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रामोत्सव के मंच पर लांच होगा फिल्म ‘गुमनामी’ का प्रीमियर

-नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत व गुमनामी बाबा सिद्धांत के आसपास का रहस्य

अयोध्या। देव दीपावली पर श्री राम नगरी के सूरसरि मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय रामोत्सव व अयोध्या लिटरेचर फेस्टिवल में गुमनामी बाबा जिनकी ज्यादातर एक्टिविटी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलती है और काफी लोग यह मानते हैं की विमान दुर्घटना के बाद नेताजी अयोध्या में आकर के रहे उनके जीवन पर आधारित सन्यासी देशनायक ’गुमनामी’ का प्रीमियर लांच होगा। कार्यक्रम के संयोजक प्रियनाथ चाटोपाध्याय ने बताया की बॉलीवुड फिल्म ‘गुमनामी’ 2 अक्टूबर की रिलीज से पहले सुर्खियों में बनी हुई है और सुर्खियां बटोर रही है। उसी विषय पर एक और फिल्म पाइपलाइन में है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत और गुमनामी बाबा सिद्धांत के आसपास का रहस्य है। निर्देशक अमलान कुसुम घोष ने चुनौती ली और 6 नवंबर को श्री रामोत्सव अयोध्या के मंच पर गुमनामी बाबा और भगवान रामलला जी की भूमि में फिल्म का प्रीमियर होगा।

उन्होंने बताया कि फिल्म निर्माता अमलान कुसुम घोष एक राजनीतिक थ्रिलर के साथ अपनी फीचर फिल्म की शुरुआत करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, जिसमें भारतीय क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 1945 के विमान दुर्घटना में कथित रूप से लापता होने के बाद एक साधु के भेष में फिर से उभरने की संभावना है। इसलिए अयोध्या में फिल्म का प्रीमियर न केवल ऐतिहासिक है बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में अयोध्या की भूमिका को भी पहचानना है। उन्होंने कहा इस विषय पर काम करना मेरी जिम्मेदारी है। नेताजी पर अब तक बनी फिल्में 1945 (विमान दुर्घटना का वर्ष) तक के उनके जीवन से संबंधित हैं।

लेकिन मुझे आश्चर्य है कि किसी भी निर्देशक ने इस तथ्य पर काम क्यों नहीं किया कि नेताजी 1945 के बाद जीवित हो सकते थे। उन्होंने ने बताया कि यद्यपि कथित दुर्घटना के बाद राष्ट्रवादी के पुनरुत्थान और एक पवित्र व्यक्ति की आड़ में रहने के कई सिद्धांत हैं। निर्देशक ने कहा कि उन्होंने अपनी फिल्म के आधार के रूप में गुमनामी बाबा विद्या (सबसे स्थायी सिद्धांतों में से एक) को चुना और वैज्ञानिक साक्ष्य गुमनामी बाबा (फैजाबाद में गुमनामी बाबा/भगवानजी/महाकाल और उत्तर प्रदेश में अयोध्या) को नेताजी के रूप में पहचानते है। इसलिए हमने उनके इर्द-गिर्द अपनी फिल्म को आधार बनाया है।

गायब होने के पीछे की सच्चाई का पता लगाने के लिए भारत सरकार ने तीन जांच आयोगों का गठन किया। 1999 में मुखर्जी आयोग सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम.के. मुखर्जी ने कथित रूप से गायब होने की छह साल की लंबी जांच शुरू की। हालांकि न्यायमूर्ति मुखर्जी ने रिपोर्ट में हवाई दुर्घटना सिद्धांत को खारिज कर दिया। लेकिन उन्होंने यह निष्कर्ष नहीं निकाला कि संन्यासी बोस थे, क्योंकि किसी भी ठोस सबूत की अनुपस्थिति थी।

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