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स्वछंदता को करें लॉक पर मनोबल को न होने दे डाउन

स्वस्थ मनोयुक्ति से ही सम्भव है महामारी से मुक्ति : डा. आलोक मनदर्शन

अयोध्या। जिला अस्पताल के किशोर मनो परामर्श दाता डा. आलोक मनदर्शन ने बताया कि मनोयुक्तिया या मनोरक्षा युक्तियाँ वे मानसिक प्रक्रियाएं है जिनका प्रयोग हमारा अर्धचेतन मन विपरीत या चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए और त्वरित मनोशुकुन प्राप्त करने के लिए करता है।इसमे एक कैटेगरी तो सकारात्मक या स्वस्थ होती है,बाकी तीन केटेगरी रुग्ण या नकारात्मक होती है,जिसमें हम चुनौतियों से असहाय व निराश हो कर हमदर्दी के पात्र बनना पसंद करने लगते है या  रिएक्टिव होकर ऊल जुलूल व अवांछनीय हरकते करने पर इस तरह उतारू हो जातें कि इससे न केवल अपने लिये बल्कि समाज व देश के लिये भी खतरा बन जाते है। और फिर जीवन भर हम इन्ही रुग्ण मनोयुक्तियों के चंगुल में फंस कर अपनी क्षमता का सम्यक उपयोग नही कर पाते है और असफल और नैराश्य भरा जीवन जीने लगते है।इन रुग्ण मनोरक्षा युक्तियों में इम्मेच्योर मनो रक्षा युक्ति, न्यूरोटिक मनोरक्षा युक्ति तथा सायकोटिक युक्ति शामिल है। जबकि सकारात्मक व स्वस्थ मनोरक्षा युक्ति मेच्योर युक्ति कहलाती है,इसमे मुख्य रूप से खुशमिज़ाजी,मानवीय संवेदना,सप्रेशन व सब्लीमेंशन आते है। यह मनोयुक्ति हमें एक जिम्मेदार नागरिक व जागरूक स्वयंसेवी के रूप में इस प्रकार स्थापित करती है जिससे आत्मसंयम व जनकल्याण की प्रेरणा तो मिलती ही है,साथ ही मनो स्वछंदता या मनोअगवापन जनित उन गतिविधियों को भी सेल्फ कंट्रोल करती है जिससे अपेक्षित व्यहारिक मानको के टूटने की संभावना बनती हो।

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