भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर दीक्षांत सप्ताह के तहत विशिष्ट व्याख्यान
अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के 24वें दीक्षांत समारोह के उपलक्ष्य में संत कबीर सभागार में भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर दीक्षांत सप्ताह के तहत विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। दीक्षांत सप्ताह का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रो0 रजनीश कुमार शुक्ल, कुलपति, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो0 रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत भूमि के संस्कृति में ज्ञान बसता है। भारत की विश्व में चर्चा राम राज्य के रचनात्मक कार्य के रूप में होती है। अनादिकाल से भारत सांस्कृतिक ज्ञान की परिधि में रहा है। इसी रामराज्य की परिकल्पना को लेकर महात्मा गांधी ने समूचे देश में रामराज्य के उस स्वरूप को अपनाने की बात कही थी जिस समाज में अंतिम व्यक्ति लाभान्वित हो सके। प्रो0 शुक्ल ने बताया कि भारतीय ज्ञान परम्परा के श्रोत वेद एवं धर्मग्रन्थ है। ब्रिटिश विद्वानों ने भी अब यह स्वीकार कर लिया है कि दुनियां की सबसे वैज्ञानिक भाषा संस्कृत है। भगवान राम की इस धरती से ही सर्वोत्तम शासन की परम्परा उभरी है। अंग्रेजों की शिक्षा नीति ने भारतीय समृद्धि शिक्षा परम्परा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में ज्ञान की उत्पत्ति मानव कल्याण के लिए की गई है। परन्तु आज का यह युग सभ्यताओं के सघर्ष का युग है। ज्ञान अत्यन्त सरत प्रत्यय है बोध में उतरे बिना इसकों परिभाषित करना कठिन है। भारतीय ज्ञान परम्परा को विशिष्ट बनाता है। वेद उसे प्रमाणित करते है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि प्राचीन भारतीय शिक्षा नीति इस प्रकार समृद्ध थी कि देश प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित और स्वावलम्बी था। भारत की शिक्षा नीति वैज्ञानिक होने के साथ-साथ आध्यात्म से भी जुड़ी रही। क्योंकि आध्यात्मिकता के बगैर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नही हो सकता। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि हम मूल प्राचीन शिक्षा से इस तरह अलग हो गये है कि 18 वीं शताब्दीं में सत्प्रतिशत शिक्षित भारत अभी तक वहां नही पहॅुचा है। हम अभी सिर्फ साक्षरता के जिस मुकाम पर है उससे आगे शिक्षित होना हमारे लिए और आवश्यक है। कुलपति ने कहा कि जिस राम से हमारी पहचान विश्वभर में है उन्हीं पर हम अदालत में बहस कर रहे है। राम से ही भारतीय संस्कृति और शासन का उदय माना जाता है। अंग्रेजी शासन में भारतीय शिक्षा नीति की जड़ों पर बहुत गहरायी से आघात किया है। देश के सर्वागीण विकास के लिए हमें अपनी प्राचीन शिक्षा नीति को अपनाना ही होगा।
कार्यक्रम का स्वागत संयोजक छात्र अधिष्ठाता कल्याण प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 नीलम यादव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 विनय मिश्र द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो0 अशोक शुक्ल, प्रो0 एम0पी0 सिंह, प्रो0 सी0के0 मिश्र, प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह, प्रो0 एस0के0 रायजादा, प्रो0 एस0एस0 मिश्र प्रो0 नीलम पाठक, प्रो0 राजीव गौड़, प्रो0 मृदुला मिश्रा, प्रो0 फारूख जमाल, डॉ0 शैलेन्द्र वर्मा, डॉ0 अनिल यादव, डॉ0 राजेश सिंह कुशवाहा, डॉ0 आर0एन0 पाण्डेय, डॉ0 शशि सिंह, डॉ0 गीतिका श्रीवास्तव, डा0 तुहिना वर्मा सहित बड़ी संख्या में शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रही है।