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रक्षा उपकरणों के बाद शोध का खर्च सर्वाधिक : कानितकर

“शोध प्रविधि” विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला का पाचवां दिन

“शोध प्रविधि” विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला

शोध परिणाम तबतक अच्छा नहीं होगा जबतक उसकी कार्य प्रक्रिया ठीक नही होगी : मुकुल कानितकर

कार्यशाला में विचार व्यक्त करते मुकुल कानितकर

अयोध्या। डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संत कबीर सभागार में इन्टरनल क्वालिटी एश्योरेन्स सेल के अन्तर्गत “शोध प्रविधि” विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला के पाचवें दिन कार्यशाला के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष मुकुल कानितकर एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में आर0एफ0आर0एफ0 संयोजक एवं वरिष्ठ मुख्य वैज्ञानिक राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान के डाॅ. राजेश बेनीवाॅल रहें। कार्यशाला की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने की।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि मुकुल कानितकर ने कहा कि विद्यार्थियों के शोध परिणाम तबतक अच्छा नहीं होगा जबतक उसकी कार्य प्रक्रिया ठीक नही होगी। विश्व में सर्वाधिक शोध के क्षेत्र में निवेश हो रहा है। यदि शोध के क्षेत्रों का आंकलन किया जाये तो यह स्पष्ट होता है कि रक्षा उपकरणों के बाद शोध का खर्च सर्वाधिक हो रहा है। शोध के मामलों में चिंता नहीं चिंतन पर कार्य करने की आवश्यकता है। वर्तमान परिवेश में शिक्षा की समस्याओं पर नही समाधान पर कार्य करना होगा। कानितकर ने कहा कि शोध में व्यवहारिक विधियों का उपयोग काफी महत्वपूर्ण है यदि आप ने सही मात्रा में रसायन मिलाया है तो उसका परिणाम भी सुनिश्चित होगा। शोध कार्य की प्रक्रिया के बारे में जितनी सजगता होगी तभी अच्छे परिणाम आयेंगे। वर्तमान शोध व्यवस्था पर उन्होंने 2017-18 में देशभर में 30 हजार पी0एच0डी0 उपाधि छात्रों को अवार्ड की गई। इस प्रकार शिक्षण व्यवस्था में सिर्फ उपाधि वितरण से शोध प्रक्रिया में सुधार होने वाला नही है। गुणवत्तापरक शोध के लिए हमें अपनी प्राचीन पद्धतियों को अपनाना होगा।

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शोध कार्य में लक्ष्य निर्धारण महत्वपूर्ण: मनोज दीक्षित

कार्यशाला में विचार व्यक्त करते कुलपति प्रो मनोज दीक्षित

कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि शोध कार्य करने की एक मानसिक अवस्था होती है उसके बाद विज्ञान व अन्य विषय आते है। मौलिक ज्ञान बहुत अहम है शोधार्थी को इसका वाहक होना चाहिए। प्रत्येक शोध कार्य में लक्ष्य निर्धारण महत्वपूर्ण होता है लक्ष्य के बिना शोध नही किया जा सकता है। प्रो0 दीक्षित ने चाइना का उदाहरण देते हुए बताया कि आज चाइना ने अपने परपंरागत शोधों पर ही कार्य कर रहा है और उस क्षेत्र में अपनी क्षमता को विकसित कर विश्व समुदाय के लिए एक संदेश दिया और पूरी दुनियां में अपनी क्षमता को सिद्ध कर दिया। शोध को सीमित संदर्भों में न अपनाये उसे वृहत स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है।

