👉सर्दी का कहर,नींद पर बुरा असर
अयोध्या। स्वस्थ नींद के लिए कमरे का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस तक सबसे अनुकूल होता है । भीषण ठंढ के चलते तापमान में होने वाली अति गिरावट से निद्राचक्र दुष्प्रभावित होता है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा मे पैरासोमनिया स्लीप डिसऑर्डर कहतें हैं । वैसे तो इस डिसऑर्डर का असर सभी आयु वर्गों पे दिखाई पड़ सकता है, परन्तु इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों, किशोरों व नवयुवा व बुज़ुर्गों में दिखाई पड़ने की संभावना रहती है।अ
👉जानिए निद्राचक्र व तापमान के सह सम्बन्ध को:
प्रतिकूल तापमान के कारण नींद के बार बार टूटने से लोग पैरासोमनिया नामक स्लीप डिसऑर्डर की चपेट में आ सकते हैं । क्योंकि इससे हमारी नींद की लयबद्धता बिगड़ जाती है । ज़िला चिकित्सालय के किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता तथा क्यू क्लब के प्रमुख प्रशिक्षक डॉ आलोक मनदर्शन ने हिप्नोग्राम के हवाले से बताया कि हमारी नींद लयबद्ध तरीके से पांच चरणों से होकर एक निद्राचक्र पूरा करती है । बच्चों में यह चक्र लगभग एक घण्टे का तथा बड़ों में डेढ़ घण्टे का होता है । तथा एक सामान्य वयस्क निद्रा का औसत समय साढ़े सात घण्टे का होता है । इस प्रकार पूरे निद्रा काल में कई निद्रा चक्र क्रमबद्ध रूप से चलते रहते हैं । सोने के एक घण्टे के बाद कमरे का तापमान अत्यधिक कम हो जाने के कारण टूटने वाली नींद से स्लीप वॉकिंग का अटैक होने की संभावना होती है क्योंकि इस समय हम अपनी निद्रा के पहले चक्र के तीसरे या चौथे चरण में होतें हैं। इस स्थिति में भ्रम या मूर्छा जैसी स्थिति में आकर दिशाहीन चलने लग सकने की स्थिति बन सकती है । परन्तु सुबह कुछ भी याद नही रहता है। इसे सोमनाएम्बुलिज़्म कहा जाता है।सोने से ढाई से तीन घण्टे के बीच नींद टूटने से चौंक कर उठ जाने तथा भयाक्रांत व हड़बड़ाया हुआ हो सकता है।उसकी धड़कन व सांस की गति असामान्य रूप से बढ़ी हुई हो सकती है तथा चीखना चिल्लाना या रोना शुरू कर सकता है। इसे नाईट मेयर के नाम से जाना जाता है । इसी तरह गहरे स्वप्न की स्थिति में नींद टूटने से व्यक्ति एक सम्मोहन की स्थिति में उठकर सक्रिय हो सकता है तथा मांश पेशियों में टपकन, झनझनाहट, खिंचाव व दर्द, पैर का पटकना, नींद में बड़बड़ाना तथा शरीर का सुन्न हो जाना भी पैरासोमनिया का उदाहरण है जिसे स्लीप ट्रेमर कहा जाता है।बच्चो व किशोरों द्वारा नींद में बिस्तर पर पेशाब कर देना भी इसी के अंतर्गत आता है जिसे बेड वेटिंग या नाकटर्नल एन्यूरेसिस कहा जाता है।
👉बचाव व उपचार:
कमरे का तापमान अनुकूल रखें तथा सोने से पहले सिर को इस प्रकार ढ़क लें कि कमरे का तापमान कम होने के बावजूद भी मस्तिष्क का तापमान कम ना हो। सोने से पहले गरम तरल पदार्थ अवश्य लें।पैरासोमनिया का अटैक होने पर घबरायें नही।पुनः शांत मनोदशा से नींद में प्रवेश करें । लगातार समस्या बनी रहने पर मनोचिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें।जनहित में जारी इस जानकारी को क्यू क्लब के पीयर एजुकेटर्स से न केवल साझा किया गया अपितु उनसे अपेक्षा की गई कि इस सामयिक मनोस्वास्थ्य समस्या से हमजोली ग्रुप व समुदाय को जागरूक करें।