कोरोना काल मे सायकोलॉजिकल केयर
इन दिनों चर्चा का केंद्र कोरोना बन गया है जिसके रहस्यों की कई परते खुलना अभी बाकी है। किसी सामान्य व्यक्ति से भी इसके बारे में पूछा जाय तो उसका सहज उत्तर कुछ इस तरह से मिलता है, “अरे भैया कोरोना कौनो मायावी वायरस है, बड़ी छुआ छूत की बीमारी है, छींक, खांसी, बलगम, थूक तक के नजदीक जाय से होय जात है, क्या पता किसको है इसीलिए शासन प्रशासन बड़ा सख्त है, सबको घर मे ही रहने को कहे हैं,एक को हुआ तो उसके सम्पर्क में जेतना लोग आए होंगे सबकी जांच होए, सब 14 दिन के लिए समझो नजरबंद, अस्पताल ले गए तो पता नाय कितने दिन और क्या इलाज चले, कोई इलाज भी नही पता है, अमेरिका जैसी जगह हालत खराब है, यहाँ तो कहो सरकार सुरु से ही इतनी सख्ती करे है तो कुछ काबू में है, अब तो पता चला है कि लक्षण न दिखे तब भी होय सकता है, बचे के इक्के तरीका है सुरक्षित अपने घर मे ही रहो, केहू से न मिलो कुछ दिन।”
उक्त संवाद से दो संकेत स्पष्ट हैं प्रथम तो यह कि प्रचार प्रसार और मीडिया से अधिकांश जनता को कोरोना के बारे यह सामान्य जानकारी है सर्दी, सूखी खांसी, बुखार, व सांस लेनें में अथवा गले मे खराश होना कोरोना हो सकता है, और इसके संक्रमण को रोकने के लिए ही हाथों की सफाई, मास्क, जरूरी है । यद्यपि समय के साथ लगातार हो रहे चिकित्सकीय अध्ययनों में यह बात भी सामने आई कि बिना लक्षणों के व्यक्ति भी संक्रमित पॉजिटिव पाए गए ,यह जटिलता का सूचक है जिसमे अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी । इसका दूसरा पक्ष व्यक्ति की मनःस्थिति से जुड़ा है इसलिए अदृश्य किन्तु चिकित्सकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज को कोरोना और कोरोना जनित भय से बचाने का दायित्व उन्ही पर है।
टीवी, मोबाइल, अखबार, व आपसी संवाद में कोरोना पर ही चर्चा आदि से जाने अनजाने हमे स्वयं बीमारी से ग्रसित होने का पहले डर पनपता है फिर तरह तरह की कल्पनाएं डर को बेचैनी में बदल देती है इससे जुड़ी चिंता से भूख प्यास, नींद, डिस्टर्ब हो सकते है जिससे तमाम अन्य शारीरिक दिक्कते, दर्द व्यवहार में चिड़चिड़ापन , गुस्सा , अवसाद आदि महसूस हो सकते है जिनका कारण मानसिक ही है, इसलिए इन्हें सायकोसोमैटिक डिसऑर्डर कह सकते हैं।
जानिए क्या है क्वारंटाइन, आइसोलेशन, और लॉक डाउन का मतलब
एक उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ यात्रा में हों तो दूरी और समय दोनों नही कटते, किन्तु संवाद शुरू होने पर सहजता हो जाती है, ऐसे ही लॉक डाउन, क्वारंटाइन, और आइसोलेशन जैसे शब्दों सही परिचय न होने से इन्हें स्वीकार कर पाने में असहजता होती है।इसलिए आसान शब्दों में इसकी प्रक्रिया को यूं समझें कि यह तीनो ही कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बैरियर जैसे हैं अंतर इनके लगाये जाने के तरीके में है। पूरे समाज की व्यापक गतिविधि पर प्रतिबंध का अनुशासन है लॉक डाउन, एक ऐसे व्यक्ति को परिवार व समाज से पृथक करना जो किसी संक्रमित व्यक्ति से किसी भी तरह सम्पर्क में आया हो तो यह प्रतिबंध क्वारंटाइन कहलाता है, और किसी संक्रमित व्यक्ति को ही सामान्य आबादी से अलग चिकित्सकीय देखरेख में रखना आइसोलेशन कहलाता है। क्योंकि कोरोना के लक्षणों प्रदर्शन और दो आवश्यक जांच रिपोर्ट के निगेटिव होने की पुष्टि तक इनका समय अलग अलग निर्धारित किया जा सकता है। इस पूरी अवधि में व्यक्ति प्रशासन, स्वास्थ्य कर्मियों या चिकित्सको की निगरानी में रहता है।
