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विद्यार्थियों ने ताल वाद्य मृदंग को सहेजने का लिया संकल्प

-मृदंग को प्रचारित करने के लिए इंटैक के उठाए गए क़दम चढ़ने लगे सीढ़ियां

अयोध्या। मृदंग की प्राचीनता,उसके प्रयोग, शास्त्रीयता और निर्माण को संरक्षित, संवर्धित करने की दिशा में इंटैक सदस्यों द्वारा उठाया गया क़दम अब सीढ़ियां चढ़ने लगा है। इंटैक अयोध्या की संयोजिका मंजुला झुनझुनवाला यह बड़े आत्मविश्वास से बताती हैं। महानगर के पाँच विद्यालयों जिंगिल बेल स्कूल, जिंगल बेल अकादमी ,यश विद्या मंदिर, भवदीय पब्लिक स्कूल और उदया पब्लिक स्कूलों में मृदंग कलाकार विजय रामदास के विद्यार्थियों के मध्य मृदंग की चर्चा व प्रदर्शन के कार्यक्रम कराए गए हैं। जहां विद्यार्थियों ने ताल वाद्य मृदंग को सहेजने और संरक्षित करने का संकल्प लिया गया।

श्रीमती झुनझुनवाला ने कहा कि वैदिक काल में संगीत अपने चरमोत्कर्ष पर था। पौराणिक काल में वीणा, दुंदुभी,दर्दुर, मृदंग तथा पुष्कर जैसे वाद्य यंत्रों का अत्यधिक प्रचलन था। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। उन्होंने कहा कि आज हमें इस समृद्ध वाद्य परंपरा और सांगीतिक धरोहर को सहेजने व आगे बढ़ाने की महती आवश्यकता है।

इंटैक सदस्य अंजलि ज्ञाप्रटे और अखिलेश मोहन ने इन आयोजनों के मक़सद को साफ़ करते हुए बताया कि भारतीय संगीत की प्राचीन परंपरा में मृदंग मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहा है। यह जीव नहीं जिसके जीने का समय तय हो।यह भारतीय अस्मिता की पहचान है। इसकी निरंतर उपस्थिति ही भारतीय संगीत की प्राचीनता का प्रमाण है।

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