-पर्याप्त नींद से दूर होता है फेस्टिवल-फटीग, युवाओं में होता है पोस्ट-फेस्टिवल डिस्फोरिया

डा. आलोक मनदर्शन
अयोध्या। पर्व व त्यौहार न केवल मनोतनाव पैदा करने वाले मनोरसायन कॉर्टिसाल के स्तर को कम करते है बल्कि मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन व डोपामिन तथा आनन्द की अनुभूति वाले हार्मोन एंडोर्फिन व आक्सीटोसिन की मात्रा को बढ़ावा देने मे सहायक होते हैं जिससे मन में स्फूर्ति, उमंग, उत्साह ,आनन्द व आत्मविश्वास का संचार होता है तथा मानसिक शांति व स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है।
साथ ही पर्व-जनित आनंद व उत्तेजना से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन डोपामिन मनोरसायन की बाढ़ इस तरह हावी हो जाती है कि सामान्य कार्य वापसी में अनमनापन महसूस होने लगता है । यह मनोवृत्ति बच्चों,किशोरों व युवाओं में अधिक दिखती है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में पोस्ट-फेस्टिवल डिस्फोरिया या पर्व-पश्चात अनमनापन कहा जाता है। साथ ही, त्यौहार जनित मनोशारीरिक थकान भी उत्पादक दिनचर्या वापसी मे बाधा बन सकती है जिसे फेस्टिवल-फटीग कहा जाता है।
यह दोनो पहलू मिलकर एक मनोप्रभाव का रुप लेते है जिसे फेस्टिवल-हैंगओवर कहा जाता है। कार्यस्थल या सामान्य उत्पादक दिनचर्या वापसी में पर्याप्त नींद,तरल पेय व विश्राम का अहम योगदान होता है क्यूंकि नींद ब्रेन-बॉडी चार्जर होता है तथा ब्रेन का 80 फीसदी हिस्सा तरल पदार्थ ही है, वहीं दूसरी तरफ होली फेस्टिवल के कुछ दिनों पूर्व से लेकर बाद तक भी पर्व-जनित गतिविधियों व मौजमस्ती के बीच निद्रा व खानपान दुष्प्रभावित रहता है।
कार्य-स्थल या शैक्षणिक-संस्थान के हमजोली समूह में खुशमिजाजी व परस्पर सहयोग से मूड-स्टेबलाइज़र हार्मोन सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ती है जिससे उत्पादकता की सामान्य दिनचर्या की टोन वापस आ जाती है । यह बातें होली-पर्व जनित पोस्ट-फेस्टिवल डिस्फोरिया जागरूकता विज्ञप्ति में डा आलोक मनदर्शन ने बतायी ।