-मातृभाषा दिवस पर राम विवाह की हुई नाट्य प्रस्तुति
अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अववि विवि में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर भाषा विभाग द्वारा संत कबीर सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० रविशंकर सिंह ने कहा कि यूनेस्को के द्वारा घोषित विश्व मातृभाषा दिवस का आयोजन किया जाना हर्ष का विषय है। हम सभी अपनी मातृभाषा से दिनोंदिन दूर होते जा रहे हैं। मात्रभाषा से विरत होना ठीक नहीं है। आपस में आत्मीयता मातृभाषा से झलकती है। आजकल हम सभी बनावटी होते जा रहे हैं, जो चिंता जनक है। कुलपति ने कहा कि जब भी अवसर मिले, अपने भावों को मात्रभाषा में प्रकट करें। संस्कृति के लिए भाषा की कोई सीमा नहीं होती। सूरीनाम का उदाहरण देते हुए कुलपति ने कहा कि वहां रह रहे लोग हम से ज्यादा भारतीयता में रचे-बसे हैं। हमारी संस्कृति सुदूर देशों में भी सुरक्षित है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि त्रिनिदाद एवं टोबैगो के उच्चायुक्त डॉ० रोजर गोपाल ने जय श्रीराम का उद्घोष करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि मेरा इतिहास मां सरस्वती, हिमालय, रामायण और महाभारत से है। यहां मैं अजनबी नहीं हूं बल्कि इसी उत्तर प्रदेश की संतति हूं। मेरा तन मन अयोध्या की पवित्र भूमि पर आकर आह्लादित हो गया है । डॉ० गोपाल ने कहा कि रामायण और महाभारत हमारी त्रिनिदाद एवं टोबैगो की संस्कृति में गहराई से रची बसी हुई है। राम की वाणी में मधुरता की वजह उसमें व्याप्त बहुभाषिकता है। एक भाषा की जानकारी आपको सीमित ज्ञान देती है जबकि बहुभाषिकता ज्ञान को विस्तार देती है। आज मातृभाषाओं को लेकर संकट का दौर है, इसे बचाने के लिए सक्रियता दिखानी होगी। यदि अपनी मातृभाषा से दूर होंगे तो हम अपनी संस्कृति से दूर हो जाएंगे। मातृभाषा के विलुप्त होने पर इतिहास के विलुप्त होने का खतरा है। सुनहरे भविष्य के लिए बीते कल अर्थात इतिहास का संरक्षण जरूरी है। यूनेस्को के अनुसार सीमित भाषाओं में शिक्षण कार्य होता है और मात्रभाषाओं में इंटरनेट पर आवश्यक एवं शिक्षण सामग्री उससे भी अल्पमात्रा में उपलब्ध है। यह मानव के समानता के अधिकार का तिरस्कार है। आज वक्त की जरूरत है कि हम मात्रभाषाओं के संरक्षण के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करके मानवता को बचाएं।
विशिष्ट अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के भोजपुरी भाषा केंद्र के संस्थापक प्रो० सदानंद शाही ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का सिंहावलोकन करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि मातृभाषा संवाद का माध्यम है, लेकिन यह मात्र संवाद ही नहीं स्थापित करती है अपितु अस्तित्व को बनाए रखती है। वर्तमान में मातृभाषाओं को लेकर हीनता का भाव होना एक संकट के रूप में उभरा है। आजकल मूल्यों एवं आदर्शों को लेकर चिंता व्याप्त है, चिंता के मूल में मातृभाषा से दूरी है। भाषा एवं परिवेश का अटूट संबंध है। क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, अवधी, आदि जनपदीय भाषाओं में संतों की वाणी प्रवाहित होती है। भाषा में सद्भाव एवं प्रेम का निरंतर प्रवाह होता है। किसी भी भाषा को कमतर नहीं आंकना चाहिए। आज भाषाओं की नागरिकता पर संकट मंडरा रहा है, मातृभाषा के नागरिक होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि मातृभाषा जितना देती है, उसी के सापेक्ष उतना ही लौटाना चाहिए। जिसके पास जितनी ज्यादा भाषा होती है वह उतना ही बड़ा मनुष्य है। अयोध्या की पावन भूमि से ही डाॅ० राममनोहर लोहिया ने मातृभाषा का आंदोलन खड़ा किया । मातृभाषा को बचाने की मुहिम मानवता को बचाने की मुहिम होती है।
विशिष्ट अतिथि अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ० योगेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि कोई भी देश के निर्माण के केंद्र में भाषा या धर्म है लेकिन भारत एक निराला देश है जहां अनेकानेक भाषा और विभिन्न धर्मों के लोग सद्भावना के साथ रहते हैं। कई लातिनी अमेरिकी देशों में भारतीय भाषाएँ वहां की संस्कृति में रची-बसी हैं। कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र, शिमला के डॉ० रामशंकर सिंह ने कहा कि भाषा के विकास के लिए चिंतन, मनन एवं अनुसंधान की जरूरत होती है। औपनिवेशिक भाषा में व्यक्त विचारों में मूल सांस्कृतिक चेतना का सदैव अभाव होता है। मातृभाषा में ही सांस्कृतिक संरक्षण किया जा सकता है। कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए भाषा विभाग की समन्वयक डॉ० गीतिका श्रीवास्तव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय भाषा दिवस मनाने का उद्देश्य मातृभाषा को समादर एवं प्रोत्साहन देना है।
कार्यक्रम में जनक दुलारी रामलीला मंडली, अयोध्या की राम विवाह की नाट्य प्रस्तुति, शालिनी राजपाल द्वारा सिंधी लोकगीत और अवधी के इतिहास पर जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों जितेंद्र शुक्ला एवं शिवेंद्र प्रताप सिंह द्वारा बनाई गई डाक्यूमेंट्री की प्रस्तुति की गयी। कार्यक्रम का संचालन डॉ० निखिल उपाध्याय ने किया। अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रो० अशोक शुक्ला ने किया। इस अवसर पर प्रो० हिमांशु शेखर सिंह, प्रो० एस0एस0 मिश्र, प्रो० नीलम पाठक, सहायक कुलसचिव डॉ० रीमा श्रीवास्तव, डॉ० दिनेश सिंह, डॉ० राजेश सिंह कुशवाहा, डॉ० शैलेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ० आर0 एन0 पांडेय, डॉ० अनिल विश्वा, सहायक नियंता पीयूष राय, शालिनी पांडेय आदि शिक्षकों सहित विद्यार्थियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही