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वर्तमान में अपने वास्तविक स्वरूप खो चुका है मनुष्य : पुरुषोत्तम वर्मा

मैं कौन हूॅ : मानव जीवन में विचार एवं व्यवहार का विकास विषय पर आयोजित हुई संगोष्ठी

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा खेल एवं योग विज्ञान संस्थान में सोमवार को मैं कौन हूॅः मानव जीवन में विचार एवं व्यवहार का विकास विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश के कुमार विद्यालय के संचालक पुरुषोत्तम वर्मा ने कहा कि वर्तमान में मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप खो चुका है। यदि हम सभी यह जान ले कि वास्तव में हम कौन हैं और कहां से आए हैं? हमारे जीवन व जन्म का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या है? हमें किस कार्य को पूर्ण करने के लिए परमात्मा ने धरती पर भेजा है? तो निश्चित रूप से हम चिंतन, व्यवहार, आचरण एवं जीवन श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनते हुए चले जाएंगे।

इससे संपूर्ण भारत विश्वगुरु व सोने की चिड़िया का गौरवशाली पद प्राप्त हो सकेगा। उन्होंने कहा कि जब तक मनुष्य अपने वास्तविक आत्मस्वरूप से परिचित नहीं होगा तब तक वह कष्ट उठाता रहेगा। आज का मनुष्य बाहरी चमक-दमक एवं दुनियां के कोलाहल से इतना प्रभावित हो चुका है कि उसे अपने आत्मस्वरूप के बारे में जानने की अभिरुचि ही नहीं रही है। उसे आत्मा का रुदन भी सुनाई नहीं देता। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार अपने आत्मस्वरूप को सामर्थ्यवान, सशक्त, व चैतन्य रखने के लिए श्रेष्ठ विचारों की अत्यंत अनिवार्य आवश्यकता होती है जो हमें भारतीय वाड़्गमय, वेदों, उपनिषदों, दर्शन शास्त्रों, ग्रंथों एवं संत साहित्यों से ही प्राप्त हो सकता है। इस भारत और विश्व का प्रत्येक व्यक्ति आत्मज्ञान को पाने के लिए अपने अंतःकरण में सच्ची अभिलाषा व आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए कृत संकल्पित है। जो व्यक्ति वेदों, ग्रंथों, उपनिषदों, सत्साहित्यों का मनसा वाचा कर्मणा स्वाध्याय मनन चिंतन करेगा तो निश्चित ही उसके विचार, उसका व्यवहार, कर्म-चिंतन, आचरण और जीवन श्रेष्ठता के शिखर को प्राप्त कर सकेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शारीरिक शिक्षा खेल एवं योगिक विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो0 संत शरण मिश्र ने कहा कि ‘‘मननात् त्रायते इति मंत्रः‘‘ अर्थात जिसके निरंतर मनन से मन का त्राण (रक्षा) हो सके वह मंत्र है। जो तन की रक्षा करें वह तंत्र है। उन्होंने तंत्र पर चर्चा करते हुए कहा कि तंत्र का कभी भी प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। यह साधक और समाज के लिए हितकर नहीं होता है, तंत्र विद्या का सदैव लोकहित में ही प्रयोग होना चाहिए। प्रो0 मिश्र ने आत्म स्वरूप व आत्मज्ञान पर चर्चा करते हुए कहा कि शरीर आत्मा के बिना अधूरा है और आत्मा शरीर के बिना। ये एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात हम सभी को अनिवार्य रूप से शरीर और आत्मा दोनों को स्वस्थ, सुदृढ़, समुन्नत एवं विकसित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि मध्य प्रदेश तंत्र साधक महेश बिन्झाडे ने कहा कि वर्तमान जनमानस तंत्र नाम सुनकर ही भय एवं नकारात्मकता से भर जाता है। इसका एकमात्र कारण तंत्र के ज्ञान विज्ञान एवं प्रयोगों का दुरुपयोग किया जाना रहा है। उन्होंने बताया कि तंत्र विद्या एक रॉकेट की भांति तीव्र वेग से अपना प्रभाव दिखाती है। बशर्ते मनुष्य तंत्र साधना को पूर्ण श्रद्धा-निष्ठा, एकाग्रता एवं तत्परता के साथ अपनाएं।

कार्यक्रम का संचालन सुश्री गायत्री वर्मा ने किया। कार्यक्रम में शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग के डॉ0 अनिल मिश्रा, डॉ0 अर्जुन सिंह, डॉ0 कपिल राणा, डॉ0 अनुराग पांडे, डॉ0 त्रिलोकी यादव, डॉ0 मोहिनी, डॉ0 स्वाति, योग विज्ञान विभाग से अनुराग सोनी, आलोक तिवारी, दिवाकर पांडे, एवं योग वोकेशनल कोर्स के बीए, बीएससी, गणित एवं सांख्यिकी विभाग के एवं योग विज्ञान विभाग के समस्त विद्यार्थी गण उपस्थित रहे।

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