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भावनात्मक दुर्बलता लाती है परीक्षा में विफ़लता : डा. आलोक

रुग्ण मनोभाव ही पैदा करते है एग्जाम फोबिया

अयोध्या। परीक्षा की घड़िया नजदीक आने के साथ ही क्या आप की मनःस्थिति इस तरह असामान्य होने लगती है कि आप घबराहट, बेचैनी, हताषा, चिड़चिड़ापन, नींद मे कमी या ज्यादा सोते रहना, शारीरिक व मानसिक थकान जैसे लक्षण आप पर हावी होने लगते है। इतना ही नहीं, आप अधिक से अधिक पाठ्यक्रम को पूरा कर लेने की समय-सारिणी रोज बनाते है, लेकिन पढ़ बहुत कम पाते है, और फिर निर्धारित पाठ्यक्रम के न पूरा हो पाने पर पछतावे व खिन्नता की स्थिति में आ जाते है। एैसी मनःस्थिति किसी भी आयु वर्ग व शैक्षिक स्तर के छात्र-छात्राओं मे पायी जा सकती है।यह बातें विश्व मनोस्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर देवा पब्लिक स्कूल में आयोजित किशोर भावनात्मक स्वास्थ्य विषयक कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ आलोक मनदर्शन ने कही।
उन्होंने कहा कि पढ़ाई करने बैठने पर आपका समग्र ध्यान से पढ़ाई में मन न लगने की बजाय आपकी मानसिक उर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा डर व भय जैसी मनोदशा के रूप क्षीण होती रहती है जिससे कि कुछ ही देर की पढ़ाई के बाद आपको एैसा लगता है कि विषयवस्तु बहुत ही कठिन है और आपकी समझ में नही आ रही है, और फिर आपको तनाव-सरदर्द होने लगता है और आप पढ़ाई से उठ जाते है। परन्तु इसके बाद फिर आपका मन पढ़ाई न कर पाने की अक्षमता के पश्चाताप में ही डूबा रहता है और आपका मन आपको सुकून से नही रहने देता है। और फिर धीरे-धीरे आपका मन हताशा, और निराशा जैसे मनोभावों से तेजी से घिरने लगता है।
उन्होंने बताया कि नतीजा, आपकी सारी मानसिक उर्जा इस प्रकार क्षीण होने लगती है कि आपका आत्मविश्वास खत्म होने लगता है और पढ़ाई की आसान सी चीजें भी आपको बहुत कठिन प्रतीत होने लगती और मन इनका सामना करने से इस प्रकार पलायन करने लगता है कि आपको पहले से भली भाति कंठस्थ सामग्री भी भूलने लगती है और नई चीजे बार-बार पढ़ने के बाद भी मानसिक पटल से गायब होती प्रतीत होती है। और फिर इस प्रकार मन पढ़ाई और परीक्षाफल के मानसिक द्वन्द की स्थिति मे इस प्रकार आ जाता है कि आपको तमाम अन्य समस्याऐं जैसे बेहोशी या मूर्छा, सुन्नता, सरदर्द, नर्वसडायरिया, पेटदर्द, सांस का रूकना, बोल न पाना, पहचान न पाना, खुद को कोई अन्य व्यक्ति या देवी-देवता या भूत-प्रेत इत्यादि के रूप में प्रदर्शित करना आदि हो सकती है। जिलाचिकित्सालय के किशोर मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन ने इस मनोदशा को इग्जामफोबिया का लक्षण बताया है। मनोगतिकीय कारकः इग्जामफोबिया की स्थिति में छात्र के मस्तिष्क के टेम्पोरललोब के लिम्बिक सिस्टम में स्थित भावनात्मक केन्द्र अमिग्डाला ग्रन्थि तनावग्रस्त हो जाने के कारण द्विगामी वाल्व की तरह काम करना बन्द कर देती है। जिससे सूचनाएं न तो मन मे संग्रहित हो पाती है और न ही पूर्वसंग्रहित सूचनाएं चेतन मन में वापस आ पाती है।
डा. आलोक ने बताया कि छात्र अपनी मानसिक प्रत्यास्थता को विकसित करे ताकि मानसिक जड़त्व की स्थिति न आने पाये। अपनी क्षमता के अनुरूप अध्ययन के बीच छोटे ब्रेक लेकर मनोरंजक गतिविधियों का भी पूरा आनन्द ले तथा तरल मानसिक स्फूर्तिदायक पदार्थो का सेवन बराबर करते रहें। छः से आठ घन्टे की गहरी नींद अवस्य ले। सकारात्मक दृष्टिकोण से अपनी योग्यता पर आत्मविष्वास रखे। नकारात्मक व तुलनात्मक स्वआंकलन न करे एवं एैसा करने वाले तथा अतिअपेक्षित वातावरण बनाने वाले परिजनों के दबाव से बचें ।फिर भी यदि समस्या बनी रहे तो मनोपरामर्श अवश्य लें।कार्यशाला में प्रबन्धक सहदेव उपाध्याय ,प्रिंसिपल नमिता मिश्रा ,विश्वेशनाथ मिश्रा, हरिओम दुबे, महेश नारायण , विजय कुमार व बाल किशन सहित स्कूल के शिक्षक व क्षात्र क्षत्रायें भारी संख्या में उपस्थित रहें।

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