-बर्न-आउट सिंड्रोम है आत्मघाती मनोदशा, मनोपरामर्श दूर करता है डिस्ट्रेस व हताशा
अयोध्या। वर्क-स्ट्रेस का प्रबन्धन न कर पाने पर स्ट्रेस नकारात्मक रूप ले कर डिस्ट्रेस या अवसाद बन सकता है जिसमे उलझन, बेचैनी, घबराहट, अनिद्रा व आत्मघाती मनोदशा के साथ शारीरिक दुष्प्रभाव भी दिखाई पड़ते हैं। तीव्र मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेननिल हॉर्मोन बढ़ जाता है, जिससे चिंता, घबराहट, आलस्य,अनमनापन,अनिद्रा,सरदर्द,पेट दर्द,तेज़ धड़कन, चिड़चिड़ापन,गुस्सा व नशे की स्थिति भी पैदा हो सकती है । स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसाल का लेवल लम्बे समय बढ़े रहने पर इन्सुलिन रेजिस्टेंस बढ़ कर डायबिटीज का कारण तथा एड्रेनलिन बढे रहने के रक्तवाहिनियो में सिकुड़न के कारण हाई ब्लड प्रेशर की दशा बन सकती है।
मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय, क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है । चिंता, घबराहट व अनिद्रा एक हफ्ते से ज्यादा महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। सामाजिक व मनोरंजक तथा रचनात्मक गतिविधियों व योग व्यायाम को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें । फल, सब्जी व तरल पदार्थो का सेवन करें।
इस शैली से मस्तिष्क में मूड स्टेबलाइज़र हार्मोन सेरोटोनिन, रिवॉर्ड हार्मोन डोपामिन,साइकिक पेन रिलीवर हार्मोन एंडोर्फिन व लव हार्मोन ऑक्सीटोसिन का संचार होता है, जिससे दिमाग व शरीर दोनों स्वस्थ व वर्क स्ट्रेस फ्रेंडली रहते हैं। वर्क स्ट्रेस की अधिकता का सही प्रबंधन न कर पाने पर बर्न-आउट सिंड्रोम नामक मनोथकान व पलायनवादी मनोदशा को तत्काल मनोपरामर्श से दूर किया जा सकता है, जिससे आए दिन खबरों का हिस्सा बनने वाली एस आई आर कार्य में लगे बी एल ओ आत्मघाती मनो दशा पर काबू पाया जा सकता है।
परिजनों समाज का सहयोग व संवेदनशीलता तथा टीम वर्क प्रोत्साहन व संबल वर्धन का अहम रोल है। यह बातें जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने सामयिक बी एल ओ मनो दशा संदर्भित जनहित वार्ता में कही।