-अवध साहित्य संगम की हुई मासिक कवि गोष्ठी
अयोध्या। संस्था अवध साहित्य संगम की मासिक कवि गोष्ठी संस्था के कार्यालय वजीरगंज रेलवे क्रॉसिंग पर संपन्न हुई जिसकी अध्यक्षता शिव प्रसाद गुप्त शिवम एवं रामानंद सागर ने संचालन किया वाणी वंदना की सुधांशु गोपाल नेः- तू इंदु सदृश धवला तू श्वेत कमल विमला तू तम का करे दमन मां शत-शत तुझे नमन। अलीबाबा सरमद ने नाते पाक पेश कियाः- जर्रे जर्रे में जिया कार नज़र आते हैं जिस तरफ देखिए पुर अनवार नजर आते हैं ।रामशंकर रिन्द ने गीत पढ़ाः- ना हो आपस में भेद कोई भाईचारा का चक्कर हो, ना रहे अंगूठा टेक कोई हर नर नारी सब साक्षर हो ।
वाहिद अली वाहिद ने ग़ज़ल सुनाईः- वफा की चाह में अब तक के दिन गुजारे हैं, कहीं वफा ना मिली ना ही अब सहारे हैं। सुधांशु गोपाल ने गीत सुनाया :-एक रात सपने में मेंरे चुपके से यमराज थे आए, बार-बार बस यही थे कहते तुमको ले जाने हम आए। अवधेश बिंदास ने गीत सुनायाः-बचपन आलीशान चाहिए, चेहरे पर मुस्कान चाहिए, स्वस्थ रहे भारत का बचपन, ऐसा हिंदुस्तान चाहिए। रविंद्र कबीर ने गजल पेश कियाः- ताज्जुब यह हुआ सुनकर जो उसने बात पूछी है, मेरे हालात पूछे हैं मेरी औकात पूछी है।
रंजीत यादव ने सुंदर सा गीत प्रस्तुत किया हम तेरे लिए कुछ शायरी कुछ छन्द लिखेंगे,तेरे गुलाबी होठों को मकरंद लिखेंगे। राम अक्षयवर वैज्ञानिक ने नेताओं पर व्यंग्य कियाः- वहरी से यहरी आवा तो वफादार होई गवा,यहरी से वहरी गवा तौ गद्दार होई गवा, वैज्ञानिक यही सोचकै अफसोस बहुत बा,यही आवाजाही में देश के बंटाधार होई गवा। अलीबाबा सरमद ने ग़ज़ल पेश कियाः-वफ़ा से दिल को राहत है जफ़ा से चोट लगती है, बशर कोई भी हो लेकिन दगा से चोट लगती है। नीत कुमार ने गीत सुनायाः- मां तेरे ही सपूत करें प्राण आहुती, शत शत नमन तुम्हे हो स्वीकार भारती। रवि तक्षक गोंडवी ने भी गीत सुनायाः- चढ़ते हुए सूरज पे काले बादल से छा गए, यह किस तरह के लोग सियासत में आ गए। विनीता महक गोंडवी ने गीत पढाः-प्यासा चातक मारा मारा देखो कैसे जीता है झील नदी और झरनों में वह कभी न पानी पीता है।
गया प्रसाद आनंद गोंडवी ने दोहा प्रस्तुत कियाः- कविता लेती जन्म जब, कवि रहता है मौन, प्रसव दर्द कवि का भला, समझ सकेगा कौन। रामचरण रसिया आसिफ अकबर पुरी में ग़ज़ल सुनाईः- अच्छा नहीं तो ना सही किस्मत में कुछ तो है, खुशियां नहीं तो ना सही हमराह दुःख तो हैं। चंद्रगत भारती ने सुंदर गीत सुनायाः- लिख ना पाया चाह कर भी गीत के उद्गार का, गीत लिखना चाहता था आज भी सिंगार का। दुर्गेश निर्भीक ने कहाः- इसकी पीड़ा उस पर भारी उसकी पीड़ा इस पर भारी, मिलकर सब का भार बाट लें फिर तो होगी जीत हमारी।
श्रीराम क्रांतिकारी ने व्यंग्य गीत पढाः- पाबंदियों ने कितनों को बढ़ने नहीं दिया, कुछ सिरफिरे ने बहुतों को पढ़ने नहीं दिया। इल्तिफात माहिर ने गजल सुनाईः-घटा बरसात दरिया की रवानी कौन लिखेगा, अगर सब आग लिखेंगे तो पानी कौन लिखेगा। ब्रह्मदेव मधुकर ने दोहे सुनाएः- मधुकर यहि कलि काल में, अत्याचार अनेक, बहुत पाप तो हो गए, शेष एक से एक। सभाध्यक्ष शिव प्रसाद गुप्त ने मुक्तक सुनाएः- मानवता सदधर्म श्रेष्ठतम मत मतांतर भेद भुलावें, ऊंच-नीच समता की खाई राष्ट्रप्रेम से सहज पटावे।इनके अतिरिक्त रामायण देव वर्मा, कुमारी शशि, कुमारी कुसुम और और अब्दुल्ला चिराग आदि ने रचनाएं पढ़ी।