-शादीशुदा व बुजुर्ग भी हैं रील-फैंट्सी से आसक्त, फैंट्सी-वर्ल्ड की आसक्ति से रहें सजग
अयोध्या। सोशल मीडिया की रील अब सेक्सुअल-फैंट्सी ऑब्सेशन-एसएफओ यानी कामुक-कल्पना आसक्ति बनती जा रही है। इसके शिकार लोग सोशल-मीडिया के यौनोत्तेजक-रील्स से आसक्त होकर कामुक-फन्तासी या सेक्सुअल डे-ड्रीमिंग के शिकार हो वास्तविक जीवन के रोमांच व आनंद से दूर होते जा रहे हैं और रील्स को देख व कमेंट आदि से आभासी आनंद प्राप्त कर रहे हैं ।
इतना ही नही, रील-एक्टर से पहुंच बनाने से लेकर इंटीमेट होने तक का जूनून ऑनलाइन ऑडियो-विजुअल चैटिंग या सेक्स्टिंग के रूप मे दिख रहा है। यह लत अविवाहित लोगों तक ही सीमित न होकर शादीशुदा लोगों में भी दिख रही है। रील-जनित सेक्सुअल-फैंट्सी की दखल दाम्पत्य-जीवन में भी दिख रही है, क्योंकि रील की चकाचौंध में दाम्पत्य-यौनानंद बोरिंग, मोनोटोनस व उबाऊ नज़र आने लगता है। वैसे भी मैरिटल-रिलेशनशिप में धीरे-धीरे यौनाकर्षण स्थाई सुरक्षा और कंफर्ट में बदलने लगती है तथा यौनानंद-रसायन डोपामिन कम तथा आत्मीयता-हार्मोन ऑक्सीटोसिन का लेवल बढ़ता है।
युगल या एकल बुजर्ग भी इस लत से ग्रसित हो मनोशारीरिक समस्याओं व सामाजिक उपहास के पात्र बन रहे हैं। फैंट्सी-वर्ल्ड मे गोता लगाने से रिवॉर्ड-हार्मोन डोपामिन बढ़ता है और उत्तेजक-एहसास ब्रेन के मेमोरी-सेन्टर हिप्पोकैम्पस मे फीड हो कर इसकी तलब पैदा करता है।
यौन-कल्पना या सेक्सुअल-फैंट्सी यदि सजग व संयमित है, तो यह सामान्य है क्योंकि फैंट्सी या कल्पनानंद मानव-मन का स्वभाव है। परन्तु यदि इससे व्यक्तिगत, अकादमिक,व्यवसायिक व सामाजिक जीवन दुष्प्रभावित होने लगे तो मनोविकार रूप में इसकी पहचान व जरूरी है। इस लत के नशाखोरी, जुआखोरी जैसे डोपामिनर्जिक लत मे बदलने तथा अवसाद,उन्माद, सुसाइड या होमिसाइड का भी रिस्क होता है । सामयिक रील-इंड्यूस्ड सेक्सुअल-फैंट्सी डिसऑर्डर विषयक जागरूकता वार्ता में यह जानकारी जिला चिकित्सालय के मनो परामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने दी ।