राम नाम अवलम्बन एकू विषय पर हुआ अन्तरराष्ट्रीय ई-सेमिनार
अयोध्या। डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में आज 26 मई, 2020 को राम नाम अवलम्बन एकू विषय पर तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय ई-सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय की कुलाधिपति एवं प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल ने कहा कि भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीराम का महत्व सदियों से सदैव विद्यमान रहा है। अयोध्या की पावन भूमि पर स्थित अवध विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार राम नाम अवलंबन एकू एक महत्वपूर्ण आयोजन के रूप में है। प्रभु श्री राम भारतीय संस्कृति की चेतना के प्राण तत्व है। संपूर्ण भारतीय संस्कृति में राम नाम की महत्ता की चर्चा पाई जाती है। भगवान श्री राम साधन नहीं साध्य हैं। ऐसे समय में राम नाम का आधार ही मानवता का उद्धार कर सकता है। प्रभु श्री राम को धर्म जाति देश और काल में सीमित नहीं किया जा सकता। प्रभु श्री राम ने समूची वसुधा को सत्य के मार्ग का अनुसरण करना सिखाया है। जीवन के प्राण तत्व राम हैं। भारतीय लोक जीवन में राम का महत्व सदियों से रहा है। राम कण-कण में व्याप्त है।
कुलाधिपति ने कहा कि इस महामारी ने करोड़ों लोगों का जीवन प्रभावित कर दिया है ऐसी स्थिति में भगवान राम के जीवन आदर्शों से काफी कुछ सीखने का वक्त है। राम की स्वीकार्यता सदियों से रही क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम की संकल्पना राम की परंपरा है। वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों में जो जीवन संस्कृति हमें बताई गई है कौन से कार्य संक्रमण से मुक्ति दिलाते हैंघ् कौन-कौन सी सावधानियां हमें बरतनी चाहिए घ् बाहर से आकर हाथ पांव धोकर ही घर में प्रवेश करने की संस्कृति हमारी प्राचीन काल से रही है। भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा देशव्यापी स्वच्छता अभियान पर ध्यान दिलाते हुए महामहिम ने कहा की साफ-सफाई हमारी सनातन व्यवस्था का एक अंग रहा है। महामारी काल में इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए विश्वविद्यालय ने पुनीत कार्य किया है विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित श्रीराम शोध पीठ और प्रभु श्रीराम के जीवन से जुड़े कई देशों के संकलन पीठ में चित्रांकन एवं संकलन के माध्यम से संजोए गए हैं। प्रभु श्रीराम के जीवन आदर्शों से सामाजिक समरसता स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने राम के नाम की महत्ता का एक जीवंत उदाहरण अप्रवासी भारतीयों का देते हुए कहा कि जब भारत अंग्रेजो का गुलाम था तब भारतीयों को काला पानी की सजा स्वरुप अंग्रेज समुद्री द्वीप पर छोड़ देते थे जहाँ न कोई जीवन था न कोई खाने का सुलभ साधन और समुद्री जीव का खतरा अलग से था। ऐसे समय में उनके द्वारा वहाँ स्थित पत्थरो पर श्री राम लिख कर उनकी पूजा से अपनी दिनचर्या शुरू करते थे। आज उनमें राम की ऐसी महिमा हुई है कि हमारे अप्रवासी भारतीय द्वीपो को चला रहे है और वहाँ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवा दे रहे है। ये प्रसंग बताता है कि जीवन के प्रत्येक समस्या के निवारण का रहस्य राम नाम में है। कुलपति ने राम के चरित्र में प्रत्येक धर्म का वर्णन बताया जैसे पिता धर्म, पुत्र धर्म, पति धर्म, राज धर्म, इत्यादि को मानव जीवन के लिए प्रेरक बताया।
