Breaking News

मंकी पॉक्स : आरोग्य की बात होम्योपैथी के साथ

भयमुक्त किन्तु स्वास्थ्य के प्रति सचेत सावधान रहना जरूरी : डॉ उपेन्द्रमणि

कोरोना महामारी के बाद विश्व एक और विषाणुजनित स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर रहा है जिसका नाम मंकीपॉक्स हैं, भारत मे भी राजधानी दिल्ली सहित कुल चार व्यक्ति संक्रमित पाए जा चुके हैं।स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जगरुकता अभियान के अंतर्गत आरोग्य की बात होम्योपैथी के साथ संवाद में संघ कार्यालय साकेत निलयम में चिकित्सासेवा केंद्र में सेवा दे रहे वरिष्ठ होम्योपैथी चिकित्सक एवं होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ के महासचिव डॉ उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने बताया मंकी पॉक्स चेचक की तरह ही लक्षणों वाला संक्रामक रोग है जिससे डरने की बजाय भारतीय स्वस्थ जीवनशैली के नियमो को अपनाते हुए बच सकते हैं।

डॉ त्रिपाठी ने बताया सबसे पहले 1958 में शोध के लिए प्रयोगशाला के कुछ बंदरों में पाया गया तभी इसे मंकीपॉक्स नाम दिया गया। अर्थात यह जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाला संक्रमण है और मनुष्यों में इसका पहला केस 1970 में स्माल पॉक्स के उन्मूलन के बाद, कांगो शहर में एक बालक में पाया गया था।भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्र इसके लिए अधिक उपयुक्त देखे गए किन्तु इसका प्रसार अब विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी होना चिंता का विषय अवश्य है।
मंकीपॉक्स वायरस भी चेचक फैलाने वाले पॉक्सविरिडे परिवार से ऑर्थो पॉक्स वायरस जाति का ही एक द्विसूत्रीय डीएनए विषाणु है , अतः दोनों के लक्षणों व प्रसार में भी समानता है अंतर दानों के आकार , व शरीर मे गिल्टियों में सूजन व दर्द के लक्षणों का देखा जा सकता है।

डॉ उपेन्द्रमणि ने बताया नाम के अनुसार तो यह बंदरों से मनुष्यों में संक्रमित हुआ स्पष्ट होता है किन्तु इसके संक्रमण प्रसार के लिए अन्य जानवरों जैसे चूहों, चूहियों और गिलहरियों, गैम्बिया पाउच वाले चूहे, डर्मिस, गैर-मानव प्राइमेट आदि भी संवाहक हो सकते हैं जिनकी निकटता या इनकी लार व अन्य शरीर द्रव्यों से दूषित संपर्क से यह मनुष्य को संक्रमित कर सकता है और फिर संक्रमित मनुष्य से अन्य सम्पर्क के मनुष्यों में इसका प्रसार होता जाय।
अधिक संभावना होती है कि यह बीमारी घावों, शरीर के तरल पदार्थ, श्वसन बूंदों और दूषित सामग्री जैसे बिस्तर के माध्यम से फैल सकती है जो कि दूषित सम्पर्क के माध्यम बनते हैं। किंतु यह वायरस चेचक की तुलना में कम संक्रामक है और बीमारी के लक्षण भी कम गंभीर हो सकते हैं ।

संक्रमण के बाद बीमारी के लक्षण सामान्यतः दो से चार सप्ताह तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं कुछ मामलों में या किसी अन्य बीमारी के साथ होने पर लक्षण तीव्र और प्राणघातक भी हो सकते हैं। यद्यपि मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6 प्रतिशत तक ही माना जाता है किंतु यह 10 प्रतिशत तक हो सकता है।

