कोरोना से बचाव में जरूरी : आरोग्य की बात होम्योपैथी के साथ

by Next Khabar Team
8 minutes read
A+A-
Reset

वायरस से तन की दूरी, डर से मन की दूरी : डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी

म्यूटेशन की प्रक्रिया से वायरस बनाता है नए और प्रभावी वेरिएंट

अयोध्या। कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन की संक्रामकता ने विश्वमानवता के सामने पुनः एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। विश्व की दूसरी बड़ी जनसंख्या होने पर भी भारत में रिकार्ड वैक्सीनेशन के बावजूद बढ़ते संक्रमण के आंकड़े,भारत मे कई राज्यों में घोषित चुनाव के मद्देनजर भविष्य की चिंता का विषय है। उक्त सामयिक विषय पर विगत कोरोनकाल में होलिस्टिक टेलिकन्सल्टेशन सेवा का संचालन कर चुके होम्योपैथी फ़ॉर ऑल के चिकित्सक डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने “आरोग्य की बात होम्योपैथी” के साथ अभियान अंतर्गत जानकारी देते हुए कहा कि वैक्सीन लगवा चुके लोग यह मानकर निश्चिंत हो कि वे पूर्णता सुरक्षित हैं, और बचे लोगों में अभी तक न लगवा पाने के बीच पुनः संक्रमण का भय होने, या संक्रमण को केवल सर्दी जुकाम की तरह कम खतरनाक मानकर निश्चिंतता का भाव और इस प्रकार कुल मिलाकर लापरवाही निश्चित रूप से भविष्य के खतरे का संकेत हो सकती है। डा त्रिपाठी ने तर्क दिया कि स्वयं को प्रभावी बनाये रखने के लिए विषाणु में स्वभावतः समय के साथ जेनेटिक मैटेरियल में परिवर्तन या म्यूटेशन के जरिये नए वैरिएंट बनाने का गुण पाया जाता है, इसलिए हो सकता है कि एक समय कम खतरनाक किन्तु अधिक संक्रामक वेरिएंट के प्रभाव से हम निश्चिंत हो जाएं किन्तु संभव है उसके बाद उसका कोई प्रभावी म्यूटेशन अधिक खतरनाक रूप में सामने आ जाये, इसलिए कम से कम छः माह तक हमे अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए और कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने समझाया कि कोविड 19 महामारी आरएनए विषाणु सार्स कोव 2 के साथ शुरू हुई तबसे इसके अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा वैरिएंट देखने को मिले जिसमे डेल्टा वेरिएंट ने जीवन के लिए सबसे ज्यादा अकस्मात स्थितियां पैदा की। सामान्यतः वायरस की लिपिड खोल में स्पाइक प्रोटीन हमारे ऊपरी श्वसन तंत्र के एसीई रिसेप्टर से जुड़कर तेजी से संख्या बढ़ाता है और अंततः न्यूमोनिया जैसी स्थिति का निर्माण कर फेफड़ों को अवरुद्ध करते हुए जीवन के लिए संकट पैदा करता रहा। इस प्रक्रिया में इसके अलग अलग वैरिएंट की प्रभाविता व समय अलग अलग रही। अध्ययनों में अब तक 2 से 4 म्यूटेशन तक पाए गए और संक्रामकता के लिहाज से अल्फा वेरियंट ने एक से तीन व्यक्तियों, गामा वेरिएंट ने 2-5 व्यक्तियों तो डेल्टा वैरिएंट 1 से 7 व्यक्तियों तक में फैलता रहा है। इनमें ज्यादातर में 3-5 दिन में लक्षणों की उत्पत्ति व 10-15 दिनों तक प्रभाविता देखी जा रही थी।जिनके सामान्य लक्षणों में सर्दी, जुकाम, तेज बुखार, सूखी खांसी, स्वाद व सुगंध की कमी, सांस लेने में दिक्कत जैसे प्रमुख पहचान की लक्षण थे। किंतु वर्तमान समय मे विषाणु का जो वैरिएंट तेजी से पांव पसार रहा है उसे वैज्ञानिकों ने बी.1.1.1.529 ओमिक्रोन नाम दिया है जिसमे संभवतः 30 से अधिक लगभग 34 तक म्यूटेशन पाए गए हैं और इसकी संभावित संक्रामकता पहले से कई गुना अधिक है यह एक से 10-12 व्यक्तियों में फैल सकता है।

