-विधायक वेद प्रकाश गुप्ता का आह्वान—घर-घर सजाएँ रामधाम जैसा माहौल
अयोध्या। अयोध्या एक बार फिर रामायण काल की आध्यात्मिक गरिमा को सजीव करने की तैयारी में है। श्रीराम जन्मभूमि परिसर में 25 नवम्बर को होने वाले ऐतिहासिक ध्वजारोहण समारोह के साथ यह कार्यक्रम केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि अयोध्या की सांस्कृतिक आत्मा को पुनः विश्व में स्थापित करने का एक भव्य प्रयास है। आयोजन के मद्देनज़र अयोध्या को ऐसे सुसज्जित किया जा रहा है मानो त्रेतायुग की दिव्यता पुनः पृथ्वी पर उतर आई हो। नगर के मुख्य मार्गों, गलियों, मठ-मंदिरों और जन-जन के द्वार पर भक्ति की लहर स्पष्ट दिखाई दे रही है।
रामायण काल की छवि में ढलती अयोध्या
वेदों और पुराणों में वर्णित है कि जब राम अयोध्या लौटे थे, तब पूरी नगरी दीपों, पुष्पों और ध्वजों से सजी थी। वही चित्र आज आधुनिक अयोध्या में साकार होता दिख रहा है। हर घर में जलते घी के दीपक, गलियों में लहराते भगवा ध्वज, और मंदिरों से उठता राम नाम का स्वर—यह सब मिलकर अयोध्या को दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित करने वाले हैं।रामायणकाल में जिस प्रकार घर-घर पवित्रता, तालमेल, प्रेम और मर्यादा का दीप जलता था, आज वही संस्कृति समाज को एक सूत्र में जोड़ने का माध्यम बनेगी।
वहीं राम का ध्वज, राम का नाम अयोध्या बने फिर रामधाम।
ध्वजारोहण समारोह, व्यापक जनसहभागिता का आह्वान
अयोध्या के विधायक वेद प्रकाश गुप्ता ने जनसंपर्क अभियान चलाकर लोगों से आग्रह किया है कि 25 नवंबर को सुबह से हर घर में भगवा ध्वज फहराया जाए। शाम होते ही पांच घी का दीपक घर, आँगन और मंदिर में प्रज्वलित किया जाए। परिवार संग बैठकर “राम नाम संकीर्तन” किया जाए, जिससे पूरे नगर में भक्ति की तरंग फैले। घरों को आकर्षक झालरों, लाइटिंग, पुष्प सज्जा से सजाया जाए। साफ-सफाई का विशेष ध्यान देकर घरों को पवित्र वातावरण दिया जाए। उन्होंने बताया कि विभिन्न वार्डों और मोहल्लों में घर-घर संपर्क कर लोगों को इस सांस्कृतिक उत्सव से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
सांस्कृतिक एकता का संदेश
यह आयोजन मात्र धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अयोध्या की आध्यात्मिक विरासत को पुनः दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का माध्यम है। यह एक ऐसा पर्व है जो समाज को एक सूत्र में बाँधता है, लोगों के हृदय में भक्ति, मर्यादा और सद्भाव के दीप जलाता है। अयोध्या को एक बार फिर राम की पवित्र नगरी के अनुरूप सजते देखना स्वयं में इतिहास का पुनर्लेखन है। ध्वजारोहण के साथ उठने वाली “जय श्रीराम” की गूंज पूरी दुनिया को भारत की सांस्कृतिक शक्ति का संदेश देने वाली है।