विश्व हृदय दिवस पर हुई कार्यशाला
अयोध्या। दिल हमारे शरीर का सबसे मजबूत अंग है, क्योंकि यह गर्भकाल से ही अनवरत कार्य करना शुरू कर देता है और जीवन पर्यन्त हमारे शरीर में रक्त का लगातार संचार करता है, लेकिन हमारे मनोभावों के प्रति यह उतना ही संवेदनशील है। दिल और दिमाग के इस गहरे सम्बन्ध का खुलासा ज़िला चिकित्सालय के डॉ मनदर्शन द्वारा किये गये डाक्यूमेन्ट्री रिसर्च के बाद सामने आया है। यह विचार विश्व हृदय दिवस पर आयोजित कार्यशाला में युवा व किशोर मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन ने व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि हृदय एवं मनोभावों के बीच सम्बन्धों का वर्णन हजारों वर्ष पूर्व धार्मिक ग्रन्थों में ही नही वरन् चिकित्सा ग्रन्थों मे भी मिलता है। अंग्रेजी भाषा के अनेक शब्द जैसे हार्ट ब्रेक, हार्ट एक, हैवी हार्टेड तथा हिन्दी के शब्द जैसे दिल टूटना, दिल बैठना आदि हमारे मनों भावों के प्रति हृदय की संवेदनशीलता को व्यक्त करता है। भाषाविदों का मत हैं कि एंजाइना, एंगर,एंग्जाइटी एवं एंग्विश शब्दों की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द‘‘एंज’’ से हुई है, जिसका तात्पर्य तेज मानसिक दबाव या तीव्र मनोदमन से लिया जाता है। 300वर्ष पूर्व विलयम हार्वे ने मस्तिष्क एवं हृदय के सम्बन्धों का वर्णन करते हुए उन्होने कहा कि मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय,क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव हमारे दिल पर पड़ता है।
डा. आलोक ने बताया कि प्रथम चरण में मेन्टल कैथार्सिस का अवसर दिया जायेगा जिससे व्यक्ति अपनी दमित भावनाओं को खुल कर अभिव्यक्त कर सके।दूसरे चरण में सपोर्टिव तकनीक का प्रयोग करते हुए आत्मविश्वास विकसित किया जायेगा ।तीसरे चरण में उसकी अंतर्दृष्टि का विकास काउंटर प्रोजेक्टिव तरीके से किया जायेगा तथा अंतिम चरण में रियलिटी ओरिएंटेशन तथा स्ट्रेस कोपिंग कैपेसिटी का विकास किया जायेगा।
उन्होने बताया कि दैनिक क्रिया-कलाप से उत्पन्न दबाव व तनाव को अपने मन पर हाबी न होने दें। मनोरंजक गतिविधियों तथा मन को शुकून व शांति प्रदान करने वाले ध्यान व विश्राम को प्राथमिकता दें। आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। काग्निटिव-बिहैवियर मनोज्ञान के माध्यम से मन पर तनाव के हाबी होने से काफी हद तक बचा जा सकता है तथा आनन्दित व शांत मनोदशा के सकारात्मक मनोंप्रभाव से दिल की सेहत भी संवारी जा सकती है।