शोध कार्य करने से पूर्व उसकी समस्या को जानना आवश्यक:डाॅ. राजेश बेनीवाॅल

कार्यशाला को सम्बोधित करते डाॅ. राजेश बेनीवाॅल

विशिष्ट अतिथि के रूप में डाॅ0 राजेश बेनीवाॅल ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि शोध कार्य करने से पूर्व उसकी समस्या को जानना आवश्यक है। जब आप समस्या का समाधान कर लेगे तभी शोध कार्य को गति मिलेगी। आर0एफ0आर0एफ0 के समन्वयक प्रो0 आर0एन0 राय ने कहा कि शैक्षिक संस्थानों में शोध का उद्देश्य निश्चित होना चाहिये। आज साहित्यिक, वाणिज्यिक एवं अन्य विषयों में शोध की गुणवत्ता में कमी होती जा रही है। प्रो0 राय ने बताया कि शोध के क्षेत्र में इन गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए आर0एफ0आर0 एफ कार्य रही है। कार्यशाला के प्रारम्भ के माॅ सरस्वती की प्रतिमा माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन किया गया। अतिथियों का स्वागत कुलपति जी द्वारा ग्रन्थ भेंटकर किया गया। कार्यशाला का संचालन आई0क्यू0ए0सी0 के निदेशक एवं संयोजक प्रो0 अशोक कुमार शुक्ला द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो0 जसवंत सिंह, प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह, प्रो0 राजीव गौड़, प्रो0 एस0के0 रायजादा, प्रो0 चयन मिश्र, प्रो0 एस0एस0 मिश्र, प्रो0 अनुप कुमार, प्रो0 नीलम पाठक, प्रो0 फारूख जमाल, डाॅ0 दिलीप सिंह, प्रो0 अनूप कुमार, डाॅ0 शैलेन्द्र कुमार, डाॅ0 नीलम यादव, डाॅ0 तुहिना वर्मा, डाॅ0 सुरेन्द्र मिश्र डाॅ0 सिधू, डाॅ0 नीलम सिंह, डाॅ0 अनिल यादव, डाॅ0 महेन्द्र सिंह, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डाॅ0 आर0एन0 पाण्डेय, डाॅ0 अशोक मिश्र, डाॅ0 त्रिलोकी यादव, डाॅ0 अनुराग पाण्डेय, डाॅ0 अशोक राय, इं0 आर0के0 सिंह, इं0 परिमल त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी उपस्थित रहे।
कार्यशाला के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए आर0एफ0आर0एफ0 संयोजक एवं वरिष्ठ मुख्य वैज्ञानिक राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान के डाॅ0 राजेश बेनीवाॅल ने कहा कि भारतीय शोध प्रणाली में आवश्यक सुधारों की जरूरत है। शोध के लिए सही विषय का चयन उसकी प्रासंगिकता एवं तथपरक जानकारी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि कई प्रकार के शोधों में जब निष्कर्ष पर पहुचा जाता है तो उसकी सफलता एवं विफलता के तय होने के एक मानक नही हो सकते। पेंसिलिन के आविष्कार का जन्म एक प्रयोगों की श्रंखला से प्राप्त हुआ।
सत्र में आर0एफ0आर0एफ0 नागपुर के शोध विशेषज्ञ डाॅ0 पवन कुलकर्णी ने मौलिक शोध कार्यों पर समूह गठित कर सामाजिक विषयों पर शोध, शीर्षक निर्धारण, शोध प्रक्रिया, डेटा कलेक्शन पर प्रतिभागियों के बीच सीधा कार्यक्रम संचालित किया। आई0क्यू0ए0सी0 के निदेशक एवं संयोजक प्रो0 अशोक कुमार शुक्ला ने कहा कि शोध कार्य वैज्ञानिक परिधियों को मूल्यांकन शोध से ही सामाजिक समस्याओं का निदान संभव है। प्राचीन काल के हुए शोधों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय ऋषि परपंरा कितनी वैज्ञानिक थी। पृथ्वी की खोज से लेकर जैव मंडल के विकास तक का पूरा वृतांत देश के प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध है। हमें अपनी मूल्यवान प्राचीन शिक्षण प्रक्रिया को अपनाना होगा। कार्यशाला का संचालन प्रो0 नीलम पाठक ने किया। कार्यशाला के द्वितीय सत्र में बड़ी संख्या में शिक्षक एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।

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