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देश की अर्थव्यवस्था में जल का बड़ा योगदानः प्रो. मनोज दीक्षित

कोविड-19 के दौरान जल प्रबन्धन एवं पर्यावरण विषय पर हुआ वेबिनार

अयोध्या। डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय एवं इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केन्द्र लखनऊ के संयुक्त संयोजन में कोविड-19 के दौरान जल प्रबन्धन एवं पर्यावरण विषय पर अन्तरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन आज 07 जुलाई, 2020 किया गया। वेबिनार को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ0 राजेन्द्र सिंह ने बताया कि वर्तमान सदी जल आपदा की शताब्दी है। अगर पानी का अनुशासन में रहकर उपयोग नहीं किया गया तो भारत की हालत कुछ अफ्रीकी देशों जैसी हो जाएगी। उन्होंने बताया कि यूरोप ने किसी हद तक अपना जल बचा कर रखा है लेकिन हम आज जल के व्यापार में लग गये हैं जल से मुनाफा कमाया जा रहा है जबकि जल सुरक्षा का विषय है। उन्होंने बताया कि पहले राजस्थान का लोक गीत था कि ”बादल तो आते हैं हर साल हमारे गाँव में पर बरसते कहाँ हैं हमें नहीं पता” लेकिन गाँव के लोगों ने सामूहिक प्रयास करके जल संचय किया। अब गीत बदल गया और लोग गाते हैं कि बादल आते हैं हमारे गाँव और बरसते हैं हमें खुशी भी देते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार नहीं बल्कि सामुदायिक प्रयासों से वाटर रिचार्ज किया जा सकता है। आज युवकों के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। अतिक्रमण तथा प्रदूषण ने जल को बहुत नुकसान पहुँचाया है। जल को लाभ का विषय बनाना खतरनाक है। चीन जैसे देश आज शिकार बन गये हैं। उन्होंने बताया कि जल हमारी श्रद्धा का विषय है लाभ का नहीं भारत कभी जल का ग्लोबल गुरु रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में जल का बड़ा योगदान है। आज जल के प्रति हमारी श्रद्धा में कमी आयी है जबकि जल ही जीवन है इसीलिए इसे पंचतत्व में शामिल किया गया है। हमारी कमी की वजह से नदियाँ नालों में बदल रहीं हैं। आज न खेती के लिये पर्याप्त जल बचा है न पीने के लिये। भारत की बारह प्रतिशत जनता के पीने के लिये जल नहीं है। विशिष्ट अतिथि के रूप में वन्य जीव बोर्ड यूपी के सदस्य अनूप कुमार सिंह ने कहा कि भारत भौगोलिक विषमताओं का देश है कहीं सूखा तो कहीं बारिश होती रहती है जिस पर हमारा वश नहीं है। लेकिन जल का अनुशासनिक प्रयोग तथा उसको स्वच्छ रखना हमारे हाथों में है। उन्होंने कहा कि अनुपयोगी जल को उपयोगी बनाना हमें सीखना होगा। इसके लिये सिंगापुर और मलेशिया का उदाहरण हमारे पास है। केन्या के प्रो0 राजू केशव राव तथा रजनीश पाठक ने जल प्रबन्धन के तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विकासशील देशों में प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी समस्या के कारण जल प्रबन्धन में मुश्किलें आ रही हैं। प्रदूषण रोकना बड़ी जिम्मेदारी है। वेबिनार में शकुन्तला मिश्रा विवि की प्रो0 पाँचाली सिंह ने कहा कि जल के मामले में भी माँग पूर्ति का सिद्धान्त लागू होता है। चुनौतियाँ हैं लेकिन हमें निपटना होगा। वेबिनार की समन्वयक एवं इग्नू की क्षेत्रीय निदेशक डॉ0 मनोरमा सिंह एवं प्रो0 जसवन्त सिंह ने विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सभी अतिथियों का परिचय कराया एवं आभार व्यक्त किया। वेबिनार के सहायक समन्वयक डॉ0 कीर्ति विक्रम सिंह तथा डॉ0 परितोष त्रिपाठी ने समन्वय स्थापित करते हुये प्रतिभागियों तथा वक्ताओं के बीच सेतु का कार्य किया। आयोजक सचिव डॉ0 रमापति मिश्रा तथा प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह ने सफल संचालन किया।

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