इसे भी पढ़े  मिल्कीपुर का उपचुनाव नहीं, चुनौती है : अखिलेश यादव


डा उपेन्द्रमणि ने बताया ओमिक्रोन के वायरस सीधे फेफड़ों तक पहुँच सकता है, जिससे इसके चरम पर पहुंचने में कम समय लगता है, इसलिए हो सकता है कभी-कभी कोई लक्षण नही हो किन्तु फेफड़ों में वायरल निमोनिया के कारण तीव्र श्वसन संकट होता है।
संभावित लक्षणों के बारे में बताया कि इस बार तेज खांसी या बुखार जरूरी लक्षण नहीं बल्कि गले मे खुश्की या खराश, जोड़ों का दर्द भी नहीं या बहुत कम,किन्तु शारीरिक कमजोरी बहुत अधिक व कार्यक्षमता बहुत कम होने के साथ स्नायविक पीड़ा,भूख न लगने के साथ कोविड निमोनिया के लक्षण मिल सकते हैं। लक्षणों की तीव्रता व प्रभाविता व्यक्ति दर व्यक्ति अलग अलग हो सकती है, इसलिए मृत्यु दर कम या अधिक हो सकती है । रोगी में बुखार न होने पर भी, एक्स-रे रिपोर्ट में मध्यम छाती का निमोनिया दिखाई दे सकता है। इसके लिए अक्सर नेज़ल स्वैब नकारात्मक होता है!


डा त्रिपाठी का कहना है कि लक्षणों में इस प्रकार की अनिश्चितता व भ्रम की स्थिति का एक कारण वैक्सीन से प्राप्त इम्युनिटी भी हो सकती है जिसके विरुद्ध विषाणु की प्रभाविता में अंतर दिखाई पड़ता हो और इसीलिए भविष्य में किसी अन्य प्रभावी म्यूटेशन की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, इसीलिए वह कहते है हमे कमसे कम छः माह तक सावधान रहना चाहिए। पूर्ण वैक्सीनेशन के बाद शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कारगर हो सकती है किन्तु विषाणु के वैक्सीन प्रतिरोधी गुण के अध्ययन तक हमे ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए।

वायरस से बचाव के लिए तन की दूरी, रोग के डर से मन की दूरी को कोरोना से बचाव में जरूरी मंत्र बताते हुए डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने कहा विषाणु की संक्रमता की चपेट में आने से बचने के लिए भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचें, फेस मास्क पहनें, बार-बार हाथ धोएं, शारीरिक दूरी के नियम का पालन आवश्यक रूप से करना चाहिए।

इसे भी पढ़े  वृद्ध चौकीदार की पिटाई से मौत

हवा से नहीं फैलता संक्रामकता अधिक


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी बताते हैं कि विषाणु के हवा द्वारा फैलने के प्रमाण नहीं हैं किंतु यदि कोई संक्रमित व्यक्ति किसी खुली जगह में थूकता या छींकता है तो विषाणु सूक्ष्मबूंदों के रूप में कुछ देर हवा में रहता है, ऐसे में उस व्यक्ति के स्थान बदल देने पर शारीरिक दूरी बरतते हुए भी जब कोई दूसरा व्यक्ति उस क्षेत्र में आएगा तो विषाणु बूदों के जरिये उसके कपड़ो , हाथ या सांस के जरिए उसे संक्रमित कर सकता है। इसी प्रकार कोई वैक्सिनेटेड हुआ व्यक्ति जिसमे कोई लक्षण न हों किन्तु वह भी विषाणु का वाहक हो सकता है, इसलिए ज्यादातर लोगों से शारीरिक दूरी आवश्यक नियम है।

मन की मजबूती और मानसिक दूरी क्या है ?

डॉ उपेन्द्रमणि त्रिपाठी कहते हैं कोरोना काल में अस्पतालों में एडमिट होने वाले मरीजों के प्रबंधन के प्रोटोकाल और एक निश्चित इलाज के कारण,व मृत्यु दर की सूचनाओं , व कोविड से ठीक हुए लोगों के निजी अनुभवों ने महामारी काल मे रोग भय से एकांतवास, परिवारीजनों से विछोह, जीवन से निराशा,अपने परिवारीजनों की असमय मृत्यु, उपरांत व्यवहारिक सामाजिक पारिवारिक संस्कारों की क्षति, मृत्यु की कल्पना से अप्रत्याशित चिंता, तनाव जैसी मानसिक लक्षणों में बृद्धि व्यक्तियों को अवसाद की तरफ ले जाती दिखी। जिसके दीर्घकालिक दुष्परिणाम अभी तक देखने को मिल सकते हैं। इसके साथ ही कम प्रभावित हुए या बिना प्रभावित हुए लोगों में वैक्सीनेशन के बाद निश्चिंतता का भ्रम व स्वछंद व्यवहार अथवा भिन्न मीडिया माध्यमों से अतार्किक,अत्यधिक भ्रामक जानकारियों से भी संशय, भ्रम व अतिविश्वास की मनःस्थितियाँ सामान्य जनमानस के स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं। किसी भी संशय के लिए केवल योग्य प्रशिक्षित चिकित्सक से ही उचित स्वास्थ्य परामर्श लेकर यथोचित चिकित्सा उपाय अपनाने चाहिए।

महामारी के भय का फायदा उठाकर अप्रशिक्षित व्यवसायी इधर उधर से प्राप्त जानकारियों को प्रस्तुत कर चिकित्सा के दावे कर येन केन प्रकारेण मिश्रित तरीके अपनाकर केवल अपने व्यवसायिक लाभ उद्देश्य तो पूरे करते हैं किंतु शीघ्र और अधिक लाभ देने के लिए अनुचित दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग कर आपके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर सकते हैं। रोग की अवस्था मे उचित आवश्यक जांच, औषधि का चयन और उसकी खुराक या प्रयोग के तरीके, सेवन का समय आदि का योग्य निर्धारण केवल प्रशिक्षित चिकित्सक ही कर सकते हैं। इसलिए चिकित्सा पद्धति व चिकित्सक का चयन भी विवेकपूर्ण तरीके से करें, जो अनुचित दावों की बजाय आपके संशयों का समुचित समाधान कर सकें।प्रत्येक दशा में दवा का सेवन ही आवश्यक हो यह जरूरी नहीं, कई परिस्थितियों में आप स्वस्थ जीवनशैली के नियम अपनाकर भी स्वस्थ हो सकते हैं। अनावश्यक दवाओं का अनुचित प्रयोग भी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुँचाता है, जबकि ऐसी तमाम मनःस्थितियाँ व मानसिक अवस्थाओं में श्रेष्ठ परामर्श दवाओं के प्रयोग को सीमित कर व्यक्ति में आत्मबल को प्रबल कर उसके स्वस्थ होने की संभावना को बढ़ा देता है।

इसे भी पढ़े  किशोरावास्था में शुरु होती है दो तिहाई तम्बाकू की लत : डॉ. आलोक मनदर्शन

होम्योपैथी में उपचार की क्या संभावनाएं हैं

सैद्धांतिक अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि होम्योपैथी वस्तुतः प्राचीन आयुर्वेद का ही विकसित स्वरूप है, जिसमें व्यक्ति के शारीरिक मानसिक लक्षणों की समग्रता के आधार पर शक्तिकृत औषधियों का चयन किया जाता है। इस समग्रता में मानसिक लक्षण और अनुभूतियां पारिवारिक इतिहास आदि बहुत महत्वपूर्ण हैं। महामारी की स्थिति में मिल रहे सामान्य लक्षणों की समग्रता के आधार पर जन सामान्य के लिए एक औषधि का चयन किया जाता है जिसे जेनस एपिडेमिकस कहते हैं। आयुष मंत्रालय भारत सरकार ने इसी आधार पर होम्योपैथी की आर्सेनिक एलबम 30 को तीन दिन प्रातः लेने की एडवाइजरी जारी की ।

किन्तु इसके साथ ही किसी व्यक्ति में कोविड के लक्षणों की उपस्थिति और उनकी तीव्रता के आकलन के आधार पर चिकित्सक अन्य औषधियों जैसे ब्रायोनिया, फास्फोरस, जस्टिसिया, टिनोस्पोरा, एस्पीडोसपरमा, ऐकोनाइट, एंटीम टार्ट, युपेटोरियम, कार्बोनियम ऑक्सिजेनेटम, इंफ्लुएंजिम, आदि का भी प्रयोग पिछले कोरोना कालखण्ड में प्रभावी देखा गया।पोस्ट कोविड व पोस्ट वैक्सीनशन के लक्षणों में भी हिस्टामिनम, मैग म्यूर, अर्निका, थूजा, चायना, आर्सेनिक, बेल , जेलसेमियम आदि औषधियों से व्यक्ति के डी डायमर, कमजोरी, दर्द, पुनरावृत्ति , बुखार या स्वाद सुगंध के अन्य लक्षणों में उपयोगी रहीं।वर्तमान में भी अत्यधिक कमजोरी व तीव्रता के लक्षणों के आधार पर आर्सेनिक,ऐकोनाइट, बेल, जेलसेमियम, के साथ उपरोक्त औषधियां लक्षणों के आधार पर योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में लाभदायी हो सकती हैं। किंतु कभी भी किसी भी पद्धति से उपचार के लिए किसी भी दवा का सेवन कहीं देख सुन या पढ़कर नहीं करना चाहिए,योग्य चिकित्सक के परामर्श और मार्गदर्शन में ही उचित तरीके से प्रयोग से लाभांवित हुआ जा सकता है।

You may also like

नेक्स्ट ख़बर

अयोध्या और आस-पास के क्षेत्रों में रहने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण सूचना स्रोत है। यह स्थानीय समाचारों के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक घटनाओं की प्रामाणिकता को बनाए रखते हुए उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। यह वेबसाइट अपने आप में अयोध्या की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक डिजिटल दस्तावेज है।.

@2025- All Right Reserved.  Faizabad Media Center AYODHYA

Next Khabar is a Local news Portal from Ayodhya