-जीवेष्णा-हार्मोन अभाव है आत्मघाती मनोभाव, इम्पैथी व ट्रीटमेंट से संभव है सुसाइड-प्रिवेंशन
अयोध्या। पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष 7.4 लाख आत्महत्या यानि हर 40 सेकंड में एक तथा 15 से 29 आयु वर्ग में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारक तथा देश में प्रतिवर्ष 1.72 लाख आत्महत्या में छात्र अनुपात प्रति घंटे एक का है। आवेग,अपराधबोध, हताशा, अकादमिक व कैरियर स्ट्रेस, पैरेंटल प्रेशर, लवलाइफ कांफ्लिक्ट,सेक्सुअल एब्यूज, जुआ व नशा, डिप्रेशन, मूड-डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया आदि युवा आत्मघात के मुख्य कारक पहलू है।
अकेलापन, प्रियजन मौत,आर्थिक हानि या कर्ज, कानूनी सजा, आपदा-महामारी, भुखमरी,गरीबी व गंभीर बीमारी आदि अन्य कारक हैं। मनोरोगी के परिजनों में भी ऊब कर आत्मघात व अन्धविश्वास जनित सामूहिक आत्महत्या भी होती रहती है। इस वर्ष आत्महत्या निवारण दिवस की थीम है चुप्पी,संकोच व मिथक को तोड़कर बातचीत, समानुभूति, उपचार व सहयोग के दृष्टिकोण को बढ़ावा देना। आत्मघाती मनोदशा में ब्रेन इमोशन-सेंटर एमिग्डाला अति सक्रिय तथा इमोशनल-ब्रेक सेंटर प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स अति कमजोर होने से व्यक्ति मनोअगवापन से ग्रसित हो घातक कृत्य पर उत्तारु हो जाता है। आत्महत्या के 70 फीसदी मामले घोर संकट से उत्पन्न आवेग में होते हैं जबकि 30 फीसदी मामले योजनाबद्ध होते हैं।
निवारण :
नेशनल सुसाइड प्रिवेंशन स्ट्रेटजी में आत्महत्या को अपराध श्रेणी से हटा कर व्यक्ति के रेस्क्यू,रिलीफ व रिहैबिलिटेशन पर जोर दिया गया। डॉ जॉन ड्रेपर के अनुसार कनेक्ट,कोलैबोरेट व चॉइसफुल रिहैबिलिटेशन सुसाइडल प्रिवेंशन में बहुत ही कारगर है। लाइफ-इंस्टिकंट हार्मोन या जीवेष्णा हार्मोन डोपामिन, ऑक्सीटोसिन , इन्डॉर्फिन व सेराटोनिन चुनौतियों से उबरने का संबल यानि मेन्टल-रेजिलिएन्स प्रदान करता है। मनोसक्रिय दवाएं व संज्ञान व्यवहार उपचार बचाव व निवारण में बहुत ही प्रभावी है। पैका लिमिटेड सभागार में विश्व आत्महत्या-निवारण दिवस पर आयोजित मनोजागरूकता कार्यशाला में जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन नें यह जानकारी दी।