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अल्पपोषण ही नही ,अतिपोषण भी है कुपोषण : डा. आलोक मनदर्शन

-एडिक्टिव ईटिंग बढ़ा रही अतिपोषित कुपोषण, मॉडर्न फ़ूड की लत बन रही घातक

अयोध्या। भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 1से 7 सितंबर तक मनाये जाने वाले राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुवात सन 1982 में हुई क्योंकि उस समय देश की बहुत बड़ी आबादी अल्पपोषित कुपोषण से ग्रसित थी । आधुनिक युग में एक दूसरी तरह का कुपोषण विकराल रूप ले रहा है जिसे अतिपोषित कुपोषण कहा जाता है जिसकी गिरफ्त में बच्चे, किशोर व युवा आयुवर्ग प्रमुख है।

अतिपोषित कुपोषण का मुख्य कारण एडिक्टिव ईटिंग या इमोशनल ईटिंग है। इसमें वही चीजे खाने की लत बार बार महसूस होती जिसमे हाई लेवल शुगर,फैट,साल्ट व आर्टिफिशियल फ्लेवर होते है जो स्वादेन्द्रियों के माध्यम से ब्रेन मे डोपामिन व सेराटोनिन हैप्पी हार्मोन बढ़ा कर तलबगार बना लेते हैँ।

रही सही कसर इन पदार्थों की मार्केटिंग व हमजोली समूह पूरी कर देता है। मॉडर्न,डिजाइनर, प्रोसेस्ड या क्विक फ़ूड की लत तथा आलस्यपूर्ण दिनचर्या स्वरूप इसके दुष्परिणाम मोटापा, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज ,एनीमिया, आंखों की रोशनी कम होना, अवसाद, एंग्जायटी, थकान, अनिद्रा,एकाग्रता की कमी आदि की आधारशिला बन रहे है। डा आलोक मनदर्शन ने राष्ट्रीय पोषण सप्ताह संदर्भित विशेष विज्ञप्ति में यह जानकारी दी।

सलाह :

डॉ आलोक मनदर्शन के अनुसार आधुनिक तनावपूर्ण जीवन शैली के कारण मस्तिष्क में स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसाल व एड्रीनलिन के अधिश्राव से हाई शुगर,फैट,साल्ट व फ्लेवर वाले पदार्थों के सेवन से छ्द्म शुकुन का एहसास होता है क्योकि ये पदार्थ मनोउत्तेजक होते हैँ और फिर यही तलब एक नशीले दुष्चक्र के रूप में हावी होकर पूरे खानपान को इस तरह दुष्प्रभावित कर देती है कि शरीर तेज़ी से कुपोषण का शिकार होने लगता है। इससे बचाव के लिये युवाओं में मनोस्वास्थ्य व स्ट्रेस ईटिंग के प्रति जागरुकता व माइंडफुल ईटिंग की ट्रेनिंग काफी मददगार होती है।

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