पुस्तकालय भवन में उच्चीकृत रीडिंग रूम का लोकार्पण किया। पुस्तकालय के रीडिंग रूम को अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण किया गया है। इसी क्रम में अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा दृश्यकला विभाग के संयुक्त तत्तवाधान में बाल्मीकि मंच तथा प्रचेता भवन का लोकार्पण तथा माॅ सरस्वती की प्रतिमा का अनावरण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि रमापति शास्त्री ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा बाल्मीकि तथा प्रचेता भवन का उद्घाटन कर प्राचीन परपंरा को संजोने का कार्य किया है। विश्व का पहला काव्य महर्षि बाल्मीकि के द्वारा रचा गया। पूरी दुनियां में भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला और नालंदा इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। चाणक्य के द्वारा जगाई गई शिक्षा के अलख की परपंरा का निर्वहन करने में सक्षम बन रहे है। उन्होंने भारत की समृद्ध संस्कृति के लिए सभी वर्गों के योगदान को सराहा और कवि रस खान की काव्य रचना का उल्लेख किया।
अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्राचीन काल से ही काफी समृद्ध रही है। पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहां सम्पूर्णता का आभास होता है। प्राचीन समृद्ध शिक्षा में साक्षरता का प्रतिशत काफी ऊॅचा था। विचार पनपने एवं बनाने के लिए पुस्तकालयों की आवश्यकता होती है। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि लिटिल ट्री की पुस्तक का संदर्भ लेते हुए प्राचीन समृद्ध शिक्षण प्रणाली की विरासत पर प्रकाश डाला। कुलपति ने कहा कि भारत में 1823 के दौरान भारत की शिक्षा का प्रतिशत न्यूनतम स्तर पर 93 प्रतिशत था। शत प्रतिशत शिक्षित समाज को अंग्रेजी सरकारों में खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। मैकाले की शिक्षा भी महज 10 वर्षाें में ही शिक्षा क्षेत्र को क्षतिग्रस्त कर दिया। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक गांव एक पाठशाला एवं एक शिवाला की परपंरा को नेस्तनाबूत करने के लिए गांव पर कर लगा दिया। फलरूवरूप शिक्षा का ढांचा धीरे-धीरे बिगड़ता चला गया। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि अंग्रेजों की हूकूमत खत्म होने के बाद भी हम अभी तक शिक्षा के उस स्तर को नही प्राप्त कर पाया है। इसी कारण इतिहास का सही आकलन करने में हमें काफी कठिनाई हो रही है। कुलपति ने कहा कि भारत कही नही गया है सिर्फ हमने भारतीयता खोई है। दुनियां का कोई ऐसा देश नहीं है जो विदेशी आक्रांताओं को इतिहास ने जगह दे रहा हो परन्तु यह परपंरा भारत में अभी भी जारी है। इससे हमें शीघ्र मुक्त होकर शिक्षण व्यवस्था ठीक करनी होंगी। प्रो0 दीक्षित ने डाॅ0 राममनोहर लोहिया के ऊपर संदर्भ ग्रन्थालय स्थापित किया जाना है। ताकि डाॅ0 लोहिया पर शोध कार्य के लिए देश दुनियां के लोग विश्वविद्यालय अवश्य आये। उन्होंने आग्रह किया कि देश भर में महापुरूषों के नाम स्थापित विश्वविद्यालयों में उनके संदर्भ ग्रन्थों का संग्रहित किये जाये। इससे शोद्यार्थी एवं छात्र भारत और भारतीयता की व्यापकता को समझे। अतिथियों का स्वागत स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 विनोद श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर कार्यपरिषद सदस्य ओम प्रकाश सिंह, मुख्य नियंता प्रो0 आर0 एन0राय, प्रो0 आशुतोष सिन्हा, प्रो0 राजीव गौड़, प्रो0 मृदुला मिश्रा, प्रो0 आर0के0 तिवारी, इन्दुभूषण पाण्डेय, डाॅ0 आर0के0 सिंह, डाॅ0 खलीक अहमद, डाॅ0 शैलेन्द्र वर्मा, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डाॅ0 आर0एन0 पाण्डेय, डाॅ0 प्रिया कुमारी, डाॅ0 विनय मिश्र, डाॅ0 अनिल विश्वा, डाॅ0 सरिता द्विवेदी, डाॅ0 पल्लवी सोनी, रीमा सिंह, जनसम्पर्क अधिकारी, आशीष मिश्र, डाॅ0 मुकेश वर्मा, डाॅ0 सर्घष सिंह, विवके सिंह, मोनू सहित अन्य उपस्थित रहे।

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