सबके स्वास्थ्य के संकल्प की सिद्धि के लिए सबका साथ जरूरी
चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना ने कराल रूप में विश्व के अधिकांश देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली, पाकिस्तान, इजरायल आदि की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और संस्थाओं को बौनी कर दिया है।
अब तक विश्व मे लगभग 23 लाख से अधिक संक्रमित और लगभग 1 लाख 50 हजार से अधिक मृत्यु दर्ज हो चुकी हैं।भारत मे भी यह आंकड़ा साढ़े 16 हजार से अधिक संक्रमित और 500 से अधिक मृत्यु को पार कर गया है।अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति लगातार बेहतर बनी हुई है और अभी हम सामुदायिक संक्रमण का खतरे से बचे हुए हैं, इसका सबसे प्रमुख कारण निश्चित रूप से भारत सरकार द्वारा लिए गए समयोचित निर्णय , कुशल प्रबंधन, और प्रशासन व नागरिकों के सहयोग व समन्वय ही है।
तमाम विधाओं के शोधकर्ता व वैज्ञानिक सभी वायरस की पहचान व वैक्सीन बनाने में प्रयासरत हैं, किन्तु इसकी अनिश्चित प्रकृति एक जटिल समस्या है। कुछ मामलों में तो बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के भी कोरोना के मरीजों की पुष्टि हो रही है यह संकेत है कि वायरस की संरचना अथवा स्वरूप में परिवर्तन भी संभव है। इसकी संक्रामकता इतनी व्यापक है कि गरीब से लेकर विश्व के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष तक इसके असर से न बच सके, यद्यपि सन्तोष की बात यह है कि मृत्यु दर 2-4% ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर बचाव व उपचार का प्रोटोकॉल घोषित कर दिया है जिसका सभी देश पालन करवा रहे हैं।
अदृश्य शत्रु का सामना सभी संभव विकल्पों के साथ मिलकर ही किया जाना चाहिए ,इसी नीति के तहत ज्यादातर देश जनहानि को न्यूनतम करने के लिए हर संभव उपाय कर रहे है जिसके तहत पारंपरिक पद्धतियों का भी प्रयोग कर रहे हैं।
भारत ऐसा बहुसंख्य आबादी वाले देश है जहां आयुर्वेद व होम्योपैथी समुन्नत स्थिति में हैं, अतः जनपेक्षाओं के अनुरूप चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने हेतु भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय गठित किया जिसके अंतर्गत मानव के समग्र स्वास्थ्य रक्षा हेतु आयुर्वेद, यूनानी,योग एवं होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।
प्रचलित पद्धतियों की औषधियों के हानिकारक दुष्प्रभाव से बचने के लिए आम जनता का विश्वास है कि होम्योपैथी व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में किसी भी रोग को समूल नष्ट करने की क्षमता है। आयुष मंत्रालय ने शुरुआत में ही एक एडवायजरी जारी कर कुछ उपायों को अपनाने की सलाह दी थी, जिसमे होम्योपैथी की औषधि का भी उल्लेख था। अभी कुछ दिन पूर्व मध्य प्रदेश राज्य होम्योपैथी परिषद की रजिस्ट्रार डा आयशा अली ने होम्योपैथी की दवा का वितरण कराने की अपील की।फिर भी सरकार का होम्योपैथी में भरोसे को लेकर संशय प्रतीत होता है।
होम्योपैथी के प्रयोग सन्दर्भ में जब बात होती है तो तर्क दिया जाता है कि होम्योपैथी में कोरोना के उपचार के प्रमाण उपलब्ध नहीं है। क्योंकि यह रोग सभी के लिए नया है और जब किसी भी पद्धति में उपचार उपलब्ध होने के प्रमाण अब तक सामने नहीं आये हैं किन्तु उपचार तो इसी आधार पर किया जा रहा है कि नुकसान कम से कम हो। इस दृष्टि से यह उपचार कम और आपदा काल मे कुशल प्रबंधन अधिक है। इसलिए अकेले होम्योपैथी के लिए प्रमाण न होने का तर्क तर्कसंगत नहीं।होम्योपैथी में रोग के नाम से चिकित्सा का विधान ही नहीं, इसलिए भी होम्योपैथी सैद्धांतिक रूप से कोरोना के इलाज का दावा नहीं कर सकती। रोगी की अवस्था व लक्षणों के आधार पर चयनित औषधि की न्यूनतम मात्रा के प्रयोग से भी किसी भी तरह की हानि की संभावनाएं अन्य पद्धतियों की अपेक्षा नगण्य हैं।
भारत मे अनादि काल से भगवान धन्वंतरि को औषधि का देव माना जाता है और आयुर्वेद पारम्परिक चिकित्सा पद्धति है जिसमे चिकित्सा के कई सिद्धांत बताये गए हैं उन्ही में से एक है समं समे शमयति अर्थात औषधि एवं रोग के लक्षणों की समानता के आधार पर चिकित्सा, इसे प्रकृति का चिकित्सा सिद्धांत भी माना गया है ।इसी सिद्धांत पर विकसित होम्योपैथी में औषधीय निर्माण में आयुर्वेद का सूत्र मर्दनम गुण वर्धनम के अनुरूप दवाईयों को शक्तिवर्धित किया जाता है। ।
होम्योपैथी के जनक डा हैनिमैन के जीवनकाल में स्कारलेट फीवर की महामारी , 1831 में कॉलरा,
1849 में यूरोपीय देशों में फैले एशियाटिक कॉलरा में डॉ वोनिंगहसन द्वारा,जोहान्सबर्ग के डॉ टाइलर स्मिथ एवम शिकागों के डॉ ग्रिमर द्वारा 1850 में पोलियो के लिए,होम्योपैथी दवाओं का होम्योपैथी सिद्धांतो के आधार पर सफलतापूर्वक प्रयोग का उल्लेख होम्योपैथी पुस्तकों में हैं । भारत मे जे ई के लिए वर्ष 1999 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों एवं होमियोपैथी विभाग के सहयोग से वर्ष 2002 तक अभियान चलाकर सफलता दर्ज की थी। डेंगू ,चिकन पॉक्स, चिकनगुनिया आदि संक्रामक एवं अन्य वायरस जनित रोगों में भी होम्योपैथी औषधियों के प्रभाव से जनता लाभांवित हुई है।
राष्ट्रीय आपदा के समय जब सबके स्वास्थ्य की चिंता करनी हो तो समग्रता का सिद्धांत लागू किया जाना राष्ट्रसेवा का अवसर प्रदान करने जैसा है। सभी चिकित्सा पद्धतियों का उद्देश्य मानव के स्वास्थ्य को बिना नुकसान पहुचाएं सुरक्षित करना है । अतः सबके स्वास्थ्य की रक्षा के संकल्प की सिद्धि के लिए सभी चिकित्सा पद्दतियों को समन्वितस्वरूप में कुशल प्रबंधन के साथ अपनाने की आवश्यकता है। उपचार के लिए यदि किसी के पास कोई दवा नही हो, नुकसान अवश्यम्भावी हो तो समग्रता के पालन के साथ सबसे कम नुकसान वाले मार्ग पर चलना ज्यादा श्रेयस्कर है।