क्या हैं लक्षण

डॉ उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने बताया मंकी पॉक्स के लक्षण भी चेचक की तरह ही शरीर मे भारीपन ऐंठन दर्द, बुखार, सिरदर्द, के साथ शुरू होते हैं, फिर इन लक्षणों में तीव्रता के साथ शरीर के बाहरी हिस्सो मुख्यतः चेहरे हाथ, पैर , तलवों में व अन्य हिस्सों में भी खुजली के साथ या बिना खुजली के दाने निकलने लगते हैं जो तीसरे या चौथे दिन तक बड़े होने लगते हैं , पहले उनमें पतला द्रव जैसा भरा हो सकता है जो धीरे धीरे गाढ़ा होकर पस जैसा बन सकता है। यह दाने आकार में स्माल पॉक्स से भी बड़े व जलन दर्द वाले अथवा बिना दर्द के हो सकते हैं। लक्षणों के बढ़ने के साथ मंकी पॉक्स संक्रमण में सबसे महत्वपूर्ण लक्षण जो आता है वह है शरीर की गिल्टियों या लिम्फ नोड्स की सूजन, जिसके साथ व्यक्ति की पीठ, सिर, मांसपेशियों में असहनीय पीड़ा हो सकती है, व शरीर मे ताकत की कमी, सुस्ती, भी महसूस होती है। बुखार के तीसरे या चौथे दिन त्वचा के फटने के लक्षण भी दिखते हैं। लक्षणों के चरमोत्कर्ष के बाद दानों में पपड़ी बनने लगती है और वह सूखते हैं। बहुत कमजोरी, थकान का अहसास होता है, प्यास लगती है।

 

बचाव व उपचार

मंकी पॉक्स संक्रमण के विषय मे अध्ययन अभी चल ही रहा है, बचाव के लिए कोई टीका या दवाएं नहीं हैं, ऐसे में लाक्षणिक और प्रबंधन के उपाय ही उपयोगी हैं। चेचक जैसे लक्षण दिखने पर व्यक्ति को एकांत वास में कर देना चाहिए जहां उसके लिए ताजी हवा स्वच्छ जल व पौष्टिक सामान्य भोजन उपलब्ध रहें। तनाव या भयमुक्त रहना चाहिए, शरीर की इम्युनिटी बढ़ाये रखने के लिए नारियल, नींबू पानी, फलों के जूस , दलिया, ग्रीन टी आदि के सकते हैं, तले भुने,मसालेदार भोजन से परहेज करें। भीड़भाड़ में न जाएं, पालतू जानवरों या घरेलू बिल्ली, बंदर, चूहों से बचें व संक्रमित व्यक्ति के पसीने, जूठे बर्तन , प्रयोग किये गए कपड़े, तौलिया का प्रयोग न करें।

सुई इंजेक्शन शेविंग में सावधानी बरतें। व्यक्तिगत शारीरिक संपर्क, शरीर द्रव्य पसीने, घाव ,रक्त, वीर्य, मल, मूत्र आदि से भी सावधानी आवश्यक है। चेचक से बचाव पक्ष ही होम्योपैथी की पहचान का पर्याय है, अतः उसी प्रकार के संक्रमण में होम्योपैथी की वैरियोलिनम, मैलैण्ड्रीयम, रस्टोक्स, पल्स,मर्क साल आदि दवाएं उपयोगी हो सकती हैं, प्रमुख लक्षणों के रेपर्टराइजेशन के बाद मर्क साल ज्यादा बेहतर हो सकता है किन्तु किसी भी दवा का प्रयोग केवल चिकित्सक के परामर्श के अनुरूप ही किया जा सकता है क्योंकि लक्षणों की तीव्रता के आधार पर ही दवाओं की शक्ति, प्रयोग व पुनरावृत्ति का चयन किया जा सकता है।

Leave your vote

इसे भी पढ़े  सीएम योगी ने पार्टी पदाधिकारियों को दिया मिल्कीपुर उपचुनाव विजय का मंत्र

About Next Khabar Team

Check Also

नवरात्रोत्सव की टोन बढ़ाती है हैप्पी हार्मोन : डॉ. आलोक मनदर्शन

– मूड स्टेब्लाइज़र है नवरात्र की दिनचर्या अयोध्या। नवरात्रोत्सव के साथ मनोरसायनिक बदलाव होने शुरु …

close

Log In

Forgot password?

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.