-ब्रेन-सॉफ्टवेयर अपडेट से दूर होता है ब्रेन-बॉडी क्लेश, परिजन- मनोजागरूकता व व्यवहार-उपचार है कारगर
अयोध्या। ओवर-थिंकिंग या अनचाहे नकारात्मक विचारों से ग्रसित रहने तथा आत्मविश्वास मे कमी के कारण सोशल फोबिया, क्लास्ट्रोफोबिया, अगोराफोबिया, जनरलाइज्ड फोबिया, परफारमेंस फोबिया व पैनिक-अटैक आदि होतें है। मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेनिल हॉर्मोन बढ़ जाता है जिससे चिंता, घबराहट, डर,भय, एडिक्टिव इटिंग,आलस्य, मोटापा , अनिद्रा,हृदय की असामान्यत अनुभूति या कार्डियक न्यूरोसिस, पेट खराब रहना या गैस्ट्रिक न्यूरोसिस,शरीर दर्द व थकान,सरदर्द,किसी बड़ी बीमारी होने का भय, बेवजह की जांच व डॉक्टर सलाह आदि लक्षण भी दिख सकते है।
मनोद्वंद की स्थिति शारीरिक सुन्नता, बोल न पाना, आँख न खोल पाना, ऐंठन व मिर्गी जैसा झटका, भूत-प्रेत प्रदर्शन आदि रूप में दिखते हैं। ऐसे मरीजों के परिजनों में इन लक्षणों की जड़ में मानसिक तनाव या कुंठा होने की अज्ञानतावश उपचार- संगत व्यवहार व मरीज की द्वंद-प्रबंधन उपचार में सबसे बड़ी बाधा बनती है।
सलाहः
ब्रेन है सुपर-कम्प्यूटर तथा माइंड है अल्ट्रासेंसिटिव- सॉफ्टवेयर। ब्रेन के तीन प्रमुख हिस्से होते हैं, जिनमे पहला प्रीफ्रंटल- कार्टेक्स है जिसे डिसीजन-मेकर कहा जाता है। दूसरा एमिग्डाला जिसे थ्रेट-डिटेक्टर यानि खतरे को सूंघने वाला तथा तीसरा हिप्पोकैंपस यानि ब्रेन-लाइब्रेरी कहलाता है जिसमे अच्छी-बुरी सारी स्मृतियाँ संग्रहीत होती है। इन्ही तीनो की सॉफ्ट- प्रोग्रामिंग बिगड़ने पर मूड- स्टेबलाइज़र हार्मोंन सेराटोनिन घट जाने से एंग्जाइटी-डिसऑर्डर व मनोशारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
पर्सनालिटी डिसऑर्डर,जीवन के सदमे,नशाखोरी, फैमिली-प्रॉब्लम व मनो रोग की फैमिली-हिस्ट्री के अलावा डिजिटल-एडिक्शन, ऑनलाइन गेमिंग व गैंबलिंग,डेटिंग तथा लव-कांफ्लिक्ट आदि आग में घी का कार्य करते हैं । एंटी-एंग्जायटी व सेराटोनिनवर्धक दवाओं के साथ काग्निटिव बिहियर थिरैपी व परिवार मनोजागरुकता साइको-सोमैटिक उपचार मे अति कारगर है। यह बातें बृजकिशोर राजकीय होमियोपैथी कॉलेज में आयोजित साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर जागरूकता कार्यशाला में जिला चिकित्सालय के मनो परामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने कही। प्राचार्य डा आशीष सिंह की अध्यक्षता में आयोजित कार्यशाला का संयोजन डा चंद्रा व आभार ज्ञापन डा माधुरी गौतम ने दिया।