यह बात सत्य है प्रत्येक व्यक्ति संक्रमित नहीं, किन्तु वायरस की प्रकृति व प्रवृति ऐसी है कि संकट सभी पर समान रूप से संभावित है और सावधानी और बचाव ही एक मात्र उपाय है, इसलिए स्वयं को, परिवार को, समाज को राष्ट्र को इस संकट से बचाने में यह हमारा योगदान है ऐसा मानकर अपनी मनःस्थिति को सहयोगी भाव से जोड़ना चाहिए। दीर्घकालिक संघर्ष में दबावयुक्त मनस्थितियाँ सभी मे हो सकती हैं, मरीज पर रोग से मुक्ति और जीवन के संकट, इलाज की अनिश्चितता का दबाव, समाज , सरकार व शासन को दैनिक कार्यों और अर्थव्यवस्था व प्रगति की चिंता, चिकित्सा कर्मियों व व्यवस्था में लगे कर्मियों पर अतिरिक्त सतर्कता, सावधानी, व्यवस्था नियंत्रण, कार्य की जिम्मेदारी, व जवाबदेही का दबाव बनना अदृश्य पक्ष है।
बचाव के लिए क्या करें –
कोरोना काल मे उपरोक्त तथ्यों को समझते हुए सर्वप्रथम तो इस अदृश्य शत्रु से संघर्ष के लिए राष्ट्र के पक्ष में आपकी भूमिका व योगदान क्या होना चाहिए , इस विषय पर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ चिंतन अवश्य करें तो आपमें सभी अनुशासन के प्रति सहयोग और स्वीकार्यता का भाव पनपेगा।
जीवन के प्रति आशा और विश्वास यही सर्वोत्तम औषधि है, और अप्रमाणिक जानकारी समाचार अफवाहें इस काल में व्याधियों को पोषण है, इसलिये आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं और अफवाहों पर ध्यान न दें।
घर मे परिवार व बच्चों के साथ समय का सदुपयोग सृजनात्मक गतिविधियों लेखन, अध्ययन, गीत, संगीत, कम्यूटर सीखना, चित्रकारी, पेंटिंग, बागवानी, घरेलू खेल, सुबह शाम, शारीरिक श्रम, योग, प्राणायाम, व्यायाम में करें। रिश्तेदारों मित्रों से फोन पर इस वीडियो कसन्फ्रेन्सिंग से बात कर उत्साहवर्धन करें, समाज मे आस पास के गरीब जरूरतमंद, पशु पक्षियों की मदद कर सकते हैं। यदि आप क्वारंटाइन या आइसोलेशन में भी हैं तो देखें और विचार करें कि जहां कोई अपना नही वहां भी आपके जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सक व सभी स्टाफ अपनो से दूर होकर लगे है, उनका सम्मान करें, उन्हें सहयोग करें, उन्हें सही जानकारी दें। यदि बच्चे हैं तो उनके प्रश्नों को सुने, उन्हें बोलने का पूरा मौका दें, डाटें नहीं, प्यार से खेल में समझाएं कैसे यह खेल जीतना है।
साथ ही शरीर के पोषण का ध्यान रखें , शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने लिए विटामिन सी युक्त आहार लें, मौसमी फल, हरी सब्जियां, खीरा, टमाटर, नारियल पानी, संतरे, नींबू का जूस,आंवले का रस पियें। नीम की कोपले,तुलसी की पत्ती, गिलोय, हल्दी मिश्रित दूध,ले सकते हैं।अदरक ,तुलसी, काली मिर्च दालचीनी गुड़ का काढ़ा पियें।आयुष मंत्रालय द्वारा जारी सुझावों का पालन करें और कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर घबराएं नही अपने चिकित्सक या शासन के हेल्प लाइन नम्बर पर फोन से पहले जानकारी लें , तदनुरूप ही कोई दवा खाएं।आयुष मंत्रालय ने होम्योपैथी की आर्सेनिक एल्ब दवा की सलाह दी है किंतु दवा चिकित्सक के मार्गदर्शन में हीं लेना चाहिए।
ध्यान रखें कोरोना कलंक नहीं है, आपकी परीक्षा का प्रश्नपत्र है, जिसमे जीवन के सही विकल्प का चुनाव आपके हाथों है, इसलिए सजग रहे, सतर्क रहें, जानकारी बढ़ाएं, और स्वस्थ रहें।