अयोध्या। सिन्धु संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। इस संस्कृति का सबसे ज्यादा विकास सिन्धु नदी के किनारे हुआ है। यह उद्गार सन्त बीरबल दास के 15वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर कोहिनूर पैलेस में आयोजित समारोह में मध्य प्रदेश के सांई श्रीचन्द महराज ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि आज सिन्धु संस्कृति से जु़ड़े लोग न केवल अपनी महान संस्कृति को पूरी तरह सुरक्षित रखे हैं बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के साथ भी भाईचारे और प्रेम और प्यार के साथ रहते हैं। इस अवसर पर डबरा से पधारे सांई लकी महराज ने कहा कि सिन्धु सभ्यता, संस्कृति और रीति-रिवाजों पर अनेक बार खतरे आये। 10वीं शताब्दी में प्रभु झूलेलाल ने संस्कृति को बचाने के लिये अवतार लिया। वार्षिकोत्सव में मौजूद सांई नितिनराम ने कहा कि देश और दुनिया को संतों और महात्माओं ने ही एकता, भाईचारा व आपसी सौहार्द कायम रखने का संदेश दिया है। वार्षिकोत्सव में सांई महेश लाल, सांई भावनदास व सांई महेन्द्र लाल, सांई कपिलराम ने भी अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये। सिन्धी समाज के प्रवक्ता ओम प्रकाश ओमी ने बताया कि वार्षिकोत्सव की शुरूआत सांई बीरबल के चित्र पर सांई श्रीचन्द महराज ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर समाज के बच्चों ने नृत्य प्रस्तुत किया। वार्षिकोत्सव में महिलाओं ने सांई श्रीचन्द महराज का पुष्पवर्षा कर व माथे पर टीका लगाकर और आरती कर स्वागत किया। इस मौके पर एसडीबी मण्डल ने श्रीचन्द महराज का केक काटकर जन्मदिवस मनाया। वार्षिकोत्सव में मध्य प्रदेश डबरा से पधारे विशाल सागर म्युजिकल ग्रुप ने सिन्धी भजनों व कॉलामों को प्रस्तुत किया। वार्षिकोत्सव की संयुक्त अध्यक्षता गोवर्धन दास मदनानी व श्याम मदनानी और संचालन सुरेश पंजवानी व किरन पंजवानी ने किया। इस मौके पर सिन्धी समाज के प्रमुख लोग बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
सन्त बीरबल दास का मनाया 15वां वार्षिकोत्सव
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