सेमिनार के मुख्य वक्ता महामंत्री, भारतीय शिक्षण मंडल के उमाशंकर पचौरी ने कहा कि राम नाम एक ऐसी औषधि है जिससे सभी बीमारियों से बचा जा सकता है। मुंह जीवन का सबसे बड़ा रोग है स्व में स्थित रहकर मनुष्य स्वस्थ रह सकता है आज इसलिए अस्वस्थ है क्योंकि उसने अपने जीवन में संयम को छोड़ दिया है। राम नाम में इतनी शक्ति है जो माया से मनुष्य को दूर कर सकती है। राम नाम ब्रह्म सुख की अनुभूति कराने वाला है। जो व्यक्ति स्वयं स्वस्थ नहीं है वह अनुसंधान कैसे कर सकता हैघ् सारी बीमारी की जड़ मन है और मन को राम को समर्पित करने से बीमारी समूल नष्ट हो सकती है। राम मर्यादा के शिरोमणि हैं। दुनिया की सभी अच्छी वस्तुओं के मानक राम हैं। सहजता सरलता ही राम है। राम के मतों का जागरण किए बिना स्वयं व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता। श्री पचौरी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के जीवन में राम मूल मंत्र के रूप में थे। संयम जीवन का मूल आधार है। राम नाम की भक्ति के बिना जीवन अधूरा है। विश्व की जनता को अवध की जनता में परिवर्तन करने की शक्ति राम में है। पचौरी ने एक प्रश्न के उत्तर में प्रतिभागी को बताया कि भारत ऋषि और कृषि का देश रहा है और यहां की अर्थव्यवस्था इसी व्यवस्था से सुधर सकती है। राम के जीवन प्रसंगों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि राम के जीवन में गुरुओं का बहुत योगदान रहा है राम के सारे कार्य गुरु कृपा से बने हैं। गुरु मन की स्थिति को नियंत्रित करने वाला तत्व है। जो ठीक मार्ग पर चलाए वही गुरु है।
विशिष्ट अतिथि जगतगुरू रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी ने कहा कि भारत आध्यात्म की भूमि है। राम नाम अवलंबन एकू रामचरितमानस के बालकांड से उद्धृत है। महाराज ने प्रभु श्री राम की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि अयोध्या दुनिया की पवित्रतम भूमि में से एक है जहां किसी का वध अकारण न हो वह अयोध्या है। राम नाम सदैव ही स्मरणीय रहा है। बड़ी-बड़ी विपत्तियों का विनाश करने की शक्ति प्रभु श्री राम के नाम में है। जब जब किसी के जीवन व राष्ट्र में कठिनाई आई है तब तक राम ने ही मार्ग दिखाया है। यह शक्ति भगवान श्रीराम में विद्यमान है। राम नाम दुनिया की सबसे बड़ी महा औषधि है और इस महामारी से लड़ने में प्रत्येक जीवन को शक्ति प्रदान करेगी। श्री महाराज ने रा का अर्थ राष्ट्र और म का अर्थ मर्यादा से जोड़कर राम के जीवन मूल्यों को स्पष्ट किया है। राम मंगल है राम ही अग्नि, सूर्य, चंद्र तीनों तत्वों में विद्यमान हैं। राम के नाम से ही इन तीनों तत्व निर्माण होता है। प्रभु राम के जीवन आदर्शों से ही समूची धरा एक है। प्रभु श्रीराम के नाम का स्मरण महादेव भी करते हैं ऐसा उन्होंने माता पार्वती के पूछने पर बताया। कोरोना महामारी में सामाजिक दूरी एक महत्वपूर्ण बचाव का रास्ता है। प्रभु श्री राम ने सामाजिक दूरी को लेकर कई मानदंडों को अपनाया है। पिता की आज्ञा से वन गमन। ऋषि मुनियों की ज्ञान यात्रा के साथ उन्होंने संपूर्ण जगत को एक संयमित जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया है।
एमचआरडी नवाचार प्रकोष्ठ नई दिल्ली के निदेशक डॉ0 मोहित गंभीर ने अपने वक्तव्य में कहा कि राम के जीवन का दर्शन है किसी भी कार्य को अवसर समझना चाहिए न कि अवसरवादिता समझना चाहिये। उन्होंने राम के जीवन की प्रत्येक घटना को मानव जाति के लिए सन्देश बताया। उन्होंने सोने के मरीचि का वर्णन कहते हुए कहा कि लगाव की भी सीमा होनी चाहिए। हनुमान जी द्वारा सीता जी का पता लगाने के लिए लंका गमन को दृढ संकल्प बताया और कहा जब आप कुछ भी करने को ठान लेते है तो राम भी आपके साथ देते है। कोरोना महामारी को मानव जाति के लिए प्रकृति का एक संदेश बताया। कोरोना त्रासदी ने हमें पहले हराया अब कोरोना हमसे हारेगा। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 रमापति मिश्र ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अन्य राज्यों से प्रतिभागी जुड़ें रहे।