-विश्व हृदय दिवस पर परमहंस महाविद्यालय में आयोजित हुई “युवाओं में बढ़ता हृदय रोग जोखिम” विषयक कार्यशाला
अयोध्या। दिल शरीर का सबसे मजबूत अंग है, लेकिन मनोभावों के प्रति अति संवेदनशील है।विश्व हृदय दिवस 29 सितम्बर पर परमहंस महाविद्यालय में हुई “युवाओं में बढ़ता हृदय रोग जोखिम” विषयक कार्यशाला में युवा व किशोर मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन ने बताया कि बढ़ता मनोसन्ताप युवाओं में तेजी से बढ़ रहे हृदयाघात का मुख्य कारण बनता जा रहा है।
हार्ट ब्रेक, हार्ट एक, हैवी हार्टेड तथा हिन्दी के शब्द जैसे दिल टूटना, दिल बैठना आदि हमारे मनों भावों के प्रति हृदय की संवेदनशीलता को व्यक्त करता है। एंजाइना व एंग्जाइटी एक दूसरे के पूरक हैं तथा ए टाइप पर्सनालिटी या अति महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व के युवाओं में दिल की बीमारी का जोखिम ज्यादा होता है। तनावग्रसित युवा इमोशनल ईटिंग का आदी हो गया है जिससे क्षद्म मनोशुकुन तो मिलता है पर इन जंक फूड या लत वाले खाद्य पदार्थों में मौजूद उच्च शर्करा,उच्व फैट व उच्च सोडियम दिल को दुष्प्रभावित करते हैं।
मेन्टल स्ट्रेस में होने पर कार्टिसाल हॉर्मोन काफी बढ़ जाता है व एंडोर्फिन व मेलाटोनिन हॉर्मोन कम हो जाता है जिससे आलस्य व मोटापा बढ़ता है व नींद दुष्प्रभावित होती है। मनोतनाव से क्षद्म शुकुन दिलाने वाले मादक पदार्थ आग में घी का काम कर देते हैं।इस प्रकार सभी हृदयघाती कारक इकट्ठा होकर हृदयाघात का कारण बन सकते हैं।
👉बचाव :
मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय,क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव दिल पर पड़ता है । स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों तथा फल व सब्जियों का सेवन को बढ़ावा देते हुए योग व व्यायाम को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन का संचार होगा जिससे दिल और दिमाग दोनों युवा बने रहेंगे। मनोउपचार की काग्निटिव-बिहैवियर थिरैपी तनाव प्रबंधन में काफी लाभदायक है। अध्यक्षता प्राचार्य डा सुनील तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डा अमरजीत ने दिया ।