श्रावण कृष्ण पक्ष की तृतीया को मठ मंदिरों से निकलती थी शोभायात्रा, मणिपर्वत पर लगता था मेला
अयोध्या। कोरोना के चलते गुरुवार को भगवान के विग्रह झूला झूलने के लिए मठ मंदिरों से बाहर नहीं निकले। भक्तों को संक्रमण से बचाने के लिए भगवान के विग्रह मठ मंदिरों में ही झूला झूल रहे हैं। पारंपरिक रूप से सावन माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या में ऐतिहासिक पावन झूले मेले की शुरुआत होती रही है। कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को दूसरी पहर राम नगरी के गली गली में स्थित मठ मंदिरों से भगवान के विग्रह रथों पर सवार होकर गाजे-बाजे के साथ झूला झूलने के लिए निकलते थे। इस शोभायात्रा को देखने और झूलनोत्सव का साक्षी बनने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती थी। भगवान के विग्रह पुरातात्विक मणि पर्वत पहुंच झूला झूलते थे और फिर यहां से शोभायात्रा के साथ अपने-अपने मठ मंदरों के लिए रवाना होते थे। इस झूलनोत्सव को देखने के लिए लोगों का इतना बड़ा हुजूम एकत्र होता था कि इसको पारंपरिक रूप से मणि पर्वत का मेला का नाम दे दिया गया। इसी दिन मठ मंदिरों में भगवान के विग्रह का झूलन शुरू हो जाता था जो पूर्णिमा तक चलता था।
हालांकि इस बार महामारी के चलते हालात बदले हुए हैं। जिसके चलते भगवान के विग्रह झूला झूलने के लिए मणि पर्वत नहीं गए लेकिन मठ मंदिरों में पारंपरिक रूप से झूलनोत्सव की शुरुआत हो गई। राम नगरी के चर्चित कनक भवन,दशरथ महल, बड़ी छावनी छोटी छावनी समेत अन्य मठ मंदिरों में झूले पड़ गए हैं और भगवान के विग्रह उस पर सवार हैं। सावन मास की पूर्णिमा तक चलने वाले इस झूलनोत्सव को लेकर मठ मंदिरों में कजरी और सावन गीत शुरू हो गया है।सीमित तादात में लोग मठ मंदिरों में पहुंच झूलनोत्सव के साथ साक्षी बन रहे हैं।
मणिरामदास छावनी के महंत व श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट अध्यक्ष के उत्तराधिकारी महंत कमल नारायण दास ने गुरुवार को बताया कि मौजूदा हालात के मद्देनजर संत धर्म आचार्यों ने झूलनोत्सव के लिए मणि पर्वत तक शोभायात्रा न निकालने का निर्णय लिया। निर्णय के तहत अपने-अपने मंदिरों में ही झूलन का कार्यक्रम संपन्न होगा।