आज रामायण धारावाहिक में अंगद का रावण की सभा मे जाने का दृश्य था जिसमें रावण के दरबार मे वाद प्रतिवाद के बाद प्राणदण्ड दिए जाने पर अंगद ने पैर जमाकर रावण के योद्धाओं को चुनौती दे दी। इस पूरे दृश्यांकन का वर्तमान वैश्विक संकट कोरोना की महामारी के सापेक्ष विश्लेषण करे तो पाएंगे अंगद की तरह प्रत्येक व्यक्ति सार्स कोरोना वायरस 2 या नावेल कोरोना वायरस ,जिससे कोविड19 बीमारी के प्रभाव क्षेत्र में है।किंतु वहां रावण और उसके राक्षस गण दृश्य शत्रु थे जिनकी थाह हनुमान जी पहले ही ले गए थे, किन्तु यह अदृश्य वायरस है, इसलिए जीवन के संकट में विजय की संभावना के लिए हमारे पास अंगद की तरह दो ही तरीके है सजगता सतर्कता और बुद्धिकौशल से संक्रमण के प्रभाव से स्वयं को बचाकर रखें, और दूसरा अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता व आत्मबल को इतना मजबूत रखें कि किसी भी प्रकार का बल प्रयोग या प्रहार असर न कर सके और कोरोना रूपी दशानन चरणों मे तो झुके किन्तु आपको स्पर्श न कर पाए।
यहाँ शत्रु के बारे में यह जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए कि विषाणु सजीव व निर्जीव के बीच की कड़ी है, अर्थात यह केवल किसी सजीव कोशिका में ही रहकर सजीव की तरह व्यवहार कर सकता है,इनकी बहुत सी प्रजातियां है, किन्तु सभी का मनुष्यों पर सीधा असर नहीं, ज्यादातर जानवरों से मनुष्यों में संचरित या प्रसारित होती हैं फिर अनुकूल ताप व वातावरण में वहां यह अपनी संख्या बढ़ाते हैं, इस काल मे व्यक्ति में कोई पहचान के लक्षण नही उत्पन्न होते, यह समय इंक्यूबेशन पीरियड कहलाता है, फिर जब इनकी पर्याप्त संख्या हो जाती है तब इनकी विषाक्तता के लक्षण दिखने लगते हैं। हमारे शरीर मे भी लोकल इंटेलिजेंस की तरह सूचना तंत्र होता है जो बाहरी प्रोटीन की पहचान कर तुरन्त सुरक्षा तंत्र डब्ल्यू बी सी को चिन्हित जगह पर नियंत्रण के लिए भेजता है, इसी सुरक्षात्मक कार्यवाही का नमूना है सर्दी जुकाम या छींक से द्रव में संक्रमण को बाहर फेंकना, या ताप बढ़ाकर, वायरस की गतिविधि को नियंत्रित करना, क्योंकि ज्यादातर प्रकार के वायरस 99 डिग्री फारेनहाइट से अधिक ताप पर सक्रियता नही बढ़ा पाते, साथ ही विषाणु अपनी सुरक्षा में विषाक्तता प्रदर्शित करता है, इस द्वंद में व्यक्ति को बुखार व शरीर में दर्द का अनुभव होता है। व्यक्ति में इनके प्रवेश का सरलतम मार्ग श्वसन तंत्र का ऊपरी हिस्सा अर्थात नाक, या मुंह सकता है, जहां यह स्थापित हो सकते है, क्योंकि इन अंगों में श्लेष्मिक स्राव की आर्द्रता के कारण तापमान शरीर व वातावरण से एक दो डिग्री कम होता है जो वायरस के रेप्लिकेशन के लिए मुफीद होता है। शरीर का सुरक्षा तंत्र प्रवेश मार्ग के जिस भाग में इनकी पहचान कर रोक पाता है ,इन्हें बाहर करने की प्रतिक्रिया लक्षणों के रूप में शरीर को सूचित करती है जैसे नाक में होने पर नाक से पानी, खुजली, और छींक, आंख से पानी, सिरदर्द,गले के अंदर पहुँचने पर गले मे दर्द, निगलने में तकलीफ, आवाज में भारीपन, सूखी खांसी, या बलगम, थोड़ा नीचे ब्रांकास में होने पर सूखी खांसी, या बहुत कम अथवा गाढ़ा बलगम, फेफड़ों तक पहुँचने पर न्यूमोनिया, सांस लेने में तकलीफ, बुखार आदि, व इसके बाद अन्य अंग तंत्रों को प्रभावित कर सकता है।अर्थात लक्षण वायरस की संक्रामकता व प्रभाव के स्तर को भी प्रदर्शित करते हैं। किन्तु वर्तमान में कोरोना की जिस प्रजाति का प्रसार है उसके बारे में अथवा इसके कारगर उपचार के बारे में अधिक जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं हो पाई है ऐसे में अंगद की तरह समय पर सचेत सतर्क रहते हुए स्वयं को वायरस के संक्रमण की संभावनाओं को कम करने लिए संक्रमित व्यक्ति या उस क्षेत्र से बचाये रखने के साथ अंगद की तरह ही मजबूत आत्मबल की तरह अपने शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने के उपाय करना ही श्रेयस्कर है।
संक्रमण से बचाव के क्या हैं उपाय –
कोविड 19 की कोई दवा अभी ज्ञात नही इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बचाव पक्ष को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हुए कुछ निर्देश दिए हैं जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति से कराने के लिए कई देशों ने लॉक डाउन घोषित कर रखा है जिससे समाज मे व्यक्तियों का मिलना जुलना कम किया जा सके। इसका कारण है कि यदि कोई व्यक्ति जिसमे शुरुआती कोई लक्षण नही हैं ऐसे में यदि वह संक्रमित हुआ तो सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों जिनकी इम्युनिटी कम है , उन्हें संक्रमित करता जाएगा और इसप्रकार संक्रमण में गुणात्मक बृद्धि हो सकती है और यही मनुष्यता के लिए सबसे बड़ा संकट और चिंता का विषय है।
इसलिए पहला तरीका है फिजिकल डिस्टेंसिंग : जिससे भीड़-भाड़ वाले स्थानों में लोगों के बड़े समूहों के व्यक्तिगत संपर्क को कम किया जा सके। इसलिए अभिवादन के लिए भारतीय संस्क्रति के अनुरुप हाथ जोड़कर नमस्ते करना चाहिए, हाथ मिलाने, गले लगने, चुंबन,या अन्य शारिरिक सम्पर्कों को त्यागना चाहिए, किन्तु परस्पर सहयोग की भावना को बढ़ावा देते हुए अपने सामाजिक बन्धन को मजबूत करना चाहिए।
फेस मास्क : मास्क विषाणु को रोक देगा ऐसा तो नही कहा जा सकता किन्तु बूदों द्वारा होने वाले संक्रमण को नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है।
हाथ की स्वच्छता : बार-बार साबुन और पानी, या 70%एल्कोहल आधारित सेनेटाइजर ,खाँसी या छींकने के बाद, भोजन से पहले, सार्वजनिक जगहों पर दरवाज़े के हैंडल, बटन, या अपने चेहरे को छूने से पहले हाथ अच्छी तरह धोना चाहिए
खांसी आने पर टिश्यू पेपर या हाथ की कोहनी का प्रयोग करें और टिश्यू पेपर को गड्ढे में ढक दें।
चेहरे को छूने से बचना: चेहरे को छूने से बचना एक आत्म-सुरक्षा उपाय है, क्योंकि दूषित हाथ म्यूकोसल सतहों से संपर्क कर सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
आइसोलेशन या आत्म-अलगाव: आत्म-अलगाव सामाजिक में संक्रमण फैलने से रोकने में आपका स्वयं से किया जाने वाला श्रेष्ठ योगदान है ,यदि आपमे उपरोक्त कोई लक्षण दिखें तो स्वयं को सार्वजनिक मेल मिलाप से पृथक कर लेना चाहिए और आवश्यकतानुसार चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त मांसाहार से
बचना चाहिए, संक्रमित क्षेत्रों की यात्रा न करें, और यदि कोई ऐसे क्षेत्र से आया है तो उन्हें भी 14 दिनों तक जांच के डायरे में रखना चाहिए क्योंकि नावेल कोरोना वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड 2- 14 दिन तक है।
अफवाहें न फैलाएं – अप्रमाणिक सूचनाओं के प्रसार से अनावश्यक भय का वातावरण बनता है, साथ ही यह सामाजिक विद्वैष को भी बढ़ावा देता है इसलिए किसी भी समाचार या सूचना को अपने स्तर से रोकने का प्रयास करें, संवेदनशील होने पर इसकी जानकारी प्रशासन को दे सकते हैं।
सार्वजनिक रूप से थूकने से बचें, साथ ही अपने घर व आस पास साफ सफाई रखें, घर की दीवारों दरवाजे के हैंडल आदि को भी सैनेटइज करते रहना चाहिए।
अपनी इम्युनिटी को कैसे बढ़ाएं – शरीर मे विटामिन सी की उपयुक्त मात्रा आपकी इम्युनिटी के लिए आवश्यक है। प्राकृतिक तौर पर माता का दूध नवजात के लिए सर्वोत्तम आहार है। सूर्य का प्रकाश , स्वच्छ हवा, प्राकृतिक सब्जियां , ताजे फल, नींबू , संतरा, मुसम्मी, इस समय खीरा, टमाटर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। मिनरल साल्ट से भरपूर नारियल पानी भी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा है। घर मे चाय की जगह गुड़, हल्दी, सोंठ , तुलसी, दालचीनी, पिपली, काली मिर्च, का काढ़ा नियमित ले सकते हैं। सोते समय 2 बूंद गाय का घी नाक में लगा सकते हैं।
साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांतों पर आधारित होम्योपैथी बिना किसी दुष्परिणाम के आपकी जीवनी शक्ति के स्तर पर इम्युनिटी को बढ़ाकर रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है, किन्तु इसमे औषधि का चयन रोग के नाम से नही व्यक्ति के लक्षणों पर आधारित होता है इसलिए चिकित्सा की किसी भी पद्धति में दवा का प्रयोग केवल चिकित्सक की सलाह पर लेने की आदत डालें।