पति पत्नी और वो के बढ़ते चलन का मनोवैज्ञानिक उपचार है करवा पर्व
अयोध्या। आज के तेजी से बनते बिगड़ते युवा वैवाहिक संबंधों की मनोसामाजिक समस्या से युवाओं में बढ़ती अवसाद व मनोतनाव के दृष्टिगत ज़िला चिकित्सालय के युवा मनोपरामर्श क्लीनक द्वारा आयोजिक कार्यशाला मे डॉ आलोक मनदर्शन ने कहा कि अब करवा चौथ पर्व की मूल अवधारणा अति प्रासंगिक हो चुकी है। यह बात ज़िला चिकित्सालय के युवा व किशोर मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने कही । पाश्चात्य दाम्पत्य कुसंस्कृत व आपसी विश्वास व समर्पण में आ रही गिरावट से पारिवारिक विघटन व एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की भौतिकवादी सोच से आज के युवक व युवतियों की छद्म आधुनिकता की मनोउड़ान हमारे भारतीय संस्कृति पे न केवल कुठाराघात कर रही है, अपितु पारिवारिक , कानूनी व मनोसामाजिक समस्याओ में तेजी से इजाफा कर रही है। जिसका दंश सुखी दाम्पत्य जीवन पे इस तरह पड़ रहा है कि उनकी मनोशान्ति भंग हो रही है जिसकी परिणति अवसाद, उन्माद,आत्महत्या व परहत्या के रूप में सभ्य समाज को कलंकित कर रही है।
डा. आलोक ने बताया कि करवा पर्व न केवल एक उमंग व खुशी देने वाला पर्व मात्र है,बल्कि यह पति पत्नी के भावनात्मक संबंधों को बलीभूत करता है जो दाम्पत्य जीवन की कुटुताओं व मनोविभेद को उदासीन कर परिवार के प्रति समर्पण व अटूट निष्ठा व त्याग का पुनर्संचार कर दाम्पत्य जीवन को सुख व सन्तुष्टि से भर देने का कार्य करता है। डॉ मनदर्शन के अनुसार इस पर्व पर पति पत्नी के मन में ऑक्सीटोसिन व एंडोर्फिन मनोरसायनो का स्राव इस रूप में मनोसक्रिय हो जाता है जिसका सकारात्मक प्रभाव पति व पत्नी को एक दूसरे प्रति पुनः समर्पित होने के मनोभाव से चलायमान हो जाता है। इस प्रकार करवा पर्व आज के भौतिकवादी समाज मे जीवन साथी से तेजी से बिगड़ते सम्बन्धों को जोड़ने के मनोउत्प्रेरक का कार्य करता है।