कहा-विश्वविद्यालय द्वारा मूल्यांकन कराए जाने का पैसा शिक्षकों को कभी भी समय से नहीं मिलता
अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या शिक्षक भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में शिक्षा संघ अध्यक्ष डॉ. बी पी सिंह ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय की गिरती हुई गरिमा को बचाने की बुद्धिजीवियों से अपील की । विश्वविद्यालय द्वारा लगातार हो रही परीक्षाओं से महाविद्यालयों में पठन-पाठन का काम ठप हो गया है । एक परीक्षा खत्म नहीं होती है की दूसरी शुरू हो जाती है।गत वर्ष भी इसको लेकर शिक्षक संघ ने विरोध किया था और कुलपति ने आश्वासन दिया था कि अब परीक्षाएं वर्ष में दो ही बार होगी किंतु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि वह रोग फिर भी कायम है। अध्यक्ष ने यह भी कहा की महाविद्यालयों को जबरन केंद्र थोपा जाना अनुचित है खास करके एलएलबी के छात्रों के लिए। विश्वविद्यालय ने अगर महाविद्यालयों को मान्यता दी है तो उनके पास संसाधन एवं शिक्षकों की संख्या देखकर की है। हर कॉलेज अपने महाविद्यालय की परीक्षा कराएं । अगर कहीं पर नकल की आशंका हो तो विश्वविद्यालय वहां पर अपने आब्जर्वर, उड़ाका दल भेज कर उसको ठीक करें।
विश्वविद्यालय द्वारा मूल्यांकन कराए जाने का पैसा शिक्षकों को कभी भी समय से नहीं मिलता यह बड़े खेद का विषय है जबकि विश्वविद्यालय महाविद्यालयों से बहुत पहले ही उसका पैसा ले लेता है ।विश्वविद्यालय में वायवा के लिए कुछ और नियम है और मूल्यांकन के लिए कुछ और शिक्षक एमए के मौखिकी के लिए अर्ह है पर विश्वविद्यालय उन्हें मूल्यांकन के लिए अनर्ह मानता है । इस दोहरे मापदंड पर रोक लगाई जानी चाहिए। शिक्षक संघ ने कई बार यह मांग की कि शिक्षकों को प्रैक्टिकल और वाइबा की सूचना विश्वविद्यालय द्वारा दी जानी चाहिए किंतु इस पर कोई असर नहीं है। महाविद्यालयों द्वारा ही शिक्षकों को सूचना दी जाती है कभी-कभी महाविद्यालय सूचना देते हैं और कभी-कभी बिना शिक्षक के जानकारी के भी परीक्षाएं हो जाती हैं । यह प्रवृत्त विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही घातक है ।
महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के वेरिफिकेशन का भी उठाया मुद्दा
-शिक्षक संघ अध्यक्ष ने महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के वेरिफिकेशन का भी मुद्दा उठाया । ऐसा देखने में आया है कि कई परीक्षक जो कहीं अन्यत्र कार्यरत हैं किंतु अवध विश्वविद्यालय में प्रैक्टिकल वायवा ले रहे हैं। विश्वविद्यालय के लिए यह प्रवृत्ति बहुत ही घातक है। महाविद्यालयों द्वारा शिक्षकों से मनमाना नंबर लेने का दबाव बनाया जाता है उक्त नंबर न देने पर उन्हें अपमानित होना पड़ता है जिसकी शिकायत परीक्षा नियंत्रक से करने पर भी कोई समाधान नहीं मिलता है । जिससे ऐसे महाविद्यालयों मे इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है उल्टे शिकायतकर्ता को ही दंडित कर उसकी जगह दूसरा परीक्षक नियुक्त कर दिया जाता है ।
इसी तरह मूल्यांकन में भी यह खेल चल रहा है। 75 प्रतिशत अधिकतम अंक की सीमा का लगातार उल्लंघन हो रहा है जबकि इससे अधिक नंबर पाने वाले छात्र का स्पष्टीकरण परीक्षक द्वारा दिए जाने का प्रावधान है । 50 से कम छात्र होने पर महाविद्यालयों को केंद्र न बनाए जाने का परंपरा भी विश्वविद्यालय ने अब तिलांजलि दे दिया है । 20 से 25 छात्रों पर भी परीक्षा वायवा के लिए केंद्र बनाए जा रहे हैं जिससे विश्वविद्यालय के आर्थिक स्रोतों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है । 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर केंद्र बनाए जाने के शासनादेश का भी उल्लंघन हो रहा है। 40 किलोमीटर दूर छात्रों को परीक्षा केंद्र जाकर परीक्षा देना पड़ता है।
केंद्रों पर प्राचार्य ना होने पर केंद्र न बनाने की शासनादेश का उल्लंघन हो रहा है। सब मिलाकर विश्वविद्यालय समस्त नियम शासनादेश को ताक पर रखकर परीक्षा नियंत्रक की मनमानी से चलाया जा रहा है जो विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही घातक है। शिक्षक संघ मुख्यमंत्री से मांग करता है कि इन बिंदुओं की किसी सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति से जांच कराई जाए एवं दोषियों को दंडित किया जाए ताकि विश्वविद्यालय की गरिमा बहाल हो सके।