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गाँधी संज्ञा नहीं विशेषण है : प्रो. रविप्रकाश टेकचंदानी

– अवध विवि में सिंधी, सिंध और गांधी विषय पर हुआ व्याख्यान

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय सिंधी, सिंध और गांधी विषय पर व्याख्यान देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में सिंधी भाषा, साहित्य के प्रो. रविप्रकाश टेकचंदानी ने कहा कि गांधी संज्ञा नहीं विशेषण है। आज भी जब कभी सत्य और अहिंसा के प्रति आग्रह रखने वाले किसी व्यक्ति का परिचय कराया जाता है, तो उन्हें गांधी विशेषण से विभूषित करते हैं।

राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा वित्त पोषित, डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय द्वारा संचालित अमर शहीद संत कँवरराम साहिब सिंधी अध्ययन केंद्र द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के सन्दर्भ में आयोजित व्याख्यान सिंधी, सिंध और गांधी विषय पर प्रो० टेकचंदानी विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने बताया कि गांधी को अपनी आत्मकथा लिखने की प्रेरणा उनके यरवदा जेल जीवन के साथी जयरामदास दौलतराम से मिली थी।

गांधी जी ने स्वदेशी और स्वराज्य पर पहला भाषण 1916 में सिंध में ही दिया था। इसके पूर्व गांधी जी देश को समझने के लिए देशाटन कर रहे थे। प्रो० टेकचंदानी ने बताया कि 1916 से 1934 के बीच सात बार गांधी जी सिंध गये और पहली सिंध यात्रा से लौटकर बम्बई में 06 मार्च, 1916 को उन्होंने पत्रकारों को बताया था कि उन्हें बम्बई से अधिक सिंध में राष्ट्रीय चेतना दिखाई दी। इसी प्रकार आचार्य जे.बी. कृपलानी और चोइथराम गिदवानी जैसे दिग्गज सिंधी नेताओं का गांधी के संग कार्य एवं व्यवहार पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। परन्तु उन्होंने कई नये प्रश्न खडे किए कि 1934 से 1947 के बीच ऐसा क्या हुआ जो गांधी फिर दोबारा सिंध नहीं गये और विभाजन के समय तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी के होते हुए भी ऐसा क्या हुआ जो राजस्थान सीमा से जुड़े हिन्दू बहुल गांवों में से एक भी हिन्दू बहुल गांव पंजाब और बंगाल की भांति भारत में नहीं आ सका ? प्रो० टेकचंदानी ने इन सारे विषयों पर शोध की आवश्यकता बताते हुए संकेत दिया कि इसके पीछे नेहरू के कथित अहंकार को समझने की आवश्यकता है। सिंधी, सिंध और गांधी के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषिक अन्तर सम्बन्धों पर उन्होंने धारा प्रवाह 01 घण्टे 10 मिनट तक विस्तार से प्रकाश डाला और पूरी तरह लोगों से भरा सभागार उन्हें मंत्र मुग्ध सुनता रहा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य कुलानुशासक प्रो० अजय प्रताप सिंह ने की। स्वागत एवं आभार ज्ञापन अध्ययन केंद्र के मानद निदेशक प्रो० आर० के० सिंह एवं सफल संचालन मानद सलाहकार ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी ‘सरल‘ ने किया। कंचन लखमानी आहूजा ने उनका विस्तार से परिचय दिया और लक्ष्यकुमार ने इसी विषय पर स्वरचित कविता पढ़ी। इस कार्यक्रम में गोण्डा सिंधी समाज के गणमान्यों ने भी प्रतिभाग किया। देवगढ़ के विकास सिंह ने निजी रूप से अपनी स्वयंसेवी संस्था सूर्य इन्द्र मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से उन्हें सम्मानित किया और राममन्दिर की प्रतिकृति स्मृतिचिन्ह के रूप में भेंट की।

इस अवसर पर अवध विश्वविद्यालय, जिंगिल बेल स्कूल, जे.बी.एन.टी.टी., महामना मदन मोहन मालवीय पुस्तकालय के शिक्षक एवं विद्यार्थियों के अतिरिक्त अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थानीय पदाधिकारी एवं प्रमुख कार्यकर्ता, विश्वद्यिलय परिषद् कर्मचारी गण तथा सिंधी समाज के अनेक मुखिया गण एवं गणमान्य लोग भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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