अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर आयोजित एक संगोष्ठी
अंग्रेज़ी के व्याहमोह में निजता न खोने की अपील
आगरा। भाषाओं का विकास 5 प्रकार से होता है – बोलने से, लिखने से, पढ़ने से, उसका अभिलेखी करण करने से और भाषा का नियोजन करने से। यह विचार व्यक्त किए हैं केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्वोत्तर शिक्षण सामग्री निर्माण के विभागाध्यक्ष, प्रो. उमापति दीक्षित ने। वे यहाँ चारबाग स्थित स्वामी लीलाशाह आदर्श सिंधी इण्टर कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर आयोजित एक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
यह आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्वायत्तशासी संस्था, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद दिल्ली की ओर उनके सदस्य ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी सरल ने आयोजित किया। श्री दीक्षित ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व के इतिहास पर रोशनी डालते हुए अंग्रेज़ी के व्याहमोह में निजता न खोने की अपील की। उन्होंने उदाहरण देकर बताया गया कि मुम्बई में समुद्र के किनारे एक बार एक मूंगफली बेचने वाले ने उनसे एक बार महज इसीलिए पैसे नहीं लिए के लिए वे अपने साथी के साथ अपनी मातृभाषा भोजपुरी में बात कर रहे थे।
संगोष्ठी की भूमिका परिषद सदस्य ज्ञाप्रटे सरल ने रखी। दो विद्वान वक्ताओं सुन्दर दास गोहराणी एवं घनश्यामदास जेसवानी ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन प्राधानाचार्य कुसुमलता बाखरू ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रबन्धक हरीश लाला ने किया। इस अवसर पर प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष गिरधारीलाल भक्तियानी, उपाध्यक्ष महेश मंघरानी, सह प्रबन्धक चिमनलाल पेरवानी आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर बच्चों ने ‘‘मैं भाषा हूँ’’ गीत के माध्यम से भाव व्यक्त किए। सिंधी भाषा चौखट पर एक एकांकी भी प्रस्तुत की गई। बच्चों को स्टेशनरी और जलपान का वितरण भी किया गया।