स्तनपान न कराने का फितूर, मनोपरामर्श करेगा दूर : डा. आलोक मनदर्शन

by Next Khabar Team
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-स्तनपान है मां-शिशु लव-हार्मोन बूस्टर, अपर्याप्त-स्तनपान बन सकता है बाल- मनोविकार

अयोध्या। स्तनपान से शिशु को पोषण व रोग-प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थ कोलस्ट्रम प्राप्त होता है तथा माँ व शिशु के मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन ऑक्सीटोसिन का संचार होता है जो माँ को प्रसवोत्तर अवसाद से उबारने व शिशु के स्वस्थ मानसिक विकास में सहायक है। स्तनपान न कराने के पीछे शारीरिक सुडौलता व आकर्षण कम होने का एक भ्रामक भय है जिसे बॉडी-डिसमार्फिया कहा जाता है।

इस मनोरोध के चलते दिनोदिन शिशु स्तनपान न कराने की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ चुकी है कि पूरा विश्व स्तनपान-सप्ताह मनाने को बाध्य है । स्तनपान- वंचित शिशुओं में मनोशारीरिक विकार की संभावना होती है जो तेज़ी से बढ़ रहे बाल-मनोविकार ए डी एच डी व ऑटिस्टिक स्पेक्ट्रम डिसआर्डर के रूप में दिख रहा है। स्तनपान न कराने वाली महिलाओं में हार्मोनल,मनोजैविक व मनोरसायनिक दुष्परिणाम की संभावना होती है।

बॉडी डिसमार्फिया एक मनोविकार है जिसकी शिकार वे महिलाएं ज्यादा होती हैं जिनमे पहले से ही बनावटी या आत्ममुग्धता व्यक्तित्त्व विकार होता है। रही सही कसर ग्लैमर व फैशन तथा बेबी फ़ूड प्रोडक्ट्स के विज्ञापन पूरे कर देते है।

समाधान

स्तनपान रुझान बढ़ाने में मनोरोध को दूर करना आवश्यक है। बॉडी- डिसमार्फिया या शरीर बेडोल होने के भ्रामक-भय की रिवर्स रोल मॉडलिंग तथा इमोशनल-हुकिंग थेरैपी से मदर-बेबी बॉन्डिंग को मनोपरामर्श द्वारा बढाकर लव-हार्मोन ऑक्सीटोसिन में वृद्धि स्वरूप स्तनपान के रुझान में सुधार होता है। यह जानकारी डा आलोक मनदर्शन ने राज्य स्वास्थ्य व परिवार कल्याण संस्थान, लखनऊ में आयोजित छह-दिवसीय इंटीग्रेटेड सत्र में प्रतिभागोपरान्त दी ।

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