भारतीय ज्ञान परंपरा में सफलता के अनेक सूत्र : प्रो. रामविलास मिश्र

by Next Khabar Team
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-लोकल से ग्लोबल बनने के लिए क्वालिटी पर उत्पादक दें विशेष ध्यान : डॉ. बिजेंद्र सिंह

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद सभागार में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस ’लोकल टू ग्लोबलः मार्केटिंग ट्रांसफॉर्मेटिव स्ट्रेटजीज डिजिटल इनोवेशन एंड सस्टेनेबल ग्रोथ’ विषय का आयोजन लोहिया इनक्यूबेशन फाउंडेशन एवं व्यवसाय उद्यमिता एवं प्रबंधन विभाग के संयुक्त तत्वावधान किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति अवध विश्वविद्यालय के प्रो. रामविलास मिश्र,विशिष्ट अतिथि पूर्व कुलपति वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय प्रो. पियूष रंजन अग्रवाल एवं एमबीए के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आर एन राय रहे। प्रो. रामविलास मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में सफलता के अनेक सूत्र छिपे हुए हैं। कड़ी मेहनत से सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि संत कबीर कभी किसी विद्यालय में पढ़ने नहीं गए, लेकिन अब उनकी रचनाओं पर शोध होता है। चरैवेती-चरैवेती को मंत्र पर आगे बढ़ना चाहिए और गीता, वेदों का अध्ययन करें, जिससे सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा मिल सके।

अध्यक्षीय उद्बोधन में उद्बोधन में कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक कदम उठा रहे हैं। मेक इन इंडिया, वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट जैसी अनेक योजनाएं हैं, जो आत्मनिर्भरता को बढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि लोकल से ग्लोबल बनने के लिए क्वालिटी पर विशेष ध्यान देना होगा। अयोध्या का गुड़ देश के अनेक हिस्सों में बिक रहा है। सफलता प्राप्त करने के लिए समय का प्रबंधन भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को उद्यमिता से जुड़ना चाहिए, जिससे वे औरों को भी रोजगार दे सकें।

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पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि चुनिंदा देशों में अब भारत भी सेमीकंडक्टर बना रहा है। इसीलिए अमेरिका को भी यह चिंता है कि कहीं भारत बड़ा निर्यातक न बन जाए और उसे चीन के बाद उत्पादन के क्षेत्र में भारत से चुनौती न मिलने लगे। इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन अभी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें काम करने की आवश्यकता है। भारत तेजस का निर्माण तो करता है, लेकिन यात्री विमान नहीं बनाता। तेजस का इंजन भी भारत में नहीं बनता। उन्होंने कहा कि लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाना होगा। क्रय शक्ति बढ़ेगी तो इसका लाभ इंडस्ट्री को मिलेगा। पूर्व प्राक्टर प्रो. आरएन राय ने कहा कि दुनिया में सबसे सस्ते उत्पाद भारत के हैं। इसीलिए भारत निर्यातक के तौर पर उभर रहा है।

यूपीआइ का सबसे ज्यादा उपयोग भारत में होता है, जबकि अन्य देश परेशान हैं वे अपने यहां यूपीआइ को किस प्रकार से बढ़ावा दें। उन्होंने कहाकि जीवन, मृत्यु और गणित सबसे बड़े सत्य हैं और तीनों से ही लोगों को डर लगता है। सबसे ज्यादा मानव संसाधन भारत में हैं। इसलिए 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए युवाओं को मेहनत करनी चाहिए। विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार वर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि डा. राना रोहित सिंह ने आभार व्यक्त किया।

संगोष्ठी का संचालन डा. दीपा सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. बी डी तिवारी, प्रो. एलके सिंह, प्रो. आरके तिवारी, प्राक्टर प्रो. एसएस मिश्र, प्रो. हिमांशु शेखर सिंह, प्रो. नीलम पाठक, प्रो. सीके मिश्र, प्रो. माला उपाध्याय, डा. रामजीत सिंह यादव, डा. जीवन प्रकाश त्रिपाठी, डा. चंदन सिंह, डा. महेंद्र पाल, डा. निमिष मिश्र, डा. अंशुमान पाठक, डा. कपिलदेव चौरसिया, डॉ अनुराग तिवारी, डा. प्रवीण राय, डा. आशुतोष पांडेय, डा. राकेश कुमार, डा. रविंद्र भारद्वाज आदि उपस्थित रहे।

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