ब्यूरो। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ते कच्चे तेल के दाम और उसके हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ते दबाव को देखते हुए सरकार नवीकरणीय ऊर्जा को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर रही है। पहले सरकार ने 2030 तक पेट्रोल में बीस फीसदी एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा था। पिछले दिनों विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री ने अब इसे घटाकर 2025 कर दिया है। सरकार की मंशा है कि आत्मनिर्भर भारत की पहल के अंतर्गत इसे कालांतर में सौ फीसदी एथेनॉल से चलने वाले वाहनों के रूप में लक्ष्य हासिल किया जाये। दरअसल, सरकार की सोच रही है कि अपनी आर्थिक संप्रभुता के लिये हमें नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ानी होगी। इसमें बैटरी से जुड़ी प्रौद्योगिकियां भी शामिल हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य जहां वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट है, वहीं वर्ष 2030 तक इसे 450 गीगावॉट किया जायेगा। सरकारी की प्राथमिकताओं का प्रतिफल यह है कि वर्ष 2014 में जहां 38 करोड़ लीटर एथेनॉल खरीदा जाता था, वह अब 320 करोड़ लीटर खरीदा जा रहा है। बीते साल तेल बाजार की कंपनियों ने 21 हजार करोड़ रुपये का एथेनॉल खरीदा। केंद्र का दावा है कि पिछले सात सालों में हमारी अक्षय ऊर्जा की क्षमता में 250 फीसदी वृद्धि हुई है। फलत: आज भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में शीर्ष पांच देशों में शामिल है। निस्संदेह, 21वीं सदी में ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को देखते हुए नवीकरणीय ऊर्जा अपरिहार्य बन गई है। यही वजह है कि वर्ष 2014 तक पेट्रोल में जहां 1.5 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाता था, वह अब 8.5 फीसदी हो गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका एक बड़ा हिस्सा किसानों की जेब में गया है। विशेष रूप से गन्ना किसानों के खाते में। इसी कड़ी में एथेनॉल के उत्पादन और वितरण से जुड़ा महत्वाकांक्षी ई-100 पायलट प्रोजेक्ट पुणे में लॉन्च किया गया है। वहीं दूसरी ओर सौर ऊर्जा में पिछले छह साल में 15 गुना वृद्धि की बात सरकार कर रही है।
वक्त की मांग है कि एथेनॉल उत्पादन इकाइयों को चीनी उत्पादक राज्यों के इतर अन्य राज्यों में भी विस्तार दिया जाये। तभी देश के विभिन्न राज्यों में सड़े अनाज व खेती से निकले कचरे आधारित संयंत्रों की स्थापना की जा रही है। इसी कड़ी में करनाल जनपद में एथेनॉल संयंत्र में धान की पराली का उपयोग किया जायेगा, जो पराली प्रबंधन की समस्या के समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम है। राष्ट्रीय जैव ईंधन नियामक ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी करके पेट्रोल में ‘हरित ईंधनÓ एथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य निर्धारित किये हैं, जिसमें धान के भूसे के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गई है, जिससे भविष्य में इसकी मांग व उपयोग में वृद्धि की उम्मीदें जगी हैं। फिलहाल करनाल में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एथेनॉल प्लांट में धान की भूसी का उपयोग होगा। हालांकि, इसके लिये खरीद शुरू हो चुकी है, लेकिन प्रसंस्करण अप्रैल, 2022 में आरंभ होगा, जिसमें किसानों की पराली प्रबंधन में होने वाले खर्च को बचाने में मदद की जायेगी। दरअसल, रबी की फसल के लिये सीमित समय होने के कारण किसान इसे खेतों में जला देते हैं। अब पराली प्रबंधन में इस नई पहल से मदद मिलेगी। अच्छी बात यह है कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के अनुसार पंजाब, हरियाणा व उ.प्र. में पराली जलाने में इस साल कमी देखी गई है।
सर्दियां शुरू होने के साथ ही दिल्ली व एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आती थी। फिर उसे दुरुस्त करने के उपाय किये जाते थे। कोविड महामारी, जिसने हमारे श्वसनतंत्र को ज्यादा नुकसान पहुंचाया, ने हमें स्वच्छ वातावरण की जरूरत को बताया है। वहीं दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश के ऊना में भी एक एथेनॉल संयंत्र स्थापित करने की योजना है, जिसके लिये आसपास के राज्यों से पराली खरीदी जा सकेगी। वहीं मुक्तसर के रहरियांवाली गांव में ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के धान की भूसी को गांठों में बदलने, गौशालाओं में इस्तेमाल करने तथा उन्हें राजस्थान व गुजरात को आपूर्ति करने की प्रेरक पहल की है। निस्संदेह, व्यक्तिगत जागरूकता भी महत्वपूर्ण है।