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सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक व हर्ट अटैक के खतरे अधिक

होम्योपैथी चिकित्सक डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने दी बचाव एवं सावधानियों की जानकारी


अयोध्या । कोरोना काल मे यूं तो आम जनजीवन भी अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग हुआ है किंतु खतरा कम होते ही लापरवाही स्वास्थ्य के लिए अनेक संकट पैदा कर सकती है। स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जागरूकता अभियान के अंतर्गत होम्योपैथी फ़ॉर आल के चिकित्सक डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने बताया सर्दियों में प्रौढ़ अवस्था के लोगों को ब्रेन स्ट्रोक व हर्ट अटैक के खतरे से बचने के लिए भी अपनी जीवनशैली में कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना चाहिए। डॉ त्रिपाठी का कहना है अमूमन हम यह मानते है इस दिनों कुछ भी खाओ पियो सब हजम हो जायेगा, और इसी विश्वास के चलते उनका खान पान अनियमित या असन्तुलित हो जाता है। इसी निश्चिन्तता के चलते कई बार हम स्वास्थ्य की हल्की फुल्की समस्याओं को नजरंदाज कर जाते है जो कभी कभी किसी गम्भीर स्थिति का संकेत हो सकती हैं।

सर्दियों मे हम पानी भी कम पीते हैं, जबकि शरीर मे वाष्पन की क्रिया चलती रहती है अतः पानी व ताप नियंत्रण क्रियाओं के चलते खून कुछ गाढ़ा हो जाता है जिससे रक्तचाप भी बढ़ने की संभावना रहती है। साथ ही तन्दुरुस्ती बढ़ाने के लिए अधिक वसा व कैलोरी युक्त भोजन लेने से कॉलेस्ट्रॉल काफी तेजी से बढ सक़ता है, जो रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न कर सकता है। इसलिए यदि कभी आपको ऐसा लगे कि अचानक कुछ देर के लिए आपके शरीर का कोई अंग सुन्न या कमजोर हो गया , तेज चक्कर या सिरदर्द आ गया, आंखों के सामने अँधेरा सा छा गया ,अथवा बोलने में आवाज लड़खड़ा गयी, या चेहरे का एक हिस्सा टेढ़ा सा हो गया। यह सभी या इनमे से कोई भी लक्षण एक दो मिनट के लिए नज़र आते है फिर सब सामान्य लगने लगे तो इन्हे बिलकुल नज़रअंदाज नही करना चाहिए, क्योंकि यह दिमाग के किसी हिस्से की हलचल का संकेत हो सकते हैं, तुरन्त चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।


डा. उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने बताया कि हमारे मस्तिष्क की किसी खून की नलिका में थक्का बन जाये या उस हिस्से में खून का संचार कम हो जाये तो उससे जुड़े शरीर के भागों के काम प्रभावित होने लगते हैं। इसे चिकित्सकीय भाषा में ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं जिससे सर्दियों में गर्मियों की अपेक्षा अधिक लोग प्रभावित होते हैं।जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ब्रेन स्ट्रोक अर्थात “मस्तिष्क पर प्रहार“ किन्तु यह मस्तिष्क के अंदर ही खून की नलियों में हुए परिवर्तनों का प्रभाव होता है न कि बाहरी कोई चोट या दुर्घटना, और इसीलिए अक्सर जानकारी के आभाव में इसके संकेतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। व्यक्ति को शरीर के किसी एक ओर के हिस्से में लकवा जैसी स्थिति होना, स्ट्रोक आने के बाद मरीज विकलांग हो सकते है या देखने सुनने की क्षमता खो देते है।मधुमेह और हृदय रोगियों को खास सावधानी रखनी चाहिए।

ब्रेन स्ट्रोक की संभावनाओं के बारे में बताते हुए डा त्रिपाठी ने कहा वसा की अधिक मात्रा खून की नलियों की अंदर दीवार पर जमा होने से वहां खून के प्रवाह रुकावट पैदा कर दे तो ईशचिमिक , या ब्लड प्रेशर बढ़ने से ब्रेन के अन्दर ही नलिकाओं में लिकेज आ जाने से ब्रेन हेमरेज हो सकता है। दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति को एक घण्टे के भीतर ही अस्पताल पहुंचाना, और सी टी स्कैन जाँच जरूरी है जिससे उसे होने वाले अधिक नुकसान से प्रभावी तरीके से बचाया जा सके। ऐसे मरीजों को 2 से 3 दिन तक नियमित चिकित्सकीय देखरेख बहुत जरूरी है। जानकारी के आभाव में लोग इसे हृदयाघात जैसी गम्भीरता से नही लेते जबकि यह उससे अधिक गम्भीर समस्या है। अध्ययनों में पाया गया है कि हर छठे सेकंड में एक व्यक्ति की मौत स्ट्रोक से होती है। और भारत में हर साल लगभग 16 लाख लोग इसका शिकार होते हैं।

क्या बरतें सावधानियां


-हाई ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल वाले मरीजों को नियमित जांच कराते रहनी चाहिए साथ ही तनाव मुक्त रहे, सही व संतुलित आहार लें, नियमित व्यायाम से शारीरिक सक्रियता बनाएं रखें। सिगरेट-तंबाकू , शराब या अन्य नशे की आदत से दूर रहें। भोजन में अधिक तली भुनी व संतृप्त वसा जैसे वनस्पति घी , डालडा आदि का उपयोग न करें। पानी पर्याप्त मात्रा में पीते रहें, सर्दियों में गुनगुना पानी भी लिया जा सकता है।

अधिक सर्दी या सुबह सुबह टहलने से बचें हल्की धुप हो जाये तो निकलें, कान को ढक कर रखें, क्योंकि नाक और कान से सर्दी का असर सीधा होता है। नहाने में हल्का गर्म पानी ही प्रयोग करे बहुत अधिक ठंडा या गर्म दोनों ही तरह के जल से स्नान के ठीक बाद शरीर ताप नियंत्रण में कुछ समय लगता है।नहाते समय पहले पैरों पर पानी डालें फिर क्रमशः शरीर के ऊपरी हिस्सो पर और अंत मे सिर पर पानी डालकर स्नान करें। इसीप्रकार प्रातः बिस्तर से तुरंत न उठें कुछ समय बैठें, हाथ पैरों को रगड़ कर चेहरे पर हाथ फेर कर तब कुछ देर बाद बाहर आएं।

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