-स्वस्थ-मनोयुक्ति दिलाती है, बर्नआउट- सिंड्रोम से मुक्ति
अयोध्या। धरती के भगवान भी तनाव,चिंता,अवसाद व मनोथकान के शिकार होते हैं जिसे बर्नआउट-सिंड्रोम कहा जाता है। अध्ययनों के अनुसार एक तिहाई से अधिक चिकित्सक व परा-चिकित्सक बर्नआउट-सिंड्रोम अनुभव करते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार कार्यभार की अधिकता तथा बुरी खबर देने या उत्तेजित मरीजों या परिजनों से निपटने जैसी कठिन परिस्थितियों के कारण उच्च स्तर के तनाव का सामना चिकित्सा पेशेवर करते हैं ,वहीं दूसरी तरफ मनोपरामर्श लेने से संकोच स्थिति को और भी बिगाड़ देती है। युवा व प्रशिक्षु डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टॉफ मनोतनाव के हाई-रिस्क ग्रुप में आते हैं।
महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अवसाद, चिंता और थकान की दर अधिक होती है,वहीं पुरुषों में मादक-द्रव्य सेवन की रुझान दिखती हैं, जो धीरे धीरे मादक-द्रव्य जनित अवसाद का कारण बन सकती है। रुग्ण-मनोदशा का व्यवसायिक,परिवारिक व सामाजिक जीवन पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
सुझाव :
चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों में मानसिक-स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा मनोपरामर्श से जुड़े संकोच को दूर करना अहम है, जिससे मनोभ्रान्तियां दूर हों तथा मनोपरामर्श रुझान बढ़े। मनोपरामर्श से स्वस्थ-कार्यस्थल व्यहार विकसित होती है।
खुशमिजाजी व सहयोग के मनोभाव से हैप्पी हार्मोंन इन्डॉर्फिन व ऑक्सीटोसिन में अभिवृद्धि कर वर्क-प्लेस स्ट्रेस को दूर करते रहना स्ट्रेस-कोपिंग कैपसिटी यानि सहन शक्ति को बढ़ाता है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में मेंटल-डिफेंस मेकैनिज्म या मनोरक्षा-युक्ति कहा जाता है । इस युक्ति से अंतर्निहित व्यक्तित्व-विकार का संवर्धन भी सम्भव है। यह जानकारी जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने डॉक्टर्स-डे संदर्भित वार्ता में दी।