स्वामी विवेकानन्द थे भविष्य दृष्टा : मुकुल कानितकर
अयोध्या। डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानन्द सभागार के समक्ष स्वामी विवेकानन्द की ध्यानमुद्रा की प्रतिमा का अनावरण किया गया। प्रतिमा का अनावरण मुख्य अतिथि राष्ट्रीय संगठन मंत्री भारतीय शिक्षण मण्डल के मुकुल कानितकर, विशिष्ट अतिथि श्याम साधनालय के निदेशक डॉ0 चैतन्य एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर किया। इस अवसर पर सभागार में अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास एवं दृश्य कला विभाग के संयुक्त संयोजन में स्वामी विवेकानन्द जी का जीवन-दर्शन विषय पर राष्ट्रीय विचार संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि राष्ट्रीय संगठन मंत्री भारतीय शिक्षण मण्डल के मुकुल कानितकर ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के मानाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र भक्त के मापक थे उन्होंने कहा कि मेरी सारी आशा युवाओं से है। किसी राष्ट्र के निर्माण में मुठ्ठी भर युवा एक नये युग की शुरूआत कर सकते है। कानितकर ने कहा कि स्वामी जी ने राष्ट्र के युवाओं से अपील किया था कि 50 वर्षों तक उपासना करो ठीक उसके 50 वर्ष बाद देश को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। स्वामी विवेकानन्द ने भारतवासियों से पूछा था कि क्या आप सच्चे राष्ट्र भक्त है क्या आपका ह्दय उन गरीबों के लिए दुःखी होता है जिनके पास रहने के लिए तृणशैय्या भी नही है। क्या आपका हाथ लोगों के कष्ट दूर करने के लिए उठता है। यदि उपरोक्त प्रश्नों आप खरे उतरते है तो आप राष्ट्र भक्त है। कानितकर ने कहा कि स्वामी जी की प्रेरणा से जमदेश जी टाटा ने इस्पात प्लॉट भारत में लगाया। उन्हीं से प्रेरित होकर टाटा विज्ञान अनुसंधान केन्द्र की भी स्थापना की। स्वामी विवेकानन्द भविष्य दृष्टा के रूप में स्वीकार किये जाते है। स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा शिक्षा मंदिरों के लिए प्रेरक के रूप में विद्यमान है। स्वामी जी के चिंतन में स्वार्थ और संकीर्णता समाप्त करने की शक्ति है। विवेकानन्द जी की प्रेरणा से कं्रांतिकारियों, उद्योगपतियों एवं वैज्ञानिकों को नई दिशा मिली है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द 19 वीं एवं 20 वीं शदी के महानायक के रूप में जाने जाते है। भारत के संदर्भ में आध्यात्मिक चेतना के लिए सवामी जी एवं जननायक के रूप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को मात्र देखने भर से ही जुड़ाव हो जाता है। स्वामी जी अध्ययन करने से नकारात्मकता सकारात्मक दृष्टिकोण में बदल जाती हैं। उनके शिकागों सम्मेलन के वक्तव्य ह्दय से निकलकर लोगों के ह्दय में उतर गये। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि स्वामी जी का कथन था कि विज्ञान का अध्ययन आध्यात्मिकता के बिना संभव नहीं है। हम स्वयं को बगैर पढ़े जा नही सकते। भारत के युवाओं से अपील करते हुए प्रो0 दीक्षित ने कहा कि उद्देश्य पूर्ण जीवन के लिए स्वामी जी का अध्ययन आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि श्याम साधनालय के निदेशक डॉ0 चैतन्य ने कहा कि एक प्रखर विद्वान के रूप में स्वामी विवेकानन्द जिन विषयों का अध्ययन करते थे शीघ्र ही उन्हें याद कर लेते थे। डॉ0 चैतन्य ने कहा कि स्वामी जी ने अपने जीवन के कार्यों में लिखा था कि मैं विद्यार्थियों के बीच काम करेंगे और उनकों ध्यान सिखायेंगे जिससे वे एकाग्रचित हो सके। स्वामी विवेकानन्द अंग्रेजी संस्कृत के साथ कई अन्य भाषाओं के ज्ञाता थे। जीवन में विद्यार्थिंयों को उनके साहित्य का अध्ययन मार्गदर्शक के रूप में हो सकता है। उनके द्वारा रचित साहित्य पढ़ना पर्याप्त है। संगोष्ठी का शुभारम्भ मॉ सरस्वती जी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया। अतिथियों का स्वागत डॉ0 पल्लवी सोनी, डॉ0 सविता द्विवेदी, डॉ0 अलका श्रीवास्तव ने पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 विनोद कुमार श्रीवास्तव द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रति कुलपति प्रो0 एस0एन0 शुक्ल, उप कुलसचिव विनय कुमार सिंह, प्रो0 आर0एन0 राय, प्रो0 के0के0 वर्मा, प्रो0 आशुतोष सिन्हा, डॉ0 आर0के0 िंसह, प्रो0 रमापति मिश्र, डॉ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डॉ0 विनय मिश्र, डॉ0 सुधीर श्रीवास्तव, डॉ0 आर0एन0 पाण्डेय, इं0 पारितोष त्रिपाठी, इं0 विनीत सिंह, डॉ0 बृजेश भारद्वाज, डॉ0 दिनेश कुमार सिंह, इं0 अनुराग सिंह, इं0 जैनेन्द्र प्रताप, इं0 प्रियंका श्रीवास्तव, इं0 महिमा चौरसिया सहित बड़ी सख्या में छात्र-छात्राऐं उपस्थित रहे।