अयोध्या। लावारिस लाशों के मसीहा मोहम्मद शरीफ को पुलिस लाइन में पद्मश्री सम्मान मिलने पर गणतंत्र दिवस के मौके पर पर्यटन राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी व जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने तिरंगा ओढ़ाकर सम्मानित किया। खिड़की अलीबेग मोहल्ले में रहने वाले मो. शरीफ लावारिस लाशों के वारिस हैं। ऐसी लाशें जिनका कोई वारिस नहीं होता वह आसरा देते हैं। वे मृतक के धर्म के अनुसार उसका अंतिम संस्कार करते हैं। वह लगभग 27 वर्षों में हजारों लाशों को उसकी धर्म-मर्यादा के अनुसार अंतिम गति दे चुके हैं। इस जज्बे के पीछे एक व्यथा कथा भी जुड़ी है। मोहम्मद शरीफ के पुत्र मोहम्मद रईस जिसका जन्म 1971 में हुआ था, 1992 में अचानक लापता हो गया। 1992 में मोहम्मद शरीफ को पता चला कि सुल्तानपुर में उनका बेटे की लाश पुलिस को मिली थी जिसे लावारिश ही फेंक दिया गया था। सुल्तानपुर पुलिस के पास जब मोहम्मद शरीफ पहुंचे तो वहां उन्हें वह शर्ट मिली जो लापता होने के पहले मोहम्मद रईस पहने था। इस घटना ने मोहम्मद शरीफ को झकझोर डाला और उन्होंने बेटे की शर्ट को अपने सीने से लगा फफक पड़े और कसम खाया कि अब वह किसी भी लावारिश शव को यूं ही फेंकने नहीं देंगे और धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार उसका कफन-दफन व दाह संस्कार करायेंगे।
इसी संकल्प के साथ वह अपने घर खिड़की अलीबेग पहुंचे और अपनी पत्नी से अपने दर्द को साझा किया। 1992 से मोहम्मद शरीफ को जैसे ही पता चलता है कि कोई शव लावारिश दशा में पड़ा हुआ है वह अपना ठेला लेकर पहुंच जाते और उसे उठाकर मर्चरी में रखवा देते। लिखापढ़ी के बाद विधि विधान से अन्तिम संस्कार भी सम्पन्न करा देते। इसके पूर्व इस बात की भी वह खोज करते कि यदि यह पता चल जाय कि मृतक का परिवार कौन और कहां है तो सूचना भेजकर उसे बुलवाते भी हैं। मोहम्मद शरीफ ने यह फर्क नहीं किया कि शव हिन्दू का है या मुसलमान का है हिन्दू लावारिश शव का दाह संस्कार वह दाह स्थल यमथरा में कराते रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री ने लावारिश शवों के दाह संस्कार के लिए अलग से दाह स्थल भी बनवा दिया है। मस्लिम शवों को मोहम्मद शरीफ ताड़ की तकिया खिड़की अलीबेग में दफन करते हैं अबतक उन्होंने लगभग तीन हजार हिन्दू लावारिश शवों का दाह संस्कार कराया है और लगभग ढ़ाई हजार लावारिश मुस्लिम शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर चुके हैं। मोहम्द शरीफ बताते हैं कि वह अब 80 साल के हो गये हैं अब ठेला खींच नहीं पाते इसलिए शवों को लाने और ले जाने के लिए उन्होंने अशोक रिक्शावाले से सहयोग लेना शुरू कर दिया है।
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