-खेख्सी मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान : डा. रैगर
अयोध्या। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय , कुमारगज में चल रहे अखिल भारतीय समन्वित क्षमतावान फसल अनुसंधान नेटवर्क के तहत लगी फसलों के निरीक्षण एवं परियोजना की गतिविधियों के अवलोकन हेतु राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डा. एच. एल. रैगर परियोजना समन्वयक ने विश्वविद्यालय के अन्य सम्बन्धित वैज्ञानिको डाँ ओ पी वर्मा , परियोजना अन्वेषक , डाँ एस सी विमल विभागाध्यक्ष , आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन , डा. शम्भू प्रसाद गुप्ता,उप निदेशक शोध , पूर्व परियोजना अन्वेषक डाँ सी बी यादव ( सेवानिवृत्त ) , ओ पी सिंह के साथ – साथ विभाग के अन्य वैज्ञानिक एवं कर्मचारियों ने परीक्षणों का बारीकी से आकलन किया ।
इस परिप्रेक्ष्य में डा रैगर ने कुलपति से क्षमतावान फसलों की महत्ता पर अपने विचारों का आदान – प्रदान किया । इस समय खरीफ में खेख्सी तथा तिपतिया सेम का परीक्षण लगा हुआ है । खेख्सी के हरे फलों में 12-14 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इसमें नर और मादा पौधे अलग – अलग होते हैं । अच्छी आमदनी प्राप्त करने के लिए नर और मादा पौधों का अनुपात 18 रखना चाहिए । यह पोषक एवं औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण बहुत तेजी से प्रचलित होता जा रहा है । इसकी तकनीकी जानकारी के अभाव में सीमित क्षेत्रों में ही इसकी खेती की जा रही है । इसके हरे फल बाजार में हमेशा रू 100-150 प्रति किलो की दर से बिकता है खेख्सी मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान है । इसी प्रकार तिपतिया सेम ( विंग्डबीन ) ऐसी फसल है जिसका हरा भाग खाया जाता है। इसका ट्यूबर पौष्टिकता से भरपूर होता है ।
इसकी फलियों में 38 प्रतिशत प्रोटीन और 27 प्रतिशत तेल पाया जाता है । आने वाले समय में यह सोयाबीन का उत्तम विकल्प हो सकता है । इस प्रकार इन क्षमतावान फसलों की सफल खेती कर कम समय में अपनी आय दूगुनी कर सकते हैं जो गरीब किसानों / सीमान्त किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है । इसी क्रम में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डाँ रैगर द्वारा क्षमतावान फसलों की एक फसल रामदाना के बीजों का वितरण प्रचार – प्रसार के लिए विश्वविद्यालय के आसपास के किसानों को किया गया ।