यम द्वितीया पर्व पर कायस्थ समाज ने की कलम पूजा

by Next Khabar Team
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भगवान चित्रगुप्त का हुआ पूजन अर्चन

अयोध्या। यम द्वितीया का पर्व कलम दवात पूजन पर्व के नाम से भी विख्यात है। दीपावली के ठीक अगले दिन पड़ने वाले इस पर्व पर कायस्थ समाज कलम दवात का पूजन कर इसका पुनः उपयोग शुरू करता है। कलम दवात के पूजन को लेकर एक पौराणिक कथा भी है जो इसकी महत्ता को प्रमाणित एवं प्रकाशित करती है। सामान्य तौर पर इस तिथि को अयोध्या के नया घाट स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर में जहाँ प्रातः काल से कलम दवात पूजन के साथ शुरू होकर देर शाम तक विविध सांस्कृतिक कार्यकर्मो का आयोजन होता है वही कैंट क्षेत्र में यमथरा घाट पर भी पूजन व परपरागत मेले का आयोजन किया जाता है।
कलम दवात पूजन को लेकर पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छूट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने अपनी लेखा जोखा करने वाली कलम रख दी थी। उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था और इसी के बाद की घटना से ही कायस्थ समाज मे कलम दवात के पूजन की परम्परा आरम्भ हुई। परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानी किसी भी तरह का हिसाब – किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ है ? कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते है और फिर यम द्वितीया के दिन कलम- दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते है। इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ? सेवानिवृत्त उपनिबंधक व कायस्थ धर्म सभा के पदाधिकारी रहे अयोध्या निवासी नरेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव बताते है कि पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राज सिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं। ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा कि भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है। इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था। जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये। इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया। सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया कि स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे। प्राणियों का लेखा जोखा न लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि किसको कहाँ भेजे? तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर ( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यतः श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग 4 पहर (24 घंटे बाद ) पुनः कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया। कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और यम द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है।

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