एमपीएलएल आदर्श इंटर कॉलेज में आयोजित हुई कार्यशाला
अयोध्या। एमपीएलएल आदर्श इन्टर कॉलेज में आयोजित निदानात्मक कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि देर रात तक सोशल मीडिया व इंटरनेट की मादक लत से ग्रसित अधिकांश किशोर किशोरियो की रात बड़ी कष्टकारी एवं बेचैन मनोदशा से भरी होती है। नतीजन वह इस रात को न तो समग्र नींद ले पाते है,बल्कि एक चिंतित अर्धनिद्रा जैसी स्थिति में पूरी रात काट देते है और फिर सुबह न ही वे अपने को तरोताजा महसूस कर पाते है, बल्कि एक मानसिक थकान व आत्मविश्वास की कमी से उनका मन जकड़ा रहता है। जिसका दुष्प्रभाव उनके ‘‘अकैडमिक परफॉर्मेन्स “ पर पड़ सकता है और फिर यही दुष्चक्र कमोवेश उनके मन को प्रत्येक रात्रि को घेरने लगता है।
ज़िला चिकित्सालय के किशोर मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने बताया कि छः से आठ घन्टे की स्वस्थ नींद के लिए हमारे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ‘‘मेलाटोनिन’’नामक मनोरसायन का होना आवश्यक है। परन्तु इनटरनेट की मादक खिंचाव के कारण देर रात तक जागने से तनाव बढ़ाने वाले मनोरसायन‘‘कार्टिसॉल’’ की मात्रा काफी बढ़ जाने के कारण‘‘मेलाटोनिन’’ का स्तर बहुत कम हो जाता है, जिससे हमारी नींद तो दुष्प्रभावित होती ही है, साथ ही‘‘मेलाटोनिन’’ की कमी से हमारे मन में उत्साह व आत्म विश्वास पैदा करने वाले मनोरसायन ‘‘सेराटोनिन’’ का भी स्तर काफी कम हो जाता है। जिससे किशोर की सुबह चुस्त दुरूस्त न होकर निष्तेज व थकी-मादी होती है और फिर यही मनोदशा लेकर वे अपने अगले दिन के पढ़ाई व अन्य रचनात्मक कार्य स्थल पर पहुंच जाते है जो कि उनसे उत्पादक प्रदर्शन को दुष्प्रभावित कर सकता है।
उन्होने बताया कि स्लीप डिप्राइव्ड सिंड्रोम से किशोर किशोरियो की बायोलॉजिकल घड़ी इस तरह गड़बड़ हो जाती है या तो देर रात नीद ही नही आती और इंटरनेट की दुनिया की तरफ बरबस खींचती जाती है या फिर नींद बार बार टूटती रहती है और बार बार साइबर वर्ल्ड में गोते लगाने को बाध्य करती रहती है। इस प्रकार छद्म निद्रा के दौरान ऐसे सपने आ सकते हैं ,जो काफी डरावने या नकारात्मक भी हो सकते है।इतना ही नही, इस छिछली नीद में बड़बड़ाना या उठकर चलने लगने जैसे भी असामान्य गतिविधियां भी हो सकती है जिसे स्लीप डिप्राइव्ड डिसऑर्डर कहा जाता है।इतना ही नही, वह चौंककर उठ सकता है तथा वह भयाक्रान्त व हड़बड़ाया हुआ हो सकता है और उसकी धड़कन व सांस की गति असामान्य रूप से बढ़ी हो सकती है तथा वह चीखना-चिल्लाना व रोना शुरू कर सकता है। इसे ‘‘स्लीप-ट्रेमर’’नाम से जाना जाता है। इसके अलावा सोते समय मांशपेशियों में टपकन, झनझनाहट,खिंचाव व दर्द, पैर का पटकना, नींद में बड़बड़ाना तथा शारीरिक शुन्नता जैसे लक्षण दिखायी पड़ सकते है। नींद पूरी न हों पाने के कारण व एंड्राइड स्क्रीन की एक्सपोजर के कारण आंखों में मौजूद लुब्रिकेंट सूखने लगता है जिससे आंखों में जलन, दर्द व खिंचाव महसूस होने लगता है, जिसे ड्राई आई सिंड्रोम कहा जाता है। उन्होने बताया कि जरूरत इस बात की है कि रात्रि में सोने के निर्धारित समय से 30 मिनट पूर्व ही अपना मोबाइल या अन्य इन्टरनेट माध्यम बंद कर दे तथा शांत व सन्तुष्टि के मनोभाव से छः से आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य ले तथा सोने से पहले अपने मन को अगले दिन की विषय-वस्तु व अन्य सोच विचार से मन को आसक्त न होने दे, बल्कि आत्म-सन्तुष्टि व आत्म-विश्वास भरे मनोभाव से कुछ मनोरंजक गतिविधियों के माध्यम से धीरे-धीरे नींद को अपने उपर हावी होने दें। इस प्रकार स्वस्थ नींद की प्राप्ति होगी और फिर उसके अगले दिन तरो ताज़ा होने के साथ ही पढ़ाई व अन्य उत्पादक कार्यो का प्रदर्शन भी अच्छा रहने की प्रबल संभावना होगी।और फिर यही निद्रा चक्र धीरे धीरे हमारे जैविक घड़ी को स्वस्थ रूप में पुनर्स्थापित करके स्वस्थ व सम्बल मनोदशा से चालयमान हो जायेगा।कार्यशाला में प्रधानाचार्य व शिक्षक सहित भारी संख्या में छात्र उपस्थित रहे।