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सदन में उठा चौरासी कोसी परिक्रमा के पौराणिक स्थलों का मुद्दा

सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि चौरासी कोस में ऋषियों-मुनियों के स्थानों का किया जाय विकास

अयोध्या। सांसद लल्लू सिंह ने लोकसभा में चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग में स्थित पौराणिक काल में सैकड़ों ऋषियों के तपस्थली के रुप में धार्मिक ग्रंथों में विख्यात आस्था के केन्द्रो को विकसित किये जाने का मुद्दा उठाया। लोकसभा में सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि चौरासी कोस में ऋषियों-मुनियों के जितने स्थान है, शायद ही इतना सघन रूप मे देश में कहीं और ऐसी जगह है। लेकिन उपेक्षा के कारण स्थानीय लोग भी अपने महान पूर्वजों को भूल गए है। हमे विश्वास है कि ८४ कोस का विकास होने से अयोध्या अपने सांस्कृतिक वैभव के शिखर को प्राप्त करेगी।
उन्होने कहा कि अयोध्या की जो आध्यात्मिक भित्ति निर्मित हुई , उसमें इस सांस्कृतिक परिधि का अहम योगदान माना जाता है। इसीलिए धर्मनगरी के चतुर्दिक चौरोसी कोस क्षेत्र का राम से नाभिनाल जैसा अटूट संबंध है। इस सांस्कृतिक क्षेत्र पर फोकस किया जाना बहुत जरूरी है क्योकि इसके पीछे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य भी छिपा हुआ है। अयोध्या के चारों ओर ऋषियों, महर्षियों, साधकों, मुनियों की तपस्थली है। ८४ कोसी परिक्रमा की शास्त्रीय सीमा का निर्धारण इसके चारों कोनों में स्थित स्थलों से किया जाता है। पूरब में श्रृंगी ऋषि, दक्षिण में आस्तीक ऋषि का स्थल जन्मेजय कुंड, पश्चिम में अगस्त्य ऋषि का स्थान और जंबू द्वीप और उत्तर में मखौड़ा (मख भूमि) को माना जाता है। ८४ कोस २७५ किमी. लंबा है जिसमें ३५ किमी. कच्चा मार्ग है। इसी परिधि में सैकड़ों की संख्यां में ऋषियो-महर्षियो-मुनियों की साधना स्थली है। मान्यता है कि इन ऋषियों ने अपने तप से इस क्षेत्र को आध्यात्मिक दृष्टि से संपन्न किया। इन कुटियों के दिन बहुरेंगे तो श्रद्धालु यहां तक जाएंगे और कई दिनों तक टिकेंगे। चौरासी कोस की परिधि मे पुत्रकामेष्टि यज्ञस्थल मखौड़ा, श्रृंगी ऋषि आश्रम, दुग्धेश्वर महादेव, आस्तीक, जनमेजय कुंड, रुद्रावली, गौतम ऋषि आश्रम, सुमेधा ऋषि की साधना स्थली कामाख्या भवानी, भौरीगंज, राजापुर, सूकर क्षेत्र, नरहरिदास की कुटी, ऋषि यमदग्नि की तपस्थली जमथा, अष्टावक्र आश्रम, ऋषि पाराशर की तपस्थली परास गांव और शौनडीहा, योगिराज की भरत की तपोस्थली नंदीग्राम, श्रवण कुमार की तपोस्थली बारुन, चिर यौवन बने रहने की कला बताने वाले ऋषि च्यवन का आश्रम, तंत्र शास्त्र को पुष्ट करने वाले ऋषि वामदेव तथा अगस्त्य और रमणक जैसे ऋषियों के स्थान है।

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