-ब्रेन-रिवार्ड हार्मोन की अधिकता है ब्रेन-वाश की दशा, डिजिटल-प्लेटफार्म कर रहा मास-ब्रेनवाश
अयोध्या। पहलगाम आतंकी घटना ने आतंक के मनोवैज्ञानिक पहलू के प्रति ध्यान आकर्षित किया है। फिल्म ’दि केरला स्टोरी’ में आम आदमी को ब्रेन-वाश कर आतंकी बनने का चित्रण है। ब्रेन-वाशिंग शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमरीकन जर्नलिस्ट एडवर्ड हंटर ने किया । ब्रेन-वाश, मेंटल-हाइजैक या ब्रेन-ट्रैप आदि नामो से सम्बोधित यह एक मनोगतिकीय तकनीक है, जिससे लक्षित व्यक्ति की सोच, विचार व विश्वास को इस प्रकार रिप्रोग्राम किया जाता है कि वह जघन्य कृत्य करने तथा खुद को सही ठहराने पर उतारु हो जाता है।
मनोविकार व नशे की है अहम भूमिका :
धार्मिक या अन्य आत्ममुग्धता, बॉर्डरलाइन,एंटीसोशल या बिषम व्यक्तित्व-विकार तथा उन्माद, मनोविदलता ,अवसाद, सब्स्टेंस-यूज डिसऑर्डर आदि से ग्रसित युवाओं के ब्रेन-वाश होने की सम्भावना प्रबल होती है, रही सही कसर पूरी कर देता है मादक-द्रव्य सेवन, क्योंकि इससे ब्रेन-रिवार्ड हार्मोन डोपामिन बढ़कर मनोअग़वापन की तरफ जाता है। साथ ही लोक परलोक के छद्म-प्रलोभन या भय उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। डिजिटल- प्लेटफॉर्म मास ब्रेन-वाशिंग का इंस्टेंट व यूनिवर्सल माध्यम बन गया है।
लक्षण व बचावः
मनोअगवा-ग्रस्त या ब्रेन-वाश हो चुके व्यक्ति के व्यवहार में आसामन्य बदलाव, नयी आस्था व विश्वास, परिजन व दोस्तों से दूरी, नये सीक्रेट ग्रुप से कोडवर्ड बात, क्रिटिकल थिंकिंग व इनसाइट की कमी जैसे लक्षण दिख सकते हैं । ब्रेन-वाश से बचाव के लिये स्व-विवेक का प्रयोग, लालच या प्रलोभन के प्रति सतर्कता, अज्ञात ऑनलाइन सम्पर्को से गोपनीय जानकारी साझा न करना तथा आँख मूंदकर विश्वास न करना प्रमुख सावधानी उपाय हैं। मनोद्वंद की स्थिति में मनोपरामर्श सटीक उपाय होता है। ब्रेन-वाश एब्यूज जागरूकता वार्ता में यह जानकारी डा आलोक मनदर्शन